मौलाना सय्यद सग़ीर हसन तक़वी बास्टवी सन 1287हिजरी में सरज़मीने बासटा ज़िला बिजनोर पर पैदा हुए,आपके वालिद इरशाद हुसैन तक़वी निहायत दीनदार, इल्म दोस्त इंसान और अहले मुतालेआ थे।
मोसूफ़ ने इब्तेदाई तालीम अपने वतन बासटा में हासिल की उसके बाद उलूमे दीन के हुसूल की गरज़ से आज़िमे अमरोहा हुए और “मदरसए नूरुल मदारिस” में दाख़िल होने के बाद “मौलाना सय्यद मुर्तज़ा हुसैन” की सरपरस्ती में रहकर मुखतलिफ़ उलूम हासिल किये मसलन अदबयाते अरब, अदबयाते ज़बाने फ़ारसी, मनतिक़,फलसफ़ा, फ़िक़ह और उसूले फ़िक़ह की तालीम हासिल की, नूरुल मदारिस में आपके हमदर्स अफ़राद में आयतुल्लाह सय्यद यूसुफ़ हुसैन अमरोहवी और आयतुल्लाह सय्यद सिब्ते नबी नोगाँवी के असमा सरे फेहरिस्त हैं।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी मौलाना सग़ीर हसन ने नूरुल मदारिस से फ़रागत के बाद लखनऊ का रुख किया और हिंदुस्तान की मशहूर वा मारूफ़ दर्सगाह मदरसा ए नाज़मिया में दाख़िला लिया मोसूफ़ को वहाँ आयतुल्लाह नजमुल हसन की सरपरस्ती और शागिर्दी का शरफ़ हासिल हुआ, आपने मदरसा ए नाज़मिया में अपनी तालीम मुकम्मल करके मुमताज़ुल अफ़ाज़िल की सनद हासिल की, लखनऊ में क़याम के दौरान सरकार नासेरुल मिल्लत से भी कस्बे फ़ैज़ किया और आप अपने उस्ताद के पुरजोश हमियों में शुमार किये जाते थे।
मौलाना मदरसा ए नाज़मिया से फ़ारिग होने के बाद तबलीगे दीन की ख़ातिर आज़िमे ककरोली ज़िला मुज़फ्फ़रनगर हुए और एक साल दीनी फ़राइज़ अंजाम दिये उसके बाद शिकारपुर ज़िला बुलंदशहर के मोमेनीन की दावत पर एक साल वहाँ भी दीनी फराइज़ की अंजामदही में मसरूफ़ रहे, फिर उसके बाद तबलीगे दीन की ख़ातिर “भाऊनगर गुजरात” तशरीफ़ ले गये वहाँ रहकर मोमेनीन को अहकाम, अखलाक़ और अक़ाइद की तालीम से मालामाल किया, आपके फरज़ंद मोलाना सय्यद मोहम्मद बास्टवी बयान फ़रमाते थे कि मौलाना मोसूफ़ भाऊनगर पोंहचे थे तो जमाअत की रविश से नाख़ुश होकर दो महीने बाद ही वापस आना चाहते थे लेकिन गुजरात के मशहूर मुबल्लिगे दीन मौलाना गुलाम अली हाजी नाजी ने आपको रोका ओर जमाअत को ताकीद की के मोसूफ़ के रहते हुए मस्जिद की पेश नमाज़ी के सिलसिले में जमाअत मुदाखेलत ना करे, इस तरह मोलाना तक़रीबन चौदह साल भाऊनगर में मसरूफ़े तबलीग रहे और अपने गहरे इल्मी और अखलाक़ी असरात वहाँ छोड़े।
मौलाना सगीर हसन ने दीनी फ़राइज़ की अंजामदही के लिये भाऊनगर के बाद देहली का रुख किया और “शिया जामा मस्जिद कश्मीरी गेट देहली” में इमामे जुमा की हैसियत से पंद्रह साल तक ख़िदमत अंजाम देते रहे, मोसूफ़ ने इन तमामतर मसरूफ़यात के बावजूद दामने तहक़ीक़ को नही छोड़ा और मुखतलिफ़ आसार किताबों की शक्ल में लोगों तक पोंहचाये जिनमे किताब “नूरुस्समावात” और “अक़्दे जनाबे क़ासिम” के असमा क़ाबिले ज़िक्र हैं।
मौलाना ने अक़्दे जनाबे जनाबे क़ासिम के मुखालिफ़ थे और मेंहदी की रस्म अदा करने वालों को नसीहत किया करते थे इस नियत के साथ मेंहदी न निकालो की जनाबे क़ासिम की शादी हुई थी बल्कि मेहंदी की रस्म अदा करनी ही है तो इस नियत के साथ निकालो कि काश क़ासिम जवान होते और उनकी शादी होती।
मौलाना ने अपने बेटों आयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद बास्टवी और हुज्जतुल इस्लाम सय्यद अली तक़वी को भी ज़ेवरे इल्मो अदब से अरास्ता किया ताके आपकी रहलत के बाद उनकी नस्ल में सिलसिला ए तबलीग बाक़ी रहे जैसा के शिया जामा मस्जिद कश्मीरी गेट में ये सिलसिला देखने को मिलता है, मोसूफ़ के बाद उनके बेटे मौलाना सय्यद अली इमामे जुमा रहे और अब उनके पोते मौलाना सय्यद मोहसिन तक़वी इमामत के फराइज़ अंजाम दे रहे हैं।
आखिरकार ये इल्मो अदब का माहताब 18 ज़ीक़ादा 1338 हिजरी में देहली की सरज़मीन पर गुरूब हो गया, चाहने वालों का मजमा शरीअतकदे पर उमड़ पड़ा जनाज़े को वसीयत के मुताबिक़ देहली से आगरा ले जया गया और मोमेनीन की हज़ार आहो बुका के हमराह शहीदे सालिस क़ाज़ी नूरुलल्लाह शूश्तरी के मज़ार में सुपुर्दे ख़ाक कार दिया गया।
माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-9 पेज-147दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 2023ईस्वी।