۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय

हौज़ा / विश्व प्रसिद्ध अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में एक छत के नीचे दो विभाग हैं, एक सुन्नी धर्मशास्त्र और दूसरा शिया धर्मशास्त्र। इसके अलावा, दोनों संप्रदायों के पास एक प्रशासनिक विभाग है जिसे धर्मशास्त्र निदेशालय कहा जाता है। धर्मशास्त्र निदेशालय की जिम्मेदारी मस्जिदों, कब्रिस्तानों और धार्मिक मामलों की देखरेख करना है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, जब सर सैयद अहमद खान ने मदरसतुल-उलूम की स्थापना की, तो उन्होंने एक नियमित समिति बनाई, जिसके सदस्य संस्था में धार्मिक शिक्षा और उसके पाठ्यक्रम पर चर्चा करके उचित सुझाव तैयार करें और ताकि उस सुझाव को व्यवहारिक बनाने मे पहल की जा सके। 

उल्लेखनीय है  कि मदरसा के संस्थापक सर सैयद अहमद खान ने शिया धर्मशास्त्र और सुन्नी धर्मशास्त्र दोनों के लिए अलग अलग समिति बनाई थी।

सुन्नी धर्मशास्त्र विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. नदीम अशरफ ने एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि मदरसतुल-उलूम की नींव रखने वाले सैयद अहमद खान खुले दिमाग और एक दूरदर्शी व्यक्ति थे।

उन्होने सोचा कि सर्वप्रथम मुसलमानों को उस ज्ञान से लैस होना चाहिए जिसके माध्यम से अंग्रेज उन पर शासन कर रहे हैं। इसी के साथ उनके दिमाग के एक दूसरे हिस्से में यह बात भी थी कि जब तक कि धार्मिक शिक्षा के साथ छात्रों का रिश्ता सुचारू नहीं होता तब तक एक सफल व्यक्ति की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए, सर सैयद अहमद खान ने औपचारिक धार्मिक शिक्षा के लिए एक समिति बनाई।

सुन्नी धर्मशास्त्र विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. नदीम अशरफ
सुन्नी धर्मशास्त्र विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. नदीम अशरफ


1875 मे जब सर सैयद अहमद खान ने मदरसतुल--उलूम की स्थापना करने का निश्चय किया, तो उनके इरादे पर सवाल उठाया गया और कहा गया कि वह अपने विचारों को बढ़ावा देने और प्रचार करने के लिए एक कॉलेज की स्थापना कर रहे है।

इन सब बातो की अनदेखी करते हुए सर सैयद ने उदारता दिखाई और विद्वानों से यह जिम्मेदारी लेने के लिए कहा और उन्हें आश्वासन दिया कि इस क्षेत्र में कोई हस्तक्षेप नहीं होगा बल्कि आपके द्वारा दिए गए पाठ्यक्रम के अनुसार धर्मशास्त्र पढ़ाया जाएगा। ताकि छात्रों को आधुनिक ज्ञान के साथ-साथ धार्मिक ज्ञान भी मिल सके।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के धर्मशास्त्र संकाय जहां शिया- सुन्नी धर्मशास्त्र की शिक्षा दी जाती हैं

अंतः, दारुल उलूम देवबंद के संस्थापक मौलाना कासिम नानोतवी के दामाद मौलाना अब्दुल्लाह अंसारी को छात्रों के धार्मिक प्रशिक्षण और विकास के लिए चुना गया।

मौलाना अब्दुल्लाह अंसारी ने 1893 में अलीगढ़ आकर धर्मशास्त्र के अपने कर्तव्यों में लगे रहे और अपने जीवन के अंतिम क्षणो 1925 तक इस पद पर रहे।

उनके नेतृत्व में, मदरसातुल--उलूम ने इस्लामी दुनिया में अपना प्रमुख स्थान और दर्जा स्थापित किया।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के धर्मशास्त्र संकाय जहां शिया- सुन्नी धर्मशास्त्र की शिक्षा दी जाती हैं


इस प्रकार सर सैयद अहमद खान का प्राचीन सालेह और आधुनिक नाफे का सुंदर संयोजन का सपने साकार होने लगा ।

1925 के बाद धर्मशास्त्र दो भागों में विभाजित कर दिया गया।

1- सामान्य धर्मशास्त्र शिक्षा के लिए प्रेसीडेंसी।

२- धार्मिक मामलों के पर्यवेक्षण का निदेशालय।

उस समय के प्रख्यात धार्मिक विद्वान मौलाना सुलेमान अशरफ ने विभाग के प्रमुख के रूप में पदभार संभाला, जबकि मौलाना अबू बकर जून को धर्मशास्त्र के पूर्णकालिक निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था। ये दोनों अकादमिक और धार्मिक हलकों में प्रमुख थे।

एएमयू के धर्मशास्त्र संकाय के डीन प्रो. एम. सऊद आलम कासमी ने एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि धर्मशास्त्र संकाय में दो अकादमिक विभाग हैं, सुन्नी और शिया। इसके अलावा, दोनों संप्रदायों के पास एक प्रशासनिक विभाग है जिसे धर्मशास्त्र निदेशालय कहा जाता है। धर्मशास्त्र निदेशालय की जिम्मेदारी मस्जिदों, कब्रिस्तानों और धार्मिक मामलों की देखरेख करना है।

धर्मशास्त्र संकाय में शिया और सुन्नी दोनों के लगभग 200 छात्र हैं। शिया विभाग में 6 शिक्षक और सुन्नी विभाग में 13 शिक्षक हैं और लगभग 60 रिसर्च स्कालर हैं।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के धर्मशास्त्र संकाय जहां शिया- सुन्नी धर्मशास्त्र की शिक्षा दी जाती हैं

एक नज़र में शिया धर्मशास्त्र विभाग के अध्यक्ष

मौलाना सैयद अली नक़ी नकवी 1960 से 1971 तक विभाग के अध्यक्ष रहे, उसके बाद प्रो. सैयद मुजतबा हसन, प्रो. सैयद क्लब आबिद, प्रो. सैयद कासिम नकवी, प्रो. सैय्यद मंजूर मोहसिन नकवी, डॉ. मुर्तजा हुसैन, प्रो. सैयद फरमान, प्रो. हुसैन, प्रो. सैयद अली मुहम्मद नकवी अध्यक्ष बने। प्रो. तौकीर आलम और प्रो. मुहम्मद सलीम भी धर्मशास्त्र संकाय के अध्यक्ष बने।

एक नज़र में सुन्नी धर्मशास्त्र विभाग के अध्यक्ष

प्रो. सैयद अहमद अकबराबादी ने 1960 से 1979 तक इस विभाग के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। उनके बाद प्रो. क़ाज़ी मज़हरुद्दीन बिलग्रामी, प्रो. फ़ज़लुर रहमान नूरी, प्रो. क़ाज़ी रिज़वानुल्लाह, प्रो. तकी अमिनी, प्रो. रूफ़ा इक़बाल, प्रो. अब्दुल अलीम ख़ान, प्रो. ज़ैनुल साजिदीन सिद्दीकी, डॉ. नसीम मंज़ूर, प्रो. मुहम्मद सऊद आलम कासमी, प्रो. अब्दुल खालिक, डॉ. मुफ़्ती ज़ाहिद अली खान, प्रो. तौकीर आलम और सलीम को विभागाध्यक्ष नियुक्त किया गया।

संक्षेप में, धर्मशास्त्र विभाग विश्वविद्यालय में एक इस्लामी वातावरण स्थापित करने, इस्लामी संस्कृति और मार्गदर्शन को बढ़ावा देने और कुरान और सुन्नत के प्रकाश में छात्रों का मार्गदर्शन करने के लिए पहले दिन से लगा हुआ है।

इसलिए, प्रो. मुहम्मद सऊद आलम कासमी के अनुसार, "यह केवल एक विभाग नहीं है, बल्कि धार्मिक शिक्षा और धार्मिक गतिविधियों का केंद्र है जो विश्वविद्यालय के सभी विभागों से कुछ हद तक जुड़ा हुआ है।"

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