हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, यह हदीस "बिहार उल-अनवार" पुस्तक से ली गई है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
عَنْ أَحْمَدَ بْنِ عِيسَى قَالَ: قَالَ لِي جَعْفَرُ بْنُ مُحَمَّدٍ عَلَيْهِ السَّلَامُ:
إِنَّهُ لَيَعْرِضُ لِي صَاحِبُ الْحَاجَةِ فَأُبَادِرُ إِلَى قَضَائِهَا مَخَافَةَ أَنْ يَسْتَغْنِيَ عَنْهَا صَاحِبُهَا.
अहमद बिन ईसा से वर्णित है कि इमाम जाफ़र सादिक (अ) ने मुझसे फ़रमाया:
वास्तव में, जब भी कोई मोहताज और ज़रूरतमंद व्यक्ति मेरे पास आता है, तो मैं तुरंत उसकी ज़रूरत पूरी करने की कोशिश करता हूँ, इस डर से कि उसे मेरी मदद की ज़रूरत न रहे और नेकी का यह अवसर मेरे हाथ से न निकल जाए।
बिहार उल अनवार, भाग 74, पेज 317, हदीस 76
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