हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,आपका पूरा नाम मुजमाअ इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने मुजमाअ इब्ने मालिक इब्ने आयास इब्ने अब्द मनत इब्ने सअद अल-आशिरअ अल-मज्हजी कहीं आंदी था।
आप क़िबला मज़हज के एक नुमाया फर्द थे आपके वालिद अब्दुल्लाह इब्ने मुज्माअ साहिबी-ऐ-रसूल थे और अहदे रिसालत में अच्छी हैसियत के मालिक थे। लोगो की निगह में आपकी बड़ी इज्ज़त थी। खुद मुज्माअ का शुमार ताबेइन में था और आप को अमीरुल मोमिनीन के सहाबी होने का शरफ हासिल था।
जिन लोगो को हुर्र ने इमाम हुसैन अलै० के साथ होने से रोका था उन में आप भी थे। आप ही से इमाम हुसैन अलै ० ने अहले कूफा के हालात अजीब में दरयाफ्त फरमाए थे और उन्ही अब्दुल्लाह ने अर्ज़ की थी की मौला! कूफे के जितने रईस-ओ-सरदार है सब को इब्ने ज्याद ने डरा धमका कर और रूपए देकर आप के खिलाफ कर दिया है सब आप से लड़ने को तैयार है और ऐ मौला! यहीं हाल गरीबो का भी है उन के दिल अगर चे आपके साथ है लेकिन उनकी तलवारे आपकी हिमायत में नहीं है।
फिर आपने अपने कासिद कैस इब्ने मसहर के मुताल्लिक फ़रमाया की मैंने अहले कूफा के नाम उन के ज़रिये से आखिरी ख़त इरसाल किया है। मुज्माअ ने आब्दीदा हो कर जवाब दिया मौला! उन्हें हसीन बिन नामीर ने गिरफ्तार कर के इब्ने ज़याद के सामने पेश कर दिया था और वह हुक्मे इब्ने ज़याद से शहीद कर दिए गए।
अल-गरज जनाबे मुज्माअ इब्ने अब्दुल्लाह इमाम हुसैन अले० के साथ रहे और यौमे आशूरा जंगे मग्लूबा में शहीद हो गए। कुछ रिवायतो के बिना पर आपके बेटे आएज़ इब्ने मुज्माअ भी आप के हमराह आए थे और आप ही के साथ शहीद हुए।
मेरी तहकीक के मुताबिक मुज्माअ और उन् के चन्द साथी मसलन उमर इब्ने खालिद जनाद वगैरह उस वक़्त कूफे से निकल कर कर्बला पहुचे थे जब जनाबे मुस्लिम को शहीद कर दिया गया थाl