गुरुवार 12 जून 2025 - 12:37
रज्अत की कुछ विशेषताएं

हौज़ा / सभी मुमिनों और उन सच्चे इंतजार करने वालों के लिए जो इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) के ज़ूहूर होने से पहले दुनिया से चले गए, यह संभव है कि वे दुनिया में वापस आएं और उस इमाम की मदद करें।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, बहुत सारी हदीसों में से हम रज्अत के बारे में ये बातें कह सकते हैं:

  1. रज्अत इस दुनिया के बड़े और महत्वपूर्ण दिनों में से एक है, जिसे "यौमुल्लाह" (अल्लाह का दिन) कहा गया है।

इमाम सादिक (अलैहिस्सलाम) इस बारे में फ़रमाते हैं:

أَیَّامُ اَللَّهِ ثَلاَثَةٌ یَوْمٌ یَقُومُ اَلْقَائِمُ عَلَیْهِ السَّلاَمُ وَ یَوْمُ اَلْکَرَّةِ وَ یَوْمُ اَلْقِیَامَةِ अय्यामुल्लाहे सलासतुन यौमुन यक़ूमुल क़ाएमो अलैहिस्सलामो व यौमुल कर्रते व यौमुल क़यामते

अल्लाह के दिन तीन हैं: वह दिन जब क़ायम अलैहिस्सलाम क़याम करेगें, वह दिन जब रज्अत होगी, और वह दिन क़यामत का दिन होगा। (बिहार उल अनवार, भाग 53, पेज 63)

  1. रज्अत पर अक़ीदा रखना अहले-बैत (अलैहिमुस्सलाम) के शियो की पहचान है।

इमाम सादिक़ (अलैहिस्सलाम) फ़रमाते हैं:

لَیْسَ مِنَّا مَنْ لَمْ یُؤْمِنْ بِکَرَّتِنَا लैसा मिन्ना मन लम यौमिन बेकर्रेतना 

जो व्यक्ति हमारी रज्अत पर ईमान नही रखता वह हम मे से नही है। (बिहार उल अनवार, भाग 53, पेज 92)

      3. रज्अत सार्वजनिक नहीं है; जैसा कि इमाम सादिक़ (अलैहिस्सलाम) फ़रमाते हैं:

إِنَّ اَلرَّجْعَةَ لَیْسَتْ بِعَامَّةٍ وَ هِیَ خَاصَّةٌ لاَ یَرْجِعُ إِلاَّ مَنْ مَحَضَ اَلْإِیمَانَ مَحْضاً أَوْ مَحَضَ اَلشِّرْکَ مَحْضاً इन्नर रज्अता लैसत बेआम्मतिन व हेया ख़ास्सतुन ला यरजेओ इल्ला मन महज़ल ईमाना महज़न औ महज़श शिरका महज़ा

रज्अत सभी लोगों के लिए नहीं है, बल्कि यह सिर्फ़ ख़ालिस मुमिनों और ख़ालिस काफ़िरों और मुनाफ़िकों के लिए है। (बिहार उल अनवार, भाग 53, पेज 39)

       4. रज्अत करने ने वाले मुमिनों में पैग़ंबर और मासूम इमाम भी शामिल हैं। सबसे पहले इमाम जो रज्अत के समय और इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) के बाद विश्व में न्याय की सरकार संभालेगे, वह हज़रत इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) होंगे, जो कई सालों तक शासन करेंगे। जैसा कि इमाम सादिक़ (अलैहिस्सलाम) ने इस बारे में फ़रमाया है:

أَوَّلُ مَنْ یَرْجِعُ إِلَی اَلدُّنْیَا اَلْحُسَیْنُ بْنُ عَلِیٍّ عَلَیْهِ السَّلاَمُ فَیَمْلِکُ حَتَّی یَسْقُطَ حَاجِبَاهُ अव्वलो मन यरजेओ इलद दुनिया अल हुसैन इब्न अली अलैहिस्सलामो फ़यमलेको हत्ता यस्क़ोता हाजेबाहो

पहला जो दुनिया में वापस आएगा वह हुसैन इब्न अली (अलैहिस्सलाम) होंगे, और वह तब तक शासन करेंगे जब तक उनके भौंहों के बाल उनकी आँखों पर लटकने न लगें। (बिहार उल अनवार, भाग 53, पेज 46)

         5. सभी मुमिनों और उन सच्चे इंतजार करने वालों के लिए जो इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) के ज़ुहूर होने से पहले दुनिया से चले गए, यह संभव है कि वे वापस आएं और उस इमाम की मदद करें।

इमाम सादिक़ (अलैहिस्सलाम) से वर्णित है कि जो कोई चालीस सुबह तक यह "अहद" (दुआ-ए-अहद) पढ़े, वह हमारे क़ायम (अलैहिस्सलाम) के सहायकों में से होगा। और अगर वह क़ायम के ज़ूहूर होने से पहले मर जाए, तो अल्लाह उसे कब्र से बाहर निकाल देगा ताकि वह इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) की सेवा कर सके। (मफ़ातिहुल जिनान, दुआ-ए-अहद का मुक़द्दमा)

दुआ-ए-अहद का एक हिस्सा:

... اللّٰهُمَّ إِنْ حالَ بَیْنِی وَبَیْنَهُ الْمَوْتُ الَّذِی جَعَلْتَهُ عَلَیٰ عِبادِکَ حَتْماً مَقْضِیّاً فَأَخْرِجْنِی مِنْ قَبْرِی ...  ... अल्लाहुम्मा इन हाला बैनी वा बैनहुल मौतुल लज़ी जअलतहू अला एबादेका हत्मन मक़ज़ीय्या फ़अखरिज्नी मिन क़बरी ... 

हे अल्लाह! अगर मेरे और इमाम महदी बीच वह मौत आ जाए जो तूने अपने बंदों पर निश्चित और अनिवार्य कर दी है, तो मैं जब कफ़न पहने हुए हूँ, मुझे मेरी कब्र से बाहर निकाल दे..."(मफ़ातिहुल जिनान; बिहार उल अनवार, भाग 99, पेज 111)

       6.काफ़िर और मुनाफ़िक कभी अपनी मर्जी से दुनिया में वापस नहीं आते, बल्कि मजबूरी में रज्अत स्वीकार करते हैं। लेकिन मुमिनों की रज्अत उनकी अपनी इच्छा से होती है।

इमाम सादिक़ (अलैहिस्सलाम) फ़रमाते हैं:

إِذَا قَامَ أُتِیَ اَلْمُؤْمِنُ فِی قَبْرِهِ فَیُقَالُ لَهُ یَا هَذَا إِنَّهُ قَدْ ظَهَرَ صَاحِبُکَ فَإِنْ تَشَأْ أَنْ تَلْحَقَ بِهِ فَالْحَقْ وَ إِنْ تَشَأْ أَنْ تُقِیمَ فِی کَرَامَةِ رَبِّکَ فَأَقِمْ इज़ा क़ामा उतेयल मोमिनो फ़ी क़बरेही फ़योक़ालो लहू या हाज़ा इन्नहू क़द ज़हरा साहेबोका फ़इन तशाआ अन तलहक़ा बेहि फ़लहक़ व इन तशाआ अन तोक़ीमा फ़ी करामते रब्बेका फ़अक़ामा

जब क़ायम (इमाम महदी अलैहिस्सलाम) क़याम करेंगे, तो अल्लाह के फरिश्ते कब्र में मुमिनों से संपर्क करेंगे और उनसे कहेंगे: 'हे बंदे! तुम्हारा मालिक (इमाम महदी) ज़ाहिर हो गया है। अगर तुम चाहो तो उसके साथ जुड़ जाओ, और अगर चाहो तो अपने रब की नेमतों (बरज़ख की खुशियों) में रहो।'  (अल-ग़ैबा, शेख तूसी, भाग 1, पेज 458)

इक़्तेबास: किताब "नगीन आफरिनिश" से (मामूली परिवर्तन के साथ)

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