हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली ख़ामनेई ने फरमाया,तौबा का एक भाग इस्तेग़फ़ार है यानी अल्लाह से माफ़ी मांगना।
यह अल्लाह की अज़ीम नेमतों में से है। यानी अल्लाह ने अपने बंदों के लिए तौबा का दरवाज़ा खोल रखा है कि वो कमाल व बुलंदी की राह में आगे बढ़ सकें और गुनाह उन्हें पतन की खाई में न गिरा दे क्योंकि गुनाह इंसान को इंसानियत की बुलंद चोटी से गिरा देता है।
गुनाह की ओर उठने वाला हर क़दम इंसान की आत्मा पर धब्बा लगा देता है और इंसान की पाकीज़गी और रूहानी ताक़त को नुक़सान पहुंचाता है, आत्मा की चमक को ख़त्म कर देता है, उस पर ख़राश पड़ जाती है।
गुनाह रूहानियत के उस पहलू को जो एक इंसान में पाया जाता है और भौतिक दुनिया की बाक़ी मख़लूक़ से जो चीज़ उसे नुमायां करती है, उसकी चमक को इंसान से छीन कर उसको जानवरों बल्कि बेजान चीज़ों के क़रीब कर देता है।
इमाम ख़ामेनेई