۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
मौलाना मुहम्मद ज़की हसन नूरी

हौज़ा / मासिक पत्रिका जाफरी ऑब्जर्वर मुंबई के संपादक ने अपने संबोधन में कहा कि औपनिवेशिक और अहंकारी शक्तियां हमेशा उलेमा-ए-हक से घृणा करती रही हैं और इस्लाम और शिया धर्म को मिटाने के लिए अहले बैत (अ.स.) के प्रचारकों और रक्षकों के सर काटती रही हैं। लेकिन उन्हे इस बात की खबर नही है कि शहीदों का खून व्यर्थ नहीं जाता बल्कि राष्ट्रों को पुनर्जीवित करता है और उनके अस्तित्व का गारंटर बनता है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, 1 फरवरी को शहीदे सालिस अयतुल्लाह काज़ी सैयद नूरुल्लाह हुसैनी मरअशी शुस्त्री के शहादत दिवस के अवसर पर, मुंबई के मोमेनीन ने बांद्रा स्थित जामा मस्जिद में तीन दिवसीयशोक सभा आयोजित की। इस कार्यक्रम में प्रसिद्ध विद्वान और खतीब हुज्जत-उल-इस्लाम और मुस्लेमीन मौलाना मुहम्मद जकी हसन नूरी मासिक पत्रिका जाफरी ऑब्जर्वर मुंबई के संपादक ने सभा को संबोधित करते हुए शिया इतिहास के पांच वरिष्ठ न्यायविदों का उल्लेख किया और शहीद सालिस के जीवन और शहादत पर प्रकाश डाला।

मौलाना ने कहा कि इसतेमारी और इस्तिकबारी शक्तियों को हमेशा उलेमा-ए-हक़ से बेज़ार रही है और इस्लाम और शिया धर्म को मिटाने के लिए अहलुल बेत (अ.स.) के प्रचारकों और रक्षकों की गर्दने मारती रही है। लेकिन उन्हे इस बात का ज्ञान नहीं है कि शहीदों का खून बर्बाद नहीं होता बल्कि राष्ट्रों को पुनर्जीवित करता है और उनके अस्तित्व का गारंटर बनता है।

मौलाना ने स्पष्ट किया कि मानवता का इतिहास ऐसे अभिमानी और स्वयंभू शासकों से भरा है, जिनके उत्पीड़न और हक़ दुश्मनी ने ज्ञान और बुद्धिमत्ता  के अनगिनत मिनारो को नष्ट कर दिया है, लेकिन फिर भी शियावाद आज भी पूरी तरह से बना हुआ है और आगे भी बना रहेगा, क्योंकि इसके संरक्षक इमाम पर्दा-ए-गैब के पीछे से इस धर्म का मार्गदर्शन कर रहे है।

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