۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
सैय्यद

हौज़ा/ भारत सरकार से अपील,इस्लाम धर्म ने सभी महिलाओं और लड़कियों को हर प्रकार की शिक्षा तथा सामाजिक,राजनीतिक गतिविधि तथा सभी क्षेत्रों में अपनी भागीदारी की पूर्ण अनुमति दी है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , भारत एक लोकतंत्र देश है और इसकी खूबसूरती यही है कि यहां हर धर्म के लोग अपने रीति रिवाज के तहत जीवन बिताते हैं,
महामहीम माननीय राष्ट्रपति महोदय
भारत सरकार नई दिल्ली।
प्रार्थी महामहीम माननीय राष्ट्रपति महोदय से सविनय विनम्र निवेदन करता है:

1. यह कि हमारा भारत एक ऐसा लोकतांत्रिक देश है, जिसमें अनेकों धर्म और अनेकों जातियों को लोग प्राचीनकाल से एक साथ बिना किसी मतभेद के निवास करते चले आ रहे हैं, तथा सभी भारतवासी अपने-अपने धर्मों का पालन करने के साथ-साथ एक दूसरे के धर्मों का आदर व सम्मान करते रहे हैं।

2. यह कि सभी भारतवासियों ने अलग-अलग धर्म व जाति के होने के पश्चात भी प्राचीनकाल से एक दूसरे के सुख-दुःख में बराबर के सहयोगी होकर हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आपसमें सब भाई-भाई का नारा दिया जो आज पूरे विश्व में दोहराया जाता है।

3. यह कि अंग्रेजों की गुलामी से देश को आज़ाद कराने में भी सभी धर्म और सभी जाति के भारतवासियों ने अपना बहुमूल्य बलिदान दिया है, परन्तु सबसे अधिक मुस्लिम समाज के लोग थे। जिसका प्रमाण दिल्ली के इण्डिया गेट पर अंकित कुल 95,300 स्वतंत्रता सेनानियों में से 61,395 नाम मुस्लिम समाज के स्वतंत्रता सेनानियों के हैं, परन्तु बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण एवं दुखद है कि आज उसी मुस्लिम समाज के लोगों को देश का गद्दार कहा जाता है।

4. यह कि स्वतंत्रता सेनानियों के इस बलिदान के बाद देश अंग्रेजों की गुलामी से आज़ाद होकर एक गणतन्त्र राज्य के रूप में स्थापित स्थापित होने के पश्चात देश में न्याय व्यवस्था को बनाये रखने के लिए हमारे संविधान की स्थापना की गई। क्योंकि भारत में अनेकों धर्म और जातियों को लोग प्राचीनकाल से एक साथ आपस में भाईचारे के साथ निवास करते चले आ रहे हैं। जिसके कारण हमारे भारतीय संविधान ने सभी भारतवासियों को अपने-अपने धर्म एवं धर्म के रीतिरिवाजों और नियमों का पालन करने का पूर्ण हक व अधिकार दिया है।

5. यह कि किसी भी धर्म-जाति के धार्मिक आस्था, रीतिरिवाजों, नियमों या भावनाओं को आहत करना भारतीय संविधान के विरुद्ध है, तथा भारतीय सीमा के अन्तर्गत भारतीय संविधान के विरुद्ध किया गया कृत्य एक दण्डनीय अपराध है।

6. यह कि भारत में निवास करने वाले अनेकों धर्म के मानने वाले हैं, जैसे हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई परन्तु कोई भी धर्म किसी भी महिला को नग्न/अर्धनग्न होकर घूमने की अनुमति नहीं देता है। बल्कि सभी ने महिलाओं/लड़कियों को पर्दे/हिजाब (नक़ाब/घुँघट) में रहने कि हिदायत दी है।

7. यह कि हमारी संस्कृति/सभ्यता पर लगातार प्रहार होते-होते आज देश में यह दुर्भाग्यपूर्ण वातावरण बन गया है कि यदि किसी भी धर्म,जाति की कोई भी महिला,लड़की अपनी सभ्यता/संस्कृति का पालन करते हुए पर्दे/हिजाब (घुँघट/नक़ाब) में रहती है तो उसे हीन दृष्टि से देखा जाता है और उसकी निन्दा की जाती है, लेकिन जो महिला/लड़की अंग्रेजी सभ्यता के आधार पर जितने कम और छोटे कपड़े पहनकर अपनी नग्नता दिखाती है उसकी उतनी ही सराहना की जाती है। यह हमारे देश की सभ्यता/संस्कृति जो कि सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है उसके लिए एक ज़हर के समान्य है।

8. यह कि स्वयं भारत सरकार द्वारा महिलाओं के हित में महिला सम्मान, बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ, जैसी अनेकों कार्यक्रम/योजनाओं का संचालन किया जा रहा है।

9. यह कि इस्लाम धर्म ने सभी महिलाओं लड़कियों को सभी प्रकार की पर शिक्षा तथा सामाजिक,राजनीतिक गतिविधि तथा सभी क्षेत्रों में अपनी भागीदारी की पूर्ण अनुमति दी है।

10. यह कि कर्नाटक में मुस्लिम समाज की महिलाओं/लड़कियों को पर्दे/हिजाब (घुँघट/नक़ाब) पहन कर शैक्षिक संस्थानों में आने से रोका जा रहा है।जोकि भारतीय संविधान के अन्तर्गत असंवैधानिक एवं आपराधिक कृत्य है। जिसके विरोध में देश में कई स्थानों पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है। जोकि भारत की संस्कृति,सभ्यता एवं एकता के लिए अभिशाप है। इस कृत्य से हिन्दू-मुस्लिम एकता को बराबर खतरा बना हुआ है। जो कि हमारे भारत देश के लिए घातक है।

अतः श्रीमान जी से सविनय विनम्र निवेदन है कि यदि कोई महिला,लड़की किसी शैक्षिक संस्थान में शिक्षा ग्रहण करने, व्यवसायिक क्षेत्र में व्यवसाय नौकरी करने अथवा सरकारी संस्थान में नौकरी करने या अपने किसी कार्य के कारण पर्दे,हिजाब (घुँघट/नक़ाब) में जाती है तो उसका विरोध करने तथा संविधान का उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध दण्डात्मक कार्यवाही करने का आदेश पारित करने की कृपा करें।
लखनऊ प्रार्थी
दिनाँक: 11/02/2022
मौलाना सैय्यद हुसैन मेहदी रिज़वी
एक भारतीय नागरिक
आवश्यक कार्यवाही हेतु सेवा में प्रेषित:
माननीय मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली।
माननीय प्रधानमंत्री भारत सरकार नई दिल्ली।

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