सोमवार 17 फ़रवरी 2025 - 18:09
तंज़ीमुल मकातिब के संस्थापक की सेवाएँ ना क़ाबिले फ़रामोश।सैयद आफ़ाक़ आलम जै़दी

हौज़ा / मौलाना सैयद आफ़ाक़ आलम ने ख़तीब ए आज़म की बरसी के मौके पर कहा कि तबीब-ए-उम्मत, मुर्ब्बी-ए-मिल्लत ख़तीब-ए-आज़म सैयद ग़ुलाम अस्करी ताबस्सरा, वह जांबाज़ इंसान थे जो इल्म और अमल के मैदान की एक चमकती हुई शख़्सियत थे यही वजह है कि आज भी उनकी सेवाएँ लोगों के दिलों में ताज़ा हैं क्योंकि वह सिर्फ़ एक शख़्स नहीं थे बल्कि एक मुकम्मल शख़्सियत थे,व्यक्ति भले ही याद न रहे, लेकिन शख़्सियतें हमेशा याद रखी जाती हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , मौलाना सैयद आफ़ाक़ आलम ने ख़तीब ए आज़म की बरसी के मौके पर कहा कि तबीब-ए-उम्मत, मुर्ब्बी-ए-मिल्लत ख़तीब-ए-आज़म सैयद ग़ुलाम अस्करी ताबस्सरा, वह जांबाज़ इंसान थे जो इल्म और अमल के मैदान की एक चमकती हुई शख़्सियत थे यही वजह है कि आज भी उनकी सेवाएँ लोगों के दिलों में ताज़ा हैं क्योंकि वह सिर्फ़ एक शख़्स नहीं थे बल्कि एक मुकम्मल शख़्सियत थे,व्यक्ति भले ही याद न रहे, लेकिन शख़्सियतें हमेशा याद रखी जाती हैं।

उन्होंने आगे कहा कि जब भी उलमा के बीच इल्म, अमल, तक़्वा और परहेज़गारी की चर्चा होगी, तो जहाँ दूसरी शख़्सियतों का ज़िक्र होगा, वहीं इस जांबाज़ इंसान का भी नाम लिया जाएगा।

कहा जाएगा कि इल्म के मैदान में एक शख़्स पूरी क़ौम को आवाज़ दे रहा था कि चाहे ज़िंदगी कितनी भी मुश्किलों और परेशानियों में गुज़रे, लेकिन अपने बच्चों को दीनी और दुनियावी तालीम से ज़रूर रोशन करना।

उनकी आने वाली नस्लें अंधकार में न रहें बल्कि इल्म के नूर से जगमगाएँ इसी सोच को लेकर उन्होंने जगह-जगह मकातिब (इस्लामिक मदरसे) की बुनियाद रखी किताबों का इंतज़ाम किया और खुद आगे बढ़ते रहे ताकि उनकी क़ौम के बच्चे कल सुकून पा सकें।

उन्होंने अंत में कहा,ख़तीब-ए-आज़म की सेवाएँ बहुत बड़ी हैं उन्हें चंद अल्फ़ाज़ में बयान करना मुश्किल है बस, इस बरसी के मौके पर मैं दिल की गहराइयों से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

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