۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
इमाम

हौज़ा/हज़रत इमाम मेंहदी अ.स. की याद और उनके ज़ुहूर के बाद पूरी दुनिया में होने वाले परिवर्तनों का एहसास लोगों के दिलों में आशा की किरण बना हुआ है और आज नहीं कल पूरी दुनिया से अत्याचार और अत्याचारियों का अंत हो जायेगा और पूरी दुनिया में शांति और न्याय का बोलबाला होगा।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत इमाम मेंहदी अ.स. की याद और उनके ज़ुहूर के बाद पूरी दुनिया में होने वाले परिवर्तनों का एहसास लोगों के दिलों में आशा की किरण बना हुआ है और आज नहीं कल पूरी दुनिया से अत्याचार और अत्याचारियों का अंत हो जायेगा और पूरी दुनिया में शांति और न्याय का बोलबाला होगा। कोई किसी पर अत्याचार नहीं करेगा। दुनिया से निर्धनता मिट जायेगी। लोग धार्मिक धनराशि (ज़कात, ख़ुम्स) देने के लिए मुस्तहक व पात्र व्यक्ति को तलाश करेंगे परंतु उन्हें कोई ग़रीब नहीं मिलेगा।
कितना सुंदर वह दिन होगा जब न्याय के सूरज का उदय होगा। पूरी दुनिया सुकून की सांस लेगी। आध्यात्मिक शिखर की यात्रा तय करने के लिए मानवता के दिन शुरु हो जायेंगे। पैग़म्बरे इस्लाम (स.ल.व.व.) ने महामुक्तिदाता इमाम मेंहदी अलैहिस्सलाम को अहलेबैत (अ.स.) के मोर की संज्ञा दी है। उनका तेजस्वी व प्रकाशमयी चेहरा होगा। वह सीरत और सूरत दोनों में सबसे अधिक पैग़म्बरे इस्लाम (स.ल.) जैसे होंगे। वह पैग़म्बरे इस्लाम (स.ल.) के पवित्र परिजनों के तारे हैं। उनके पावन अस्तित्व का आभास ही बहुत से लोगों के दिलों की ताक़त और आशा की किरण है।

दुनिया के बहुत से अत्याचारियों को पता है कि महामुक्तिदाता इमाम मेंहदी अलैहिस्सलाम कौन हैं? वे जानते हैं कि उनके आगमन का मतलब अत्याचार और अत्याचारियों का अंत है इसलिए वे इमाम मेंहदी अलैहिस्सलाम के ज़ुहूर की आस्था से लोगों का ध्यान हटाने व भटकाने के लिए विभिन्न प्रकार का दुष्प्रचार कर रहे हैं। महान व सर्वसमर्थ अल्लाह की सहायता से वह पूरी दुनिया से अत्याचारियों का अंत कर देंगे। वह समस्त ख़ूबियों व नेकियों के प्रतीक हैं वह समस्त एक लाख 24 हज़ार पैग़म्बरों और 11 इमामों के उत्तराधिकारी व प्रतिनिधि हैं। इस आधार पर उनके अंदर समस्त पैग़म्बरों और इमामों के सदगुण हैं। दूसरे शब्दों में वह समस्त ख़ूबियों और सदगुणों की प्रतिमूर्ति हैं।

महामुक्तिदाता इमाम मेंहदी अलैहिस्सलाम अल्लाह के अंतिम प्रतिनिधि हैं। 15 शाबान 255 हिजरी कमरी को उनका जन्म इराक़ के शहर सामरा में हुआ था। ग्यारहवें इमाम हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम आपके पिता हैं। किसी को भी उनके पैदा होने की सूचना नहीं थी परंतु उनके पिता यानी इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को यह बात ज्ञात थी। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने अल्लाह का शुक्र अदा किया और कहा कि ख़ुदा का शुक्र है कि उसने मुझे दुनिया से नहीं उठाया मगर यह कि अपने प्रतिनिधि को मुझे दिखा दिया जो सीरत और सूरत में सबसे अधिक पैग़म्बरे इस्लाम (स.ल.) से मिलता- जुलता है। ख़ुदावंदे करीम लोगों की नज़रों से ओझल होने के काल में उसकी रक्षा करेगा और उसके बाद उसे प्रकट करेगा और जिस तरह से दुनिया में अत्याचार व भ्रष्टाचार व्याप्त होगा उसी तरह वह उसे न्याय से भर देगा।

समय के अत्याचारी अब्बासी शासकों ने रिवायतों के माध्यम से इस बात को सुन रखा था कि महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम के प्रकट होने के बाद अत्याचार और अत्याचारियों का सफ़ाया किया जायेगा। इन अत्याचारी शासकों ने यह भी सुन रखा था कि महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के बेटे होंगे इसलिए उन्होंने इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम पर कड़ी निगरानी रखी और इस बात की पूरी कोशिश की कि इमाम महदी अलैहिस्सलाम पैदा ही न होने पायें।

अब्बासी शासकों ने इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के घर को सैनिक छावनी के बीच में करार दिया और इमाम के घर में आना- जाना बिल्कुल न के बराबर था परंतु महान व सर्वशक्तिमान ख़ुदावंदे आलम जब किसी चीज़ का इरादा कर लेता है तो पूरी दुनिया मिलकर भी उस चीज़ को होने से नहीं रोक सकती। अब्बासी शासक और उनके कारिन्दों को महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम के जन्म की भनक भी न लगी। उसकी एक बहुत बड़ी वजह यह थी जब महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम अपनी माता हज़रत नरगिस ख़ातून (स.अ) के गर्भ में थे तो गर्भ का लेशमात्र भी चिन्ह दिखाई नहीं दिया। इसलिए दुश्मन निश्चिंत थे और उनका ध्यान ही उधर नहीं गया कि इमाम महदी अलैहिस्सलाम दुनिया में आने वाले हैं।

महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम बहुत ही कम समय तक अपने पिता की छत्रछाया में थे। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने इस दौरान अपने बहुत ही विश्वस्त और भरोसेमंद लोगों को महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम का परिचय कराया और उन्हें उज्वल व प्रकाशमयी भविष्य की सूचना दी।

जब इमाम हसन अलैहिस्सलाम शहीद हुए तो उस वक़्त महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम की उम्र मात्र 5 साल थी। उसी समय से उनकी इमामत का काल आरंभ हो गया। जिस कारण दुश्मनों और अब्बासी शासकों ने महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम के जन्म का पता नहीं चला उसी कारण वह बहुत शीघ्र लोगों की नज़रों से ओझल हो गये। इस प्रकार से कि अपने कुछ विशेष प्रतिनिधियों के माध्यम से इमाम लोगों से संपर्क में थे और लोगों के प्रश्नों का जवाब देते थे।

जब इमाम लोगों की नज़रों से ओझल हुए तो कुछ समय के लिए वह अपने विशेष चार प्रतिनिधियों के माध्यम से लोगों से संपर्क में थे और इस समय को "ग़ैबते सुग़रा" कहा जाता है और उसके बाद इमाम पूरी तरह लोगों की नज़रों से ओझल हो गये और अब कोई भी उनके संपर्क में नहीं है और इस काल को "ग़ैबते कुबरा" कहा जाता है और अब लोग मुजतहीद (वरिष्ठतम धर्मशास्त्री) के आदेशों और उसके फ़त्वों पर अमल कर रहे हैं। रिवायतों में है कि 69 वर्षों तक "ग़ैबते सुग़रा" का काल चला और उसके बाद "ग़ैबते कुबरा" का काल आरंभ हुआ जो अब तक चल रहा है और यह ज्ञात नहीं है कि यह काल अभी कितने और दिनों या सालों तक चलेगा।

इस्लामी रिवायतों में है कि महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम शुक्रवार के दिन ख़ानए काबा से प्रकट होंगे परंतु किस तारीख़ को इमाम ज़ुहूर करेंगे इस बात का नियत समय किसी भी रिवायत में बयान नहीं किया गया है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) की हदीस है कि इमाम महदी के प्रकट होने का समय केवल ख़ुदा जानता है और जब वह मुनासिब समझेगा वह प्रकट होंगे।

इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम पवित्र क़ुरआन के सूरए हदीद की आयत नंबर 17 का अनुवाद करते हुए इमाम महदी अलैहिस्सलाम के ज़ुहूर की व्याख्या इस प्रकार करते हैं: जान लो कि अल्लाह ज़मीन को मुर्दा हो जाने के बाद ज़िन्दा करेगा। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के अनुसार ख़ुदावंदे करीम इमाम महदी अलैहिस्सलाम के माध्यम से ज़मीन को ज़िंदा करेगा। यानी पूरी दुनिया से अत्याचार व अन्याय का अंत करके इमाम दुनिया को यानी ज़मीन को ज़िन्दा करेंगे इस प्रकार से कि मानो दुनिया का पुनर्जन्म हुआ है। एक वक़्त ऐसा आयेगा जब महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम के 313 विशेष अनुयाई पवित्र नगर मक्का में जमा हो जायेंगे। मक्का नगर के लोग उन्हें देखकर तअज्जुब करेंगे। यह लोग पवित्र काबे के पास महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम की बैअत करेंगे यानी उनकी आज्ञापालन के प्रति अपने कटिबद्ध रहने का एलान करेंगे। उनके जमा होने से पवित्र क़ुरआन की वह आयत याद आती है जिसमें ख़ुदावंदे आलम कहता है: तुम जहां भी रहो ख़ुदा तुम्हें एक स्थान पर जमा करेगा। क्योंकि ख़ुदा हर कार्य पर पूर्णरूप से सक्षम है। महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम के ज़ुहूर को उस दिन के रूप में याद किया जायेगा मानो ख़ुदावंदे करीम का प्रकाश सारे ब्रह्मांड में फैल गया हो।

वास्तव में महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम का ज़ुहूर समस्त ख़ूबियों व अच्छाइयों का प्रकट होना है। उस समय समाज में व्याप्त बुराइयां ख़त्म हो जायेंगी। उस समय ख़ुदाई धर्म इस्लाम के अलावा दूसरे धर्मों में जो कमियां होंगी वे पहले से अधिक स्पष्ट हो जायेंगी और इस्लाम की अच्छाईयां सब पर स्पष्ट हो जायेंगी। दूसरे शब्दों में समस्त लोगों की जीवन शैली एक हो जायेगी, समस्त लोग ख़ुदाई धर्म इस्लाम के अनुयाई हो जायेंगे। समस्त लोग एक ख़ुदावंदे करीम की उपासना करेंगे। कोई भी ग़ैर इस्लाम धर्म का अनुयाई नहीं होगा। मूर्तिपूजा का नाम व निशान नहीं होगा।

महान ईरानी दर्शनशास्त्री मुल्ला सद्रा कहते हैं कि इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम के ज़ुहूर के समय वह कार्य व्यवहारिक होंगे जो पैग़म्बरे इस्लाम (स) की इच्छाओं के अनुसार होंगे। क्योंकि इन दोनों महान हस्तियों के बीच एक आध्यात्मिक संबंध है और इमाम महदी अलैहिस्सलाम के ज़ुहूर के समय जो चीज़ें व्यवहारिक होंगी वास्तव में यह वही चीज़ें होंगी जिन्हें पैग़म्बरे इस्लाम (स) और दूसरे ख़ुदाई दूत व्यवहारिक बनाना चाहते थे।

महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम के ज़ुहूर की एक विशेषता यह होगी कि धर्मशास्त्रियों के मध्य जो मतभेद हैं वे समाप्त हो जायेंगे और एक ही विषय के बारे में जो अलग- अलग फ़त्वे हैं उस समय एक ही आदेश होगा और उसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं होगा और लोग इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम के आदेश को ख़ुदावंदे करीम का आदेश मानकर उस पर अमल करेंगे। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के काल में जिस तरह से लोगों ने मूर्तिपूजा छोड़ दी थी और सब इस्लाम धर्म के अनुयाई हो गये थे उसी तरह इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम के ज़ुहूर के समय भी समस्त लोगों का एक ही धर्म हो जायेगा। पूरी दुनिया में लोग केवल महान व सर्वसमर्थ अल्लाह की उपासना करेंगे। पूरी दुनिया का वातावरण ही बदल जायेगा। पूरी दुनिया में एकेश्वरवाद, न्याय, प्रेम और भाईचारे की बहार बहेगी। कोई भी किसी के साथ ज़ोरज़बरदस्ती नहीं करेगा, कोई किसी पर अत्याचार व अन्याय नहीं करेगा।

इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम के ज़ुहूर के समय की एक विशेषता यह होगी कि उस समय लोगों के संकीर्ण विचार ख़त्म हो जायेंगे। लोगों की सोच बड़ी हो जायेगी लोगों की अक़्ल व बुद्धिपरिपूर्ण हो जायेगी। उस समय लोगों के एक दूसरे से संबंधों के आधार बदल जायेंगे। किसी प्रकार की समस्या के बिना लोगों को अपने अधिकार मिल जायेंगे। लोग एक दूसरे के साथ घुल-मिल कर रहेंगे।

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि मार्गदर्शन और अच्छाइयों के सूरज का उदय होकर रहेगा और समाज में व्याप्त समस्त बुराइयों का अंत उस तरह से हो जायेगा जैसे सूरज के निकलते ही अंधकार का अंत हो जाता है.

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