हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , शहीद उस्ताद मुर्तज़ा मुतह्हरी ने अपनी एक किताब में मरहूम आयतुल्लाहिल उज़्मा बुरूजर्दी का एक वाक़िया नक़ल किया है जिसमें वह "नादान दोस्तों से तक़ैय्या" की फलसफियाना हिकमत को बयान करते हैं।
उस्ताद मुतहहरी लिखते हैं,जब मैं हौज़ा इल्मिया क़ुम में मुक़िम था और मरहूम आयतुल्लाह बुरूजर्दी के पुरफ़ैज़ दर्स में शिरकत का शरफ़ हासिल था, एक दिन दर्स ए फ़िक़्ह के दौरान एक हदीस का ज़िक्र आया।
हदीस का मफ़हूम यह था कि किसी शख़्स ने इमाम जाफर सादिक से एक मसला पूछा। इमाम ने जवाब दिया।
उस शख़्स ने अर्ज़ किया,यही सवाल मैंने आपके वालिद इमाम मुहम्मद बाक़िर से भी किया था, लेकिन उन्होंने उसका दूसरा जवाब दिया था। अब दोनों में से कौन सा दुरुस्त है?
इमाम सादिक ने फ़रमाया,जो मेरे वालिद ने फ़रमाया, वह दुरुस्त है।फिर इमाम ने वज़ाहत की,हमारे शिया उस ज़माने में जब मेरे वालिद के पास आते थे तो ख़लूस नियत से आते थे, मक़सद यह होता था कि हकीकत जानें और उस पर अमल करें, इस लिए मेरे वालिद उनसे खरी-खरी बात कहते थे।
लेकिन जो लोग आज मुझसे सवाल करते हैं, उनका इरादा अमल का नहीं होता। वह सिर्फ़ यह देखना चाहते हैं कि मैं क्या कहता हूं, ताकि बातों को इधर-उधर नक़ल करके फितना पैदा करें। इस लिए मैं उनके साथ तक़ैय्या से काम लेता हूं।
उस्ताद मुतहहरी लिखते हैं,चूंकि यह हदीस इस बात पर मुश्तमिल थी कि इमाम ने "शियों से ख़ुद तक़ैय्या" किया, न कि मुख़ालिफ़ीन से इस लिए यह मरहूम आयतुल्लाह बुरूजर्दी के दिल की बात कहने का मौका बन गई।
उन्होंने फ़रमाया,यह कोई तअज्जुब की बात नहीं, बल्कि अपने लोगों से तक़ैय्या करना कभी ज़्यादा ज़रूरी और अहम होता है।
मैं ख़ुद जब मर्ज़े-आम बना तो इब्तिदा में यह गुमान था कि मेरा काम इस्तिंबात व इज्तिहाद है और लोगों का काम अमल करना है। मैं फतवा दूंगा और लोग अमल करेंगे।
लेकिन कुछ ऐसे फतवों के तजुर्बे के बाद जो लोगो के ज़ौक के ख़िलाफ़ थे समझ गया कि मामला ऐसा नहीं है।
स्रोत:
उस्ताद मुतह्हरी,किताब: दह गुफ़्तार, पेज ३०४-३०५
आपकी टिप्पणी