हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,जिस दिन के बारे में किसी शख़्स को शक हो कि यह शाबान की आख़िरी तारीख़ है या माहे रमज़ान की पहली तारीख़ है तो उस पर उस दिन का रोज़ा रखना वाजिब नहीं है और अगर वह रोज़ा रखना चाहे तो माहे रमज़ान के रोज़े की नीयत नहीं कर सकता।
और न ही ये नीयत कर सकता है कि यदि माहे रमज़ान है तो माहे रमज़ान का रोज़ा है और यदि माहे रमज़ान नहीं है तो क़ज़ा या इसी तरह का अन्य कोई और रोज़ा है ।
बल्कि उसे चाहिए के क़ज़ा रोज़ा की नियत करे और अगर बाद में पता चले कि माहे रमज़ान था, तो वह रोज़ा माहे रमज़ान का रोज़ा गिना जाएगा। लेकिन अगर नियत करे के इस वक़्त अल्लाह जो कुछ मुझ से चाहता है उसे अंजाम दे रहा हूँ और बाद में मालूम हो के माहे रमज़ान था तब भी काफी है यानी वो रोज़ा माहे रमज़ानुल मुबारक का गिना जायेगा।
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