मंगलवार 9 सितंबर 2025 - 09:20
मुसलमान अपने फ़िक़्ही और मसलकी इख़्तिलाफ़ात भुलाकर कुरआन, पैग़म्बर की सीरत और उम्मत के सामूहिक मसाइल पर एकजुट हों

हौज़ा / हफ़्ता ए वहदत के अवसर पर हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के प्रतिनिधि के साथ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (ए.एम.यू.) के शिया थियोलॉजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वी ने हफ़्ता ए वहदत की अहमियत, मुसलमानो के बीच वहदत की चुनौतीयां, इतिहास तथा उसको बढ़ावा देने के तौर तरीको पर प्रकाश डाला। 

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (ए.एम.यू.) के शिया थियोलॉजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, लेखक, बेहतरीन उपदेशक  हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वी ने हफ़्ता ए वहदत की अहमियत, मुसलमानो के बीच वहदत की चुनौतीयां, इतिहास तथा उसको बढ़ावा देने के तौर तरीको पर प्रकाश डाला जिसे हम अपने प्रिय पाठको के लिए प्रस्तुत कर रहे है।

हौज़ा न्यूज़ः अपना परिचय कराते हुए अपनी शिक्षा और वर्तमान गतिविधियों के बारे में बताएँ।
डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वीः मेरा नाम सय्यद हादी रज़ा तक़वी है और मैं इस समय अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (ए.एम.यू.) के शिया थियोलॉजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के तौर पर कार्यरत हूँ।
मेरा संबंध एक ऐसे ख़ानदान से है जिसने हमेशा इल्म, दीनी ख़िदमत और इंसानियत की रहनुमाई को अपना शिआर बनाया। प्रारम्भिक शिक्षा भारत में हासिल करने के बाद मैंने १९९९ में ईरान का रुख़ किया, जहाँ हौज़ा-ए-इल्मिया में इस्लामी फ़लसफ़ा, कलाम, फ़िक़्ह, उसूल-ए-फ़िक़्ह, तफ़्सीर, अरबी भाषा, इरफ़ान और अख़लाक़ जैसी विषयों में गहराई से तालीम हासिल की। वहाँ मैंने बहस-ए-ख़ारिज मुकम्मल की, जो इज्तेहाद के मरहले तक ले जाने वाली सर्वोच्च स्तर की पढ़ाई है।
भारत वापसी के बाद मैंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से “इस्लामिक लॉ में पर्यावरण संरक्षण” पर डॉक्टरेट (Ph.D.) किया, जिसमें इस्लामी फ़िक़्ह और आधुनिक पर्यावरणीय चुनौतियों को आपस में जोड़ा गया है।
वर्तमान समय में मेरी गतिविधियाँ शिक्षण, शोध और समाजी-धार्मिक ख़िदमत के इर्द-गिर्द घूमती हैं। मेरा मक़सद है कि तालीम सिर्फ़ किताबों तक सीमित न रहे बल्कि समाज की राहनुमाई और उम्मत की वहदत का ज़रिया बने।

हौज़ा न्यूज़ः हफ़्ता-ए-वहदत क्या है और इसे क्यों मनाया जाता है?
डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वीः हफ़्ता-ए-वहदत रबीउल अव्वल की १२ से १७ तारीख़ तक मनाया जाता है। अलग-अलग फ़िरक़ों में पैग़म्बर-ए-इस्लाम की विलादत की तारीख़ अलग बताई जाती है। इसी को आधार बनाकर इमाम ख़ुमैनी (रह.) ने कहा कि इन दिनों को “हफ़्ता-ए-वहदत” के तौर पर मनाया जाए ताकि मुसलमान तफ़रक़े से हटकर आपसी मोहब्बत और एकता का पैग़ाम दें।

हौज़ा न्यूज़ः वहदत-ए-इस्लामी का मतलब और इसकी अहमियत क्या है?
डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वीः वहदत-ए-इस्लामी का मतलब है कि मुसलमान अपने फ़िक़्ही और मसलकी इख़्तिलाफ़ात के बावजूद कुरआन, पैग़म्बर की सीरत और उम्मत के सामूहिक मसाइल पर एकजुट हों। यही वहदत उम्मत की इज़्ज़त, ताक़त और तरक़्क़ी की ज़मानत है।

हौज़ा न्यूज़ः मौजूद वक़्त में मुसलमानों के बीच वहदत की सबसे बड़ी चुनौतियाँ क्या हैं?

डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वीः मौजूदा वक़्त मे मुसलमानो के बीच वहदत की सबसे बड़ी चुनौतियाँ जैसे कि

 • फ़िरक़ा-वाराना तास्सुब
 • सियासी मक़ासिद और बाहरी ताक़तों की साज़िशें
 • सोशल मीडिया पर नफ़रत और ग़लत प्रचार
 • इल्मी और तालीमी कमज़ोरी
 • एक-दूसरे के मुक़द्दसात का अदम-ए-अहतराम

हौज़ा न्यूज़ः हफ़्ता-ए-वहदत मनाने का उद्देश्य और इसके इतिहास के बारे में बताएँ।
डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वीः इसका उद्देश्य है कि पैग़म्बर ﷺ की विलादत के मौक़े पर मुसलमान एक-दूसरे के क़रीब आएँ और उम्मत को तफ़रक़े से बचाया जाए। इमाम ख़ुमैनी (रह.) ने सबसे पहले इसे अमली शक्ल दी और कहा कि यही दिन उम्मत के लिए “एकता का जश्न” बनना चाहिए।

हौज़ा न्यूज़ः उलमा वहदत को बढ़ावा देने के लिए क्या किरदार अदा कर सकते हैं?

डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वीः वहदत को बढ़ावा देने के लिए उलमा निम्मलिखत किरदार अदा कर सकते है जैसे
 • मिम्बर से तास्सुब नहीं, बल्कि मोहब्बत का पैग़ाम देना
 • इख़्तिलाफ़ात को इल्मी और तर्कसंगत अंदाज़ में रखना
 • कॉमन दुश्मन और कॉमन मसाइल की तरफ़ तवज्जो दिलाना
 • मुसलमानों के लिए मुश्तरका प्रोग्राम और कॉन्फ्रेंस करना

हौज़ा न्यूज़ः युवाओं को वहदत के पैग़ाम से कैसे जोड़ा जा सकता है?

डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वीः
 • तालीमी इदारों में वर्कशॉप और डिबेट
 • सोशल मीडिया कैंपेन
 • सीरत-ए-नबी (स) और कुरआन को यूथ तक पहुँचाना
 • सांस्कृतिक और खेलकूद प्रोग्राम में वहदत का पैग़ाम शामिल करके युवाओ को वहदत से जोड़ा जा सकता है।

हौज़ा न्यूज़ः हफ़्ता-ए-वहदत के दौरान कैसे प्रोग्राम किए जा सकते हैं?

डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वीः हफ़्ता ए वहदत के दौरान 
 • सीरत-ए-नबी (स) कॉन्फ्रेंस
 • मिलाद और वहदत सेमिनार
 • इंटर-फेथ डायलॉग
 • मुशायरे, नात और तक़रीरी मुकाबले
 • ग़रीबों और मज़लूमों की मदद के प्रोग्राम किए जा सकते है।

हौज़ा न्यूज़ः समाज में एकता और भाईचारा बनाए रखने के लिए मीडिया का क्या किरदार होना चाहिए?

डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वीः समाज मे एकता और भाईचारा बनाए रखने के लिए  
 • नफ़रत और तफ़रक़ा फैलाने से बचना
 • भाईचारे और इंसानियत की तालीम को आम करना
 • अच्छे रोल मॉडल्स को सामने लाना
 • उम्मत के कॉमन मसाइल पर जागरूकता फैलाना इत्यादी मीडिया का किरदार होना चाहिए

हौज़ा न्यूज़ः क्या हफ़्ता-ए-वहदत केवल मुसलमानों तक महदूद है या इसमें दूसरे मज़ाहिब के लोग भी शामिल हो सकते हैं?
डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वीः यह हफ़्ता सिर्फ़ मुसलमानों तक महदूद नहीं है। इसका पैग़ाम इंसानियत, भाईचारे और अमन के लिए है। दूसरे मज़ाहिब के लोग भी इसमें शामिल होकर मोहब्बत और इंसानियत का संदेश आम कर सकते हैं।
हौज़ा न्यूज़ः विभिन्न मतभेदों के बावजूद वहदत को कैसे कायम रखा जा सकता है?
 • मुक़द्दसात का एहतिराम
 • इख़्तिलाफ़ात को इल्मी दायरे तक सीमित रखना
 • कॉमन दुश्मन और कॉमन मसाइल पर मुत्तहिद होना
 • “इख़्तिलाफ़ राय के बावजूद हम भाई हैं” का शऊर पैदा करना

हौज़ा न्यूज़ः हफ़्ता-ए-वहदत के संदेश को सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर कैसे फैलाया जा सकता है?

डॉ. सय्यद हादी रज़ा तक़वीः हफ़्ता ए वहदत को सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफ़ार्म 
 • ख़ूबसूरत वीडियो और पोस्टर बनाकर
 • हैशटैग और ऑनलाइन कैंपेन के ज़रिए
 • लाइव लेक्चर और वेबिनार
 • उलमा और यूथ मिलकर पॉज़िटिव कंटेंट शेयर करके फैलाया जा सकता है।

टैग्स

आपकी टिप्पणी

You are replying to: .
captcha