۱۱ تیر ۱۴۰۳ |۲۴ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 1, 2024
मौलाना ग़ाफ़िर

हौज़ा / इमाम हुसैन (अ.स.) ने अपने क़याम के माध्यम से पूरी उम्मत को गुमराही से बचाया है। अगर इमाम हुसैन नहीं उठे होते तो मुस्लिम उम्मत बर्बाद हो जाती।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट केअनुसार मुहर्रम 1443 हिजरी के पहले दस दिनों के बाद अशरा ए सानी और खम्सा ए मजलिस के सिलसिले शुरू हो गए। नई दिल्ली में मुहर्रम की 11 तारीख को शुरू हुई खम्सा ए मजलिस की तीसरी मजलिस मे मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी ने इमाम हुसैन (अ.स.) के मक़ासिद पर रोशनी डालते हुए कहा इमाम हुसैन (अ.स.) ने अपने क़याम के माध्यम से पूरी उम्मत को गुमराही से बचाया है। अगर इमाम हुसैन नहीं उठे होते तो मुस्लिम उम्मत बर्बाद हो जाती।

मौलाना ने अपने ख़िताब को जारी रखते हुए कहा: आज दुनिया में जो भी सम्मान है वह इमाम हुसैन (अ) के कारण है। उम्मते मुस्लेमा इमाम हुसैन का जितना भी शुक्रिया अदा करे वह कम है क्योकि अगर इमाम हुसैन (अ.स.) क़याम न करते तो दुनिया में किसी भी रिश्ते का सम्मान नहीं होता।

मौलाना ग़ाफ़िर रिज़वी ने आगे कहा: इमाम हुसैन (अ) के क़याम का वास्तविक उद्देश्य अच्छे काम करने और बुराई से मना करना था। इमाम हुसैन (अ.स.) इस्लाम का असली चेहरा दुनिया के सामने प्रकट करना चाहते थे जिसे यज़ीद विकृत करना चाहता था। यही इमाम हुसैन (अ.स.) ने किया। उन्होने मदीना मुनवारा की अपनी प्यारी मातृभूमि को छोड़ना पसंद किया। अपने भरे घर को उजड़ता हुआ देखना स्वीकार किया किंतु आपको यह स्वीकार नही हुआ कि इस्लाम का चेहरा विकृत हो जाए।

मौलाना ने यह भी कहा: इमाम हुसैन ने यह नही कहा कि मै यज़ीद के प्रति निष्ठा की शपथ नहीं लूगा बल्कि यह भी कहा कि मेरे जैसा यज़ीद जैसे के प्रति निष्ठा की शपथ नहीं ले सकता।

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