हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,नमाज़ के बाद पढ़ी जाने वाली ताक़ीबात में सबसे महत्वपूर्ण हज़रते ज़हरा अ. की तसबीह है, और वाजिब नमाज़ों के अलावा दूसरे अवसर जैसे सोने से पहले और मासूमीन की ज़ियारत से पहले भी पढ़ने पर ताकीद की गई है।
तसबीह एक ख़ास इबादत है, हर इनसान इस से अपनी मारेफ़त और तैफ़ीक़ के अनुसार अपनी मानवी ऊंचाई (अध्यातमिक यात्रा) में लाभ उठाता है, हमारे इमाम भी इस संसार में आने से पहले अल्लाह की तसबीह में व्यस्त थे।
इसना की ख़बर अनुसार हौज़े की ख़बर के केंद्र द्वारा हज़रते ज़हरा अ. की शहादत के दिनों में नमाज़ के बाद हज़रते ज़हरा अ. की तसबीह के अध्यातमिक फ़ायदे बताए गए।
नमाज़ के बाद पढ़ी जाने वाली ताक़ीबात में सबसे महत्वपूर्ण हज़रते ज़हरा अ. की तसबीह है, और वाजिब नमाज़ों के अलावा दूसरे अवसर जैसे सोने से पहले और मासूमीन की ज़ियारत से पहले भी पढ़ने पर ताकीद की गई है।
बाप का बेटी को आसमानी उपहार
जब हज़रते ज़हरा अ. की घर के कामों में मसरूफ़ियत और उस से होने वाली तकलीफ़ को देखते हुए इमामे अली अ. ने हज़रते ज़हरा अ. से कहा कि पैग़म्बर से घर के कामों मे मदद करने के लिए किसी ग़ुलाम या कनीज़ के लिए कहें, जैसे ही पैग़म्बर को ख़बर हुई आप ने कहा, मेरी बेटी क्या मैं तुमको ऐसा अमल बताऊं जिसके सामने यह दुनिया और उसके अंदर पाई जाने वाली किसी चीज़ की कोई क़ीमत नहीं है, हज़रते ज़हरा अ. ने कहा इस से बेहतर और क्या हो सकता है, फिर पैग़म्बर ने आप को तसबीह की तालीम दी।
इमामे बाक़िर अ. इस तसबीह के बारे में फ़रमाते हैं, अगर ख़ुदा के नज़दीक उसकी हम्द और तारीफ़ में तसबीह से बढ़ कर और कोई चीज़ होती तो पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. उसी को हज़रते ज़हरा अ. को तालीम देते।
हांलाकि यह तसबीह हज़रते ज़हरा अ. के नाम से पढ़ी जाती है लेकिन वास्तव में यह अल्लाह का ज़िक्र है।
हज़रते ज़हरा अ. की तसबीह का मतलब
अल्लाहो अकबर
अल्लाहो अकबर कह के इनसान अल्लाह की बारगाह में अपनी कमज़ोरी और विनम्रता को स्वीकार करता है।
इब्ने उमैर कहते हैं कि एक बार इमामे सादिक़ अ. के पास था, इमाम ने मुझ से पूछा कि अल्लाहो अकबर का क्या मतलब है, मैंने कहा इसका मतलब अल्लाह हर चीज़ से बड़ा है, इमाम ने कहा इस मतलब से तुम ने अल्लाह का मतलब चीज़ बताया है, मैंने कहा कि मौला आप बताइये, इमाम ने फ़रमाया अल्लाह अपनी तारीफ़ में बयान किए जाने वाले हर मतलब से अज़ीम है।
अल्हमदो लिल्लाह
इनसान अपनी विनम्रता और कमज़ोरी को स्वीकार करने के बाद अल्हमदो लिल्लाह जो इस तसबीह का सबसे अफ़ज़ल ज़िक्र है इसको कह कर दूसरे मरहले में दाख़िल हो जाता है।
इमामे ख़ुमैनी रह. हम्द के बारे में फ़रमाते हैं, अल्लाह की हम्द उसके शुक्र के बराबर है, जैसा कि बहुत सारी हदीसों में है कि जिस ने अल्हमदो लिल्लाह कहा समझो उस ने अल्लाह का शुक्र अदा किया।
इमामे सादिक़ अ. इस बारे में फ़रमाते हैं, बड़ी से बड़ी नेमत का शुक्र यही है कि अल्लाह की हम्द की जाए।
सुब्हान अल्लाह
एक शख़्स ने इमामे अली अ. से सुब्हान अल्लाह का मतलब पूछा, आप ने जवाब में फ़रमाया, ख़ुदा की महिमा और अज़मत को स्वीकार करना, और जैसा विचार मुशरिक उसके बारे में रखते हैं उस विचार को नकारना, जिस समय कोई सुब्हान अल्लाह कहता है सभी फ़रिश्ते उस पर दुरूद और सलाम भेजते हैं।
ख़ाके शिफ़ा की तसबीह का सवाब
ख़ाके शिफ़ा की तसबीह से तसबीह पढ़ने के सवाब के बारे इमामे ज़माना अ. फ़रमाते हैं, अगर कोई ख़ाके शिफ़ा की तसबीह से तसबीह पढ़ते पढ़ते भूल कर किसी और काम में व्यस्त हो जाए फिर भी उसको तसबीह का सवाब मिलेगा।
हज़रते ज़हरा अ. ने सबसे पहले ऊन से तसबीह को बनाया फिर जब हज़रते हमज़ा शहीद हुए और सय्यदुश् शोहदा कहलाए तब उनकी क़ब्र की मिट्टी से आप ने तसबीह बना कर यह सुन्नत बना दी, इसीलिए इमाम हुसैन अ. की शहादत के बाद यही तसबीह आप की क़ब्र की मिट्टी से बनने लगी।
तसबीह के आदाब
हज़रते ज़हरा अ. की तसबीह के आदाब और शिष्टाचार बहुत सारी हदीसों में ज़िक्र हुए हैं, जिन में कुछ इस प्रकार हैं,
अबू हारूने मकफ़ूफ़ का कहना है कि इमामे सादिक़ अ. ने मुझ से फ़रमाया, ऐ अबू हारूने मकफ़ूफ़ जिस तरह हम अपने बच्चों को नमाज़ का हुक्म देते हैं उसी तरह तसबीह का भी हुक्म देते हैं, तुम भी हमेशा तसबीह पढ़ा करो, इसलिए जो पाबन्दी से इसको पढ़ेगा क़यामत में अपमानित नहीं होगा।
इमामे बाक़िर ने फ़रमाया, जो भी हज़रते ज़हरा अ. की तसबीह पढ़ने के बाद अल्लाह से गुनाहों की माफ़ी मांगेगा अल्लाह उसे माफ़ कर देगा, इस तसबीह में वैसे तो सौ बार ज़िक्र पढ़ा जाता है लेकिन क़यामत में हिसाब किताब के समय हज़ार बार शुमार किया जाएगा, तसबीह पढ़ने से शैतान दूर और अल्लाह ख़ुश होता है।
इमामे सादिक़ अ. वाजिब नमाज़ों के बाद तसबीह पढ़ने की अज़मत को इस तरह बयान करते हैं, जो भी वाजिब नमाज़ के बाद हज़रते ज़हरा अ. की तसबीह पढ़ेगा, अपनी जगह से उठने से पहले अल्लाह उसके गुनाह माफ़ कर देगा। (काफ़ी, जिल्द 3, पेज 343)
इस तसबीह के पढ़ने की शर्तों में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि नमाज़ के तुरन्त बाद पढ़ी जाए, इसका मतलब यह है कि जैसे ही सलाम पढ़ कर नमाज़ को ख़त्म करे बग़ैर कुछ और किए तसबीह पढ़ना शुरू कर दे, और दूसरी महत्वपूर्ण शर्त यह है कि पाबंदी के साथ पढ़े।