सोमवार 22 दिसंबर 2025 - 12:40
माहे रजब में सबसे अफ़ज़ल अमल क्या है? रहबर ए इंक़ेलाब ए इस्लामी की अहम हिदायतें

हौज़ा / माह ए मुबारक रजब अल्लाह तआला की तरफ़ रुजू, दुआ, तवस्सुल और ख़ास तौर पर इस्तिग़फ़ार का महीना है।रहबर-ए-इंक़ेलाब-ए-इस्लामी के मुताबिक़ इस बरकत वाले महीने में सबसे ज़्यादा शायस्ता और अफ़ज़ल अमल इस्तिग़फ़ार है, क्योंकि कोई भी इंसान अल्लाह की मग़फ़िरत से बे नियाज़ नहीं हो सकता।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , माहे रजब की शुरुआत के मौक़े पर रहबर-ए-मुअज़्ज़म के बयानों से चुने हुए अंश पेश किए जा रहे हैं, जिनमें इस महीने से भरपूर फ़ायदा उठाने की ताकीद की गई है।

माहे-रजब में सबसे शायस्ता अमल रहबर-ए-इंक़ेलाब-ए-इस्लामी फ़रमाते हैं,माहे-रजब में इंसान जो सबसे बेहतरीन अमल अंजाम दे सकता है, वह इस्तिग़फ़ार है। हक़ीक़त यह है कि हम सबको अल्लाह तआला की बारगाह में इस्तिग़फ़ार की सख़्त ज़रूरत है।

मग़फ़िरत-ए-इलाही दुनिया और आख़िरत दोनों में इंसान के लिए सबसे बड़ी नेमत है। यहाँ तक कि अल्लाह के औलिया और ख़ुद पैग़म्बर-ए-ख़ुदा हज़रत मुहम्मद ﷺ भी मग़फ़िरत-ए-इलाही से बे-नियाज़ नहीं हैं।

आपने क़ुरआन-ए-करीम की एक आयत की तरफ़ इशारा करते हुए फ़रमाया कि इंसान कभी भी अल्लाह की इबादत का हक़ पूरी तरह अदा नहीं कर सकता; इसी कमी और नातवानी की वजह से इस्तिग़फ़ार ज़रूरी है।

माहे रजब: दुआ और तवस्सुल का महीना रहबर-ए-मुअज़्ज़म के अनुसार माहे-रजब एक क़ीमती मौक़ा है; यह दुआ, तवस्सुल, तवज्जोह और इस्तिग़फ़ार का महीना है। इंसान को यह गुमान नहीं करना चाहिए कि वह इस्तिग़फ़ार से बे-नियाज़ है। पैग़म्बर-ए-इस्लाम स.ल.रोज़ाना कम से कम सत्तर मर्तबा इस्तिग़फ़ार किया करते थे।ख़ास तौर पर आज के दौर में, जब इंसान दुनियावी मशग़ूलियतों में घिरा हुआ है, इस्तिग़फ़ार दिल और रूह की आलूदगियों को पाक करने का ज़रिया बनता है।

माहे-रजब, शाबान और रमज़ान की तैयारी रहबर-ए-इंक़ेलाब-ए-इस्लामी ने फ़रमाया कि माहे-रजब दरअसल माहे-शाबान और उसके बाद माहे-रमज़ान की तम्हीद है। ये तीनों महीने इंसान के लिए ख़ुद-साज़ी, रूहानी ज़ख़ीरा और ज़िंदगी के बड़े मराहिल के लिए क़ुव्वत फ़राहम करने का सुनहरा मौक़ा हैं।

माहे-रजब की दुआओं से मालूम होता है कि इंसान को इस महीने में हिदायत, जद्द-ओ-जहद, सब्र, अमल और यक़ीन जैसी सिफ़ात हासिल करने की दुआ करनी चाहिए, क्योंकि यही औसाफ़ इंसान को रूहानी बुलंदी अता करती हैं।

माहे-मुबारक रजब में इस्तिग़फ़ार को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाना, अल्लाह तआला की मग़फ़िरत हासिल करने और आने वाले रूहानी मराहिल के लिए ख़ुद को तैयार करने का सबसे बेहतरीन ज़रिया है।

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