हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, निम्नलिखित रिवायत “मुस्तद्रक अल-वसाइल” किताब से ली गई है। इस रिवायत का पाठ इस तरह है:
قال امیرالمؤمنین علیہ السلام:
ثَلاثٌ لایُسْتَحْیی مِنْهُنَّ:خِدْمَهُ الرَّجُلِ ضَیْفَهُ، وَ قِیامُهُ عَنْ مَجْلِسِهِ لِأَبِیهِ وَ مُعَلِّمِهِ، وَ طَلَبُ الْحَقِّ وَ إِنْ قَلَّ
अमीरूल मोमेनीन इमाम अली (अ) फ़रमाते हैं:
तीन चीज़ें हैं जिनसे किसी को शर्मिंदा नहीं होना चाहिए:
1. मेज़बान बनकर अपने मेहमान की सेवा करना,
2. अपने पिता और गुरु के सम्मान में अपनी जगह से उठना,
3. अपना हक़ मांगना, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो।
मुस्तद्रक अल-वसाइल, भाग 16, पेज 260
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