۳۱ اردیبهشت ۱۴۰۳ |۱۲ ذیقعدهٔ ۱۴۴۵ | May 20, 2024
इत्रे क़ुरआन

हौज़ा / इस्लामी समाज की आस्था ही आर्थिक मामलों में ईश्वरीय नियमों को स्वीकार करने का आधार है। किसी धार्मिक समाज में सूदखोरी से दूर रहना इस समाज में धर्मपरायणता का प्रतीक है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم   बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम
‏يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَأْكُلُوا الرِّبَا أَضْعَافًا مُّضَاعَفَةً وَاتَّقُوا اللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ ‌‌ या अय्योहल लज़ीना आमनू ला ताकोलुर रेबा अज़्आफ़म मुज़ाअफ़तन वत तक़ुल्लाहा लअल्लकुम तुफ़लेहूना (आले-इमरान, 130)

अनुवाद: और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है वह अल्लाह का है। वह जिसे चाहता है माफ कर देता है। और वह जिसे चाहता है अज़ाब देता है, और अल्लाह बड़ा क्षमा करने वाला, दयावान है।

क़ुरआन की तफ़सीर:

1️⃣ मूल पूंजी से कई गुना अधिक ब्याज लेना वर्जित है।
2️⃣ ब्याज पर चलने वाली आर्थिक व्यवस्था की निंदा।
3️⃣ पैगंबर (स) की बेसत के दौरान और जाहिलियाह के युग में सूदखोरी की प्रथा का होना।
4️⃣ ब्याज वाली संपत्ति का किसी भी प्रकार से निपटान करना वर्जित है।
5️⃣ युद्धोपरांत युग में सूदखोरी (अवैध आय और लेन-देन) का ख़तरा।
6. आर्थिक मामलों में ईश्वरीय नियमों को स्वीकार करने का आधार इस्लामी समाज का विश्वास है।
7️⃣ धार्मिक समाज में सूदखोरी से बचना, इस समाज की धर्मपरायणता अपनाने का प्रतीक है।
8️⃣ आर्थिक मामलों में, दैवीय धर्मपरायणता और सूदखोरी से परहेज़ के विशेषाधिकार समाज के कल्याण और सफलता के अग्रदूत हैं।

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तफ़सीर राहनुमा, सूर ए आले-इमरान

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