हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, रोज़े आशूर के विभिन्न पहलुओ पर प्रकाश डालते हुए हुज्जतुल-इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी साहब किबला फलक छौलसी ने कहा: रोज़े आशुर को कम महत्वपूर्ण समझने की भूल न करना क्योंकि यह वह दिन है जिस पर मानवता का अस्तित्व निहित है।
अपने बयान को जारी रखते हुए मौलाना ने कहा: अगर आशूरा नहीं होता तो इंसानियत जैसी कोई चीज नहीं होती क्योंकि दुष्ट आदमी के वेश में यज़ीद जैसा शैतान अवतार मानवता को नष्ट करने की कोशिश कर रहा था। जब इमाम हुसैन (अ) ने मानवता के सिर पर मंडराते खतरों के बादलों को देखा, तो उन्होंने अपनी प्यारी मातृभूमि मदीना छोड़ने का फैसला किया।
मौलाना ग़ाफ़िर रिज़वी ने भी कहा: इमाम हुसैन (अ.स.) किसी विशेष राष्ट्र की जागीर नही है बल्कि इमाम हुसैन हर उस इंसान के इमाम हैं जिस दिल मे मोहब्बते इमाम हुसैन है क्योकि इमाम हुसैन (अ.स.) ने इंसानियत को बचाया है अब यह उस पर निर्भर है कि वह इमाम हुसैन पर कितनी आस्था रखता है।
मौलाना ने आगे कहा: यदि आप किसी व्यक्ति की मानवता का आकलन करना चाहते हैं, तो बस अशूरा के दिन उसकी स्थिति देखें! यदि वह वास्तव में एक मनुष्य है, तो वह दु:ख-दुःख से अभिभूत दिखाई देगा, और यदि आशूरा पर उसके चेहरे पर मुस्कान दिखाई दे, तो उसे समझना चाहिए कि वह आशूरा के महत्व को नहीं समझता है। मातम का उद्देश्य समझा। आशुरा के दिन का शोक मानवता का प्रमाण है।