۲۸ شهریور ۱۴۰۳ |۱۴ ربیع‌الاول ۱۴۴۶ | Sep 18, 2024
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हौज़ा / हज्जाज इब्ने मसरूक़ इब्ने जअफ इब्ने सअद अशीरा था आप का कबीला मदहज के एक अज़ीम फर्द थे आप का शुमार हजरत अली अलै० के खास शियों में था। आप कूफे में रहते और हजरत अली अ.स. की खिदमत करते थे।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,आप का पूरा नाम हज्जाज इब्ने मसरूक़ इब्ने जअफ इब्ने सअद अशीरा था। आप का कबीला मदहज के एक अज़ीम फर्द थे आप का शुमार हजरत अली अलै० के खास शियों में था आप कूफे में रहते और हजरत अली अलै० की खिदमत करते थे।

इमामे हुसैन अलै० की मक्के से रवानगी के वक्त हज्जाज भी कूफे से रवाना हुए और मंजिले कसर बनी मकातिल में शरफे मुलाकात हासिल किया ।जब अब्दुल्लाह इब्ने हुर्र जअफ़ी (जिन का खेमा कसर इब्ने मकतिल में पहले से नसब था ) को दावते नुसरत देने के लिए इमामे हुसैन अलै० खुद के खेमे में तशरीफ़ ले गए तो हज्जाज आप के हमराह थे।

जनाबे हज्जाज यौमे आशुरा इमामे हुसैन अलै० की खिदमत में हाजिर हो कर अर्ज़ की मौला! मरने की इजाज़त दीजिये  इमामे  हुसैन  ने इजने जिहाद अता फरमाया और हज्जाज मैदान में तशरीफ़ लाये और नबर्द आज़माई शुरु की आप ने 15 दुश्मनों को क़त्ल करने के बाद हाजिरे खिदमते इमाम हुए और थोड़ी देर मौला की खिदमत में ठहर कर मैदाने जंग में फिर तशरीफ़ लाये और अपने गुलाम "मुबारक” के  साथ मिलकर दुश्मनों से लड़ते रहे। आखिरकार एक सौ पचास (150) दुश्मनों को कत्ल करके शहीद हो गए।

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