हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने रविवार की शाम पहली रमज़ान को क़ुरआन से लगाव नाम की महफ़िल में तक़रीर की। यह महफ़िल तेहरान में इमाम ख़ुमैनी इमामा बारगाह में आयोजित हुई।
तक़रीर के कुछ महत्वपूर्ण बिदुः
रमज़ान का महीना, अल्लाह की मेहमानी और रहमते परवरदिगार की असीम व्यापकता का महीना है। अगर आप सब बेहतरीन अंदाज़ में इस मेहमानी में शरीक हुए तो अल्लाह आपको क्या देगा? अल्लाह की मेहमान नवाज़ी यह है कि वह अपने क़रीब होने का मौक़ा देता है और इससे बड़ी कोई चीज़ नहीं।
जब हम क़ुरआन पढ़ते हैं तो मानो अल्लाह हमसे गुफ़तुगू करता है। यह गुफ़तुगू केवल अतीत और क़ुरआनी क़िस्सों के बारे में नहीं बल्कि हमारे मौजूदा हालात से संबंधित है जो इस ख़ास ज़बान में अंजाम पाती है। इसका मक़सद यह है कि हमें अपना रास्ता मिल जाए।
क़ुरआन की गहराइयों और पोशीदा तथ्यों तक पहुंचने का रास्ता है चिंतन, अध्ययन और ध्यान। अलबत्ता इसकी एक शर्त भी है दिल की पाकीज़गी और यह आप नौजवानों के लिए इस नाचीज़ जैसे लोगों की तुलना में आसान है।
क़ुरआन को बार बार पढ़ना चाहिए। शुरु से आख़िर तक। मुसलसल और लगातार। क़ुरआन पैग़म्बर का चमत्कार है। पैग़म्बर का दीन अमर है तो उनका चमत्कार भी अमर होना चाहिए। यानी इतिहास के हर दौर में इंसान ज़िदगी के लिए ज़रूरी शिक्षाएं क़ुरआन से हासिल कर सकता है।