हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी हालिया रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि अमेरिका ने परमाणु समझौते (बरजाम) के तहत अपनी मुख्य जिम्मेदारियों को पूरा नहीं किया जिससे ईरान को आर्थिक लाभ नहीं मिला।
ईरान ने 2015 में अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन एक साल बाद भी उसे कोई आर्थिक फायदा नहीं हुआ यह स्वीकारोक्ति ऐसे समय में आई है जब ईरान और अमेरिका के बीच नई अप्रत्यक्ष वार्ताओं का तीसरा दौर शुरू होने वाला है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने फरवरी 2017 में एक विशेष रिपोर्ट जारी की थी जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि "परमाणु समझौते के एक साल बाद भी ईरान पर वित्तीय प्रतिबंध समाप्त नहीं हुए थे। इस रिपोर्ट में यह भी स्वीकार किया गया था कि बरजाम पर हस्ताक्षर के बावजूद ईरान पर परमाणु प्रतिबंध जारी रहे और अमेरिकी बाधाओं के कारण ईरानी बैंकों को वैश्विक बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने में समस्याएं रहीं।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने विश्लेषण में लिखा है कि ईरान नए दौर की वार्ता में "गहरे अविश्वास" के साथ शामिल हो रहा है। रिपोर्ट में वर्तमान तकनीकी और विशेषज्ञ स्तर की बातचीत के महत्व पर भी जोर दिया गया है।
विश्लेषकों का कहना है कि पिछले वर्षों में जब ईरान को समझौते के तहत वादे किए गए आर्थिक लाभ नहीं मिले तो उसने अपनी परमाणु प्रतिबद्धताओं से सशर्त दूरी बना ली और यूरेनियम संवर्धन की मात्रा बढ़ाकर दबाव बनाया। रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि अमेरिका की वादाखिलाफी या समझौते के उल्लंघन के जवाब में ईरान के पास उचित प्रतिक्रिया देने की क्षमता है।
रिपोर्ट के अनुसार, ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम का विस्तार करते हुए 60 प्रतिशत तक यूरेनियम संवर्धन शुरू कर दिया है, जो समझौते में तय सीमा से काफी अधिक है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम अमेरिका और यूरोपीय देशों पर दबाव बनाने के लिए उठाया गया है ताकि वे अपने वादों को पूरा करें।
न्यूयॉर्क टाइम्स की इस रिपोर्ट ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस बात को बल दिया है कि बरजाम की असफलता की मुख्य वजह अमेरिका की वादाखिलाफी रही है। रिपोर्ट के अनुसार, ईरान ने समझौते की सभी शर्तों का पालन किया था, लेकिन अमेरिका ने वास्तव में प्रतिबंधों में कोई ठोस ढील नहीं दी, जिसके कारण ईरान को कोई आर्थिक लाभ नहीं मिला।
इस समय नई वार्ताओं के नौ दौर चल रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अमेरिका और यूरोपीय देश अपने वादों को निभाने के प्रति गंभीर नहीं हुए, तो ईरान के पास समझौते से पूरी तरह से हटने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा। रिपोर्ट के अंत में कहा गया है कि मौजूदा हालात में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चाहिए कि वह अमेरिका पर दबाव डाले ताकि वह अपने वादे निभाए और क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।
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