हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, सैकड़ों साल से मानव समाज अल्लाह की हुज्जत के ज़ाहिर होने के फ़ायदे से महरूम है और आसमानी रहनुमा तथा मासूम इमाम की मौजूदगी के आनंद से महरूम रहा है।
अगर अल्लाह की हुज्जत छिपी हुई है और उनका जीवन सबकी पहुँच से दूर है, तो इसका दुनिया और उसके लोगों पर क्या असर पड़ता है? क्या वे अपने ज़ाहिर होने के दौर के आस-पास पैदा नहीं हो सकते थे ताकि दुनिया भर के लोगों से अपने छिपे रहने के कठिन समय को देखने से बच जाते?
यह सवाल और इसके जैसे दूसरे सवाल, इमाम और अल्लाह की हुज्जत के स्थान को ठीक से जाने बिना उठते हैं।
सच में, ब्रह्मांड में इमाम का क्या स्थान है? क्या उनके वजूद के सभी आसार केवल उनके दिखाई देने पर निर्भर हैं? क्या वे केवल लोगों की रहनुमाई और मार्गदर्शन के लिए हैं, या उनका होना सभी प्राणियों के लिए फ़ायदेमंद और बरकत वाला है?
इमाम, ब्रह्मांड का केंद्र
शिया मत के अनुसार और धार्मिक शिक्षाओं के आधार पर, इमाम अल्लाह की दया और अनुग्रह को सृष्टि की सभी चीज़ों तक पहुँचाने वाला माध्यम है। वह ब्रह्मांड की व्यवस्था का केंद्र और आधार है। अगर उनका अस्तित्व न हो, तो न दुनिया रह सकती है, न इंसान, न जिन्न, न फ़रिश्ते, न जानवर और न वस्तुएँ।
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से पूछा गया कि क्या धरती बिना इमाम के रह सकती है? उन्होंने जवाब दिया:
"لَوْ بَقِیَتِ اَلْأَرْضُ بِغَیْرِ إِمَامٍ لَسَاخَتْ" लौ बक़ेयतिल अर्ज़ो बेग़ैरे इमामिन लासाख़त
अगर धरती पर इमाम न हो तो वह डूब जाएगी (और उसकी व्यवस्था बिगड़ जाएगी) (काफी, जिल्द 1, पेज 179)
यह बात साफ़ है कि इमाम (अ) अल्लाह के संदेशों को लोगों तक पहुँचाने और उन्हें इंसानी कामयाबी की ओर रास्ता दिखाने में माध्यम हैं। हर दया और कृपा जो इस दुनिया में आती है, वह उनकी वजह से ही सबको मिलती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि शुरू से ही अल्लाह ने पैग़म्बरों और फिर उनके बाद उनके वारिसों (इमामों) के ज़रिए इंसानों की रहनुमाई की है। लेकिन मासूमों (अलैहिमस्सलाम) की बातों से यह भी पता चलता है कि इमामों का अस्तित्व पूरी दुनिया में एक ऐसे माध्यम की तरह है, जिससे अल्लाह की हर नेमत और कृपा हर छोटे-बड़े जीव तक पहुँचती है।
और साफ़ शब्दों में कहें तो, सभी जीव जो भी अल्लाह की बरकत और नेमतें पाते हैं, वह इमाम के ज़रिए ही पाते हैं। उनका होना भी इमाम की वजह से है और जो दूसरी नेमतें और फ़ायदे वे अपनी ज़िंदगी में पाते हैं, वे भी इमाम के कारण हैं।
ज़ियारत-ए-जामए कबीरा (जो इमाम शनासी से संबंधित है) में एक जगह ऐसा आता है:
"بِکُمْ فَتَحَ اللّهُ وَبِکُمْ یخْتِمْ وَبِکُمْ ینَزِّلُ الغَیثَ وَبِکُمْ یمسِکُ السَّماءَ اَنْ تَقَعَ عَلَی الاَرضِ اِلاّ بِاِذنِهِ बेकुम फ़तहल्लाहो वा बेकुम यख़्तिम, वा बेकुम यनज़्ज़ेलुल ग़ैसा वा बेकुम यमसेकुस्समाआ अन तक़ा अलल अर्ज़े इल्ला बे-इज़नेह"
[ऐ महान इमामों!] अल्लाह ने आप ही के कारण [दुनिया की] शुरुआत की और आप ही के कारण उसे ख़त्म भी करेगा। आपके कारण ही बारिश होती है और आपके कारण ही आसमान धरती पर नहीं गिरता, सिवाय उसकी इच्छा के।
इसलिए, इमाम के अस्तित्व के असर सिर्फ़ उनके प्रकट होने और दिखाई देने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उनका होना-चाहे वे छिपे हुए हों या सामने-सभी जीवों और अल्लाह की सभी रचनाओं की ज़िंदगी का स्रोत है। खुद अल्लाह ने यही चाहा है कि वही, जो सबसे बेहतर और पूर्ण इंसान है, अल्लाह की दया और नेमतों को दूसरे जीवों तक पहुँचाने का माध्यम बने। इस मामले में उनके छिपे होने और प्रकट होने में कोई फ़र्क नहीं है। हाँ, सभी लोग इमाम के अस्तित्व के फ़ायदे पाते हैं और इमाम मेहदी (अलैहिस्सलाम) के छिपे होने से इसमें कोई कमी नहीं आती।
और यह भी दिलचस्प है कि जब इमाम मेहदी (अलैहिस्सलाम) से यह पूछा गया कि उनके ग़ैबत के दौर में लोग उनसे कैसे फ़ायदा उठा सकते हैं, तो उन्होंने फ़रमाया:
وَ أَمَّا وَجْهُ اَلاِنْتِفَاعِ بِی فِی غَیْبَتِی فَکَالاِنْتِفَاعِ بِالشَّمْسِ إِذَا غَیَّبَتْهَا عَنِ اَلْأَبْصَارِ اَلسَّحَابُ وَ إِنِّی لَأَمَانٌ لِأَهْلِ اَلْأَرْضِ کَمَا أَنَّ اَلنُّجُومَ أَمَانٌ لِأَهْلِ اَلسَّمَاءِ व अम्मा वज्हुल इंतेफ़ाए बी फ़ी ग़ैबती फ़कल इंतेफ़ाए बिश् शम्से इज़ा ग़य्यबतहा अनिल अबसारिस सहाबो व इन्नी लअमानुन लेअहलिल अर्ज़े कमा अन्नन नुजूमा अमानुन लेअहलिस समाए
"और जहाँ तक मेरे ग़ायब रहने के समय मुझसे फ़ायदा उठाने की बात है, तो वह ऐसे ही है जैसे सूरज से फ़ायदा उठाना जब बादल उसे आँखों से छुपा लेते हैं। और सच में मैं धरती वालों के लिए सुरक्षा हूँ, जैसे कि तारे आसमान वालों के लिए सुरक्षा हैं।" (कमालुद्दीन, जिल्द 2, पेज 483)
इक़्तेबास: किताब "नगीन आफरिनिश" से (मामूली परिवर्तन के साथ)
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