हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एतिकाफ़ यह एक क़ुरआनी शब्द है और अल्लाह तआला ने हज़रत इब्राहीम और हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम को हुक़्म दिया था कि वे उनके घर को तवाफ़ करने वालों और एतिकाफ़ करने वालों के लिए पाक व पाकीजा बनाएं।
ख़ुदा का फरमान हैं,और हमने इब्राहीम और इस्माईल से अहद लिया कि हमारे घर को तवाफ़ और एतिकाफ़ करनेवालों और रुकू व सज्दा करनेवालों के लिए पाक और पाकीज़ा बनाए रखो।(सूरह बक़रह, आयत 125)
एतिकाफ़ यानी ख़ुदा के हो जाना
मस्जिद ए जामिया में तीन दिन इबादत, मुनाजात और दुआ के लिए रोज़ा रखकर सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह के लिए ठहरना एतिकाफ़ कहलाता है।
मस्जिद जामिया किसे कहते हैं?
वह मस्जिद जो किसी ख़ास मोहल्ले, इलाक़े या गिरोह से तअल्लुक़ न रखती हो और जहाँ मुख़्तलिफ़ व्यक्तियों की आमद व रफ़्त हो और आम तौर पर लोगों का वहाँ इज्तिमा होता हो तो वह मस्जिद जामिया है और ऐसी किसी भी मस्जिद में एतिकाफ़ हो सकता है, बाक़ी मस्जिदों में एतिकाफ़ सहीह नहीं है।
मकामाते एतिकाफ़:
पांच जगहों पर एतिकाफ़ सहीह है
1. मस्जिदुल हराम, मक्का में
2. मस्जिदुल नबवी, मदीना में
3. मस्जिदुल कूफ़ा, कूफ़ा में
4. मस्जिदुल बसरा, इराक़ में
5. मस्जिद जामिया (जिसकी तारीफ़ ऊपर बयान हो चुकी है)
एतिकाफ़ एक बड़ी इबादत है जिस से रूह को ताज़गी, दिल को नूरानियत और ख़ुदा की ख़िदमत में हाज़िरी का ऐसा मौक़ा नसीब होता है जो कहीं मुयस्सर नहीं होता।
एतिकाफ़ का सवाब:
अहादीस और रिवायात में इसका बहुत ज़ियादा सवाब ज़िक्र है जैसे कि रसूले इस्लाम (स) ने फ़रमाया: माहे रमज़ान के आख़िरी दस दिनों में एतिकाफ़ करने का सवाब दो हज और दो उम्रों के बराबर है। (सफ़ीना अल बिहार)
नबी ए करीम (स) ने फ़रमाया: जो भी अल्लाह के लिए एक दिन एतिकाफ़ करेगा अल्लाह उसके और जहन्नम की आग के बीच तीन ख़ंदकों के बराबर फ़ासला पैदा कर देगा कि एक ख़ंदक की दूरी दूसरे ख़ंदक से पूरब से पश्चिम तक होगी। (कन्ज़ुल उम्माल)
एतिकाफ़ गुनाहों को झाड़ देता है।
रसूल अल्लाह (स) ने फ़रमाया: जो ईमान की बुनियाद पर सवाब के लिए एतिकाफ़ करेगा, अल्लाह उसके गुज़िश्ता सभी गुनाहों को माफ़ करेगा। (कन्ज़ुल उम्माल)
एतिकाफ़ का समय
यह एक ऐसी इबादत है जो साल भर में कभी भी की जा सकती है और रमजान महीने में इसका विशेष महत्व है क्योंकि हमारे पैगंबर (स) ने इस महीने में एतिकाफ़ किया था बल्कि एक रिवायत हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने बयान फ़रमाई है कि पैग़म्बरे अकरम (स) ने रमज़ान के आख़िरी दस दिनों में एतिकाफ़ नहीं छोड़ा यहां तक कि आपकी वफ़ात हो गयी। (सफ़ीनतुल बिहार)
एतिकाफ़ की शुरुआत और समाप्ति
एतिकाफ़ सुबह की अज़ान से शुरू होता है और तीसरे दिन अज़ाने मग़रिब तक समाप्त होता है। यानी अगर इंसान एतिकाफ़ की नियत से अज़ाने सुबह से दस या पांच मिनट पहले मस्जिद में बैठ जाये और दो रातें वहां गुज़ारे तो तीसरे दिन अज़ाने मग़रिब तक एतिकाफ़ मुकम्मल हो जायेगा।
एतिकाफ़ की अवधि
कम से कम तीन दिन का एतिकाफ़ सहीह है, लेकिन यह तीन दिन से कम नहीं होना चाहिए, अलबत्ता छह दिन या इससे अधिक की सीमा निर्धारित नहीं है। लेहाज़ा अगर कोई पांच दिन मोतकिफ़ रहा है तो उसे छठे दिन भी कामिल करना होगा।
बाहर नहीं निकल सकते
खाना-पीना सभी मस्जिद में ही होगा, बस पेशाब व पाख़ाना या ग़ुस्ल के लिए बाहर निकल सकते हैं और मस्जिद के बाहर ग़ैर ज़रूरी कोई काम नहीं कर सकते। लेहाज़ा ज़रुरत से फ़राग़त के बाद जल्द मस्जिद लौट आयेंगे और मस्जिद में ही पूरा समय गुजारेंगे।
*इन चीज़ों के लिए बाहर निकल सकते हैं*
तशीए जनाज़ा करने, बीमार की अयादत के लिए, अगर बीमार हो गए तो डॉक्टर को दिखाने के लिए, जुमा की नमाज़ के लिए, और क़र्ज़ चुकाने के लिए मस्जिद से बाहर निकल सकते हैं या अगर किसी मोमिन की हाजत मोतकिफ़ के बाहर निकलने पर मुनहसिर है तो वह मस्जिद से बाहर निकल सकता है लेकिन इस क़दर मस्जिद से बाहर न रहे कि उसे एतिकाफ़ से ख़ारिज कहा जाए।
हराम चीज़ें
1. ख़ुशबू लगाना या सूँघना
2. हमबिस्तरी वग़ैरह करना
3. शहवानी अमल अंजाम देना
4. बहस और तकरार करना, चाहे दीनी मसला हो या कोई दुनियावी व सियासी मसला हो (लेकिन इल्मी बहस और मुबाहेसा सहीह है)
5. खरीदना और बेचना, यह सभी हालतें एतिकाफ़ में जाइज़ नहीं हैं।
कुछ लाज़िम उमूर
1. एतिकाफ़ करने वाला मुसलमान हो, इसलिए ग़ैर मुसलमान मोतकिफ़ नहीं हो सकता।
2. अक़ल वाला हो, यानी पागल दीवाना ना हो।
3. क़ुर्बत की नियत रखे दिखाने और सुनाने के लिए एतिकाफ़ ना करे।
4. रोज़े अव्वल से तीन दिन की नियत रखता हो।
5. रोज़ादार हो (चाहे वाजिब हो, मुस्तहबी या इजारा का हो), मुमय्यज़ बच्चा भी एतिकाफ़ कर सकता है, बालिग़ होना ज़रूरी नहीं है।
जंगे बद्र और एतिकाफ़
यह एक ऐसी इबादत है कि जंगे बद्र की वजह से रसूल अल्लाह (स) इस साल एतिकाफ़ नहीं कर सके तो आप ने अगले साल रमज़ान मुबारक के आख़िरी दिनों में बीस दिन एतिकाफ़ फ़रमाया, दस दिन क़ज़ा के तौर पर और दस दिन हालिया साल के लिए (उसूले काफ़ी)
दुआ
ख़ुदावंदे आलम हम सब को मुहम्मद और आले मुहम्मद (अ) के सदक़े में माहे मुबारक रमज़ान में एतिकाफ़ जैसी अज़ीम इबादत की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए और हम सभी को अपनी बारगाह में राज़ व नियाज़ और दुआ व मुनाजात की तौफ़ीक़ दे।
आमीन या रब्बल आलमीन