हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट अनुसार, लखनऊ/ रोज़े अरफा और यौमे शहादते हज़रत मुस्लिम बिन अक़ील अ०स० के मौक़े पर बानी ए तनज़ीमुल मकातिब हाल में ख़ादेमाने तनज़ीमुल मकातिब की जानिब से दुआ ए अरफा और मजलिसे अज़ा मुनअक़िद हुई।
असातेज़ा व तुल्लाबे जामिया मौलाना सय्यद सफदर अब्बास,मौलाना सय्यद ज़फ़र अब्बास,मौलाना सय्यद हैदर अली और मौलाना सय्यद अली हाशिम आबिदी ने दुआ ए अरफा तर्जुमे के साथ तिलावत की।
उसके बाद मौलाना बिलाल मंदरापालवी ने बारगाहे अहलेबैत अ०स० में मंज़ूम नज़राने अकीदत पेश किया।
हुज्जतुल इस्लाम वलमुस्लेमीन मौलाना सय्यद सफी हैदर ज़ैदी साहब सेक्रेटरी तनज़ीमुल मकातिब ने रसूले अकरम स० की हदीसे शरीफ "बेशक शहादते हुसैन अ०स० से मोमिनीन के दिलो में ऐसी हरारत पैदा हो गई है जो कभी सर्द नही होगी" को सरनामे कलाम करार देते हुए फरमाया अभी जिस दुआ की हम ने तिलावत की इमाम हुसैन अ०स० ने उसे पढ़ी नही बल्कि दुआ की थी। इस दुआ में एक अहम दुआ आतिशे जहन्नम से नजात है जो इंसान की अहम तमन्ना होनी चाहिए।दूसरा अहम फिक़रा जो इमाम आली मक़ाम ने इस दुआ में फरमाया "खुदाया!जिसने तुझे पा लिया उसने क्या खोया और जिसने तुझे खोया उसने क्या पाया" यानि इंसान के मतलूब नज़र सिर्फ परवरदिगार होना चाहिए।
मौलाना सय्यद सफी हैदर साहब ने बयान किया कि दुनिया के हर ग़म का असर वक्त गुज़रने से कम पड़ जाता है,इसी तरह गम चाहे कितना बड़ा क्यों न हो लेकिन हादसे के बाद ही गम मनाया जाता है लेकिन ग़मे इमाम हुसैन अ०स० दुनिया का वह वाहिद ग़म है जो हमेशा ताज़ा रहता है और उसकी याद जहां वाक़ेये के बाद मनाई जा रही है वहीं वाक़िये से पहले भी मनाई गई है।
सेक्रेटरी तनज़ीमुल मकातिब ने फरमाया इस्लाम सलामती का दीन है इख्तेलाफ का नही लिहाज़ा आपस में इख्तेलाफ मुनासिब नही, इस्लाम ने आपसी मुलाक़ात में सलाम का हुक्म दिया जो सलामती की दावत है।
मजलिस के बाद जनाब सैफ अब्बास ने नौहा ख्वानी की।