हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, जो लोग नौकरी के लिए यात्रा कर रहे हैं, उनकी नमाज़ पूरी मानी जाती है। लेकिन जो लोग बिना पैसे लिए सेवा के लिए सफ़र करते हैं, जैसे अरबईन के मूक़िब तक सामान पहुँचाना, उस हालात में नमाज़ के हुक्म को और अच्छे से समझना पड़ता है। इस विषय पर आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनेई ने सवाल का जवाब दिया है, जिसे खास तौर पर उन लोगों के लिए बताया गया है जो शरई अहकाम मे रूचि रखते हैं।
सवाल: ट्रक ड्राईवर, जिसकी आमतौर पर नौकरी की यात्राओं में नमाज़ पूरी होती है, बिना कोई वेतन लिए मुफ्त में अरबईन के मूक़िब के लिए सामान ले जाता है, तो क्या उसकी इस सफ़र की नमाज़ पूरी होगी या क़स्र? और यदि कर्बला पहुंचने के बाद वह व्यक्तिगत तौर पर नजफ़ जैसे दूसरे शहर की ज़ियारत के लिए जाए, तो उस व्यक्तिगत सफ़र में उसकी नमाज़ का हुक्म क्या होगा?
जवाब: इस मुफ्त सेवा की यात्रा में भी उसकी नमाज़ पूरी (कामिल) मानी जाएगी। लेकिन यदि कर्बला पहुंचने के बाद वह किसी अन्य शहर, जैसे नजफ, अपनी व्यक्तिगत ज़ियारत के लिए जाता है और वहाँ दस दिन के लिए ठहरने का इरादा नहीं रखता, तो उस व्यक्तिगत सफ़र में उसकी नमाज़ क़स्र होगी।
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