हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,मुसलमानों के कुछ अक़ीदों और विचारों पर उनके एकमत हो जाने से बहुत से लोगों ने मुसलमानों को अपना दुश्मन समझ लिया है, अमेरिका, इंग्लैंड, इस्राईल और इन के एजेंट आर.एस.एस जैसी साम्राज्यवादी ताक़तें मुसलमानों की इस एकता से भयभीत हो कर अपनी सारी शक्ति इस एकता को भंग करने के लिए सालों से झोंक रहीं हैं, मुसलमानों को अपना दुश्मन समझने वाले इन ख़बीस लोगों की हमेशा कोशिश यही रही है कि किसी भी तरह मुसलमानों में फूट डालकर उनकी एकता को भंग कर दिया जाए, जिसके लिए वह कई ख़तरनाक रास्ते अपनाते चले आ रहे हैं।
1. मुसलमानों के मज़हबी प्रोग्रामों में आतंकी हमले करवाना और उसके आरोप को एक दूसरे पर मढ़ने की कोशिश करवाना।
2. शिया और सुन्नी दोनों फ़िर्क़ों में उग्र सोंच पैदा करना और ऐसी सोंच वालों की हर प्रकार मदद करना ताकि यह लोग कहीं न कहीं अपनी गतिविधियां जारी रखें जिससे बाक़ी सभी मुसलमानों का ध्यान अमेरिका, इंग्लैंड, इस्राईल और आर.एस.एस जैसों की इस्लाम विरोधी साज़िशों से हटकर इन्हीं कुछ ख़रीदे हुए उग्र विचारों वाले मुसलमानों की ओर रहे, इस उग्र सोंच के नतीजे में मुसलमान दुश्मन की साज़िश को समझे बिना आपस ही में एक दूसरे की जान के दुश्मन बनकर अपने आप को कमज़ोर कर लेते हैं और यही हमारे दुश्मन की चाल है।
3. दूसरे धर्मों के लोगों में मुसलमानों के लिए नफ़रत पैदा करना। यही कारण है कि वह उलमा जो साम्राज्यवादी शक्तियों की इस चाल को समझते हैं वह इनकी इन साज़िशों को समझते हुए लोगों के सामने इनकी साज़िशों और नापाक इरादों से पर्दा हटाते हुए उन्हें सतर्क करते हैं, यह और बात है कि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो इन बहके हुए लोगों का हिस्सा तो नहीं होते लेकिन इन साज़िशों को समझे भी नहीं होते और फ्री में साम्राज्यवादी ताक़तों की नौकरी करते हुए नफ़रत फैलाते हैं। हम यहां संक्षेप में कुछ शिया और सुन्नी उलमा के मुसलमानों की आपसी एकता के बारे में विचारों को बयान करेंगे।
आयतुल्लाह सीस्तानी फ़रमाते हैं कि: सामर्रा में इमाम अली नक़ी (अ) और इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के रौज़े पर हमले के बाद मैंने सभी शियों से शांति बनाए रखने की अपील की और उनसे कहा कि किसी तरह की प्रतिक्रिया न दें और मैंने कहा कि यह आतंकी हमला सुन्नियों की ओर से नहीं किया गया है, मुझे यक़ीन है कि इस हमले का मुजरिम कोई और है। मैंने अपनी पढ़ाई के दिनों में अहले सुन्नत के बड़े आलिम शैख़ अहमद अल-रावी से सामर्रा में पढ़ा है और उन दिनों मुझे थोड़ा सा भी एहसास नहीं हुआ कि यह सुन्नी आलिम हैं, इसी तरह हम बहुत से सुन्नी डॉक्टरों के पास जाते थे
और क्योंकि हम तालिबे इल्मों के पास ज़ियादा पैसे न होने के कारण वह हमसे फ़ीस भी नहीं लेते थे, यहां तक कि उन्हें इस से कोई मतलब नहीं होता था कि हम सुन्नी हैं या शिया, इसीलिए हमारा जिन चीज़ों में एकमत हैं उन पर ध्यान देना ज़रूरी है और जिन अक़ीदों और विचारों में मतभेद पाए जाते हैं उन्हें ज़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है और याद रहे कि आपसी मतभेद फैलाने और मुसलमानों में एक शब्द यहां तक कि आधे शब्द का प्रयोग जिस से आपस में फूट पड़ जाए जाएज़ नहीं है, हम सब पर वाजिब है कि नफ़रत और तनाव फैलाने वाली बातों से बचें।
आयतुल्लाह बेहजत फ़रमाते हैं कि: शिया सुन्नी भावना फैलाना यह साम्राज्यवादी शक्तियों की चाल है, अहम बात अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की मोहब्बत है जो शिया सुन्नी दोनों फ़िर्क़ों में पाई जाती है, ध्यान रहे कि वहाबियों और तकफ़ीरियों का मामला इस से अलग है, क्योंकि वहाबी न ही सुन्नी हैं और न शिया, वहाबियत एक राजनीतिक मुद्दा है जिसका शिया सुन्नी से कोई लेना देना नहीं है और याद रहे जो भी मुसलमानों की एकता को पसंद न करता हो वह मुसलमान नहीं है।
आयतुल्लाह बेहजत ईदे ज़हरा (स) के नाम पर होने वाले कुछ प्रोग्रामों के बारे में फ़रमाते हैं कि: कभी कभी इस प्रकार के काम बहुत सारे देशों में बहुत सारे शियों के क़त्ल का कारण बनते हैं, ध्यान रहे अगर हमारे इस तरह के कामों के कारण किसी भी देश में एक बूंद भी ख़ून बहाया गया उसके ज़िम्मेदार हम होंगे।
आप का कहना था कि आयतुल्लाह बुरूजर्दी का भी यही कहना था और वह भी इस बात पर ज़ोर दे कर कहते थे कि हमें, शिया सुन्नी जिन चीज़ों में एकमत हैं उनपर ध्यान देना चाहिए और खुले आम लानत वग़ैरह से बचना चाहिए।
आयतुल्लाह वहीद ख़ुरासानी ने बड़े बड़े उलमा और विद्वानों की एक क्लास में अहले सुन्नत के मशहूर आलिम फ़ख़रुद्दीन राज़ी की तफ़सीर से एक हदीस बयान की, जिसमें सुन्नियों के दूसरे ख़लीफ़ा उमर का नाम भी आया और आपने उनके नाम के बाद रज़ियल्लाहो अन्हू कहा, आपका यह कहना था कि कुछ लोगों ने ऊंची आवाज़ में हज़रत उमर को कुछ कहा, उसके बाद आयतुल्लाह वहीद ख़ुरासानी ने बहुत ही ग़ुस्से में फ़रमाया कि मैं कितनी बार कह चुका हूं मेरे क्लास में इस तरह की कोई बात मत किया करो।
आयतुल्लाह शुबैरी ज़ंजानी फ़रमाते हैं: हम शियों और अहले सुन्नत के बीच बहुत सारे अक़ीदों में समानताएं हैं, इन को बाक़ी रखने की ज़रूरत है और हमें उम्मीद है कि यह समानताएं धीरे धीरे और अधिक अक़ीदों और विचारों में बढ़ेगीं और अल्लाह करे वह सब जो सारे मुसलमानों के हक़ में बेहतर हो वह उन्हें दुनिया और आख़ेरत में मिले। शिया और सुन्नी के बीच जो सबसे अहम समानता है वह यह कि दोनों अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम से मोहब्बत करते हैं और दोनों फ़िर्क़े अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की पैरवी करते हुए सआदत और कामयाबी तक पहुंच सकते हैं, हम इन्हीं अहम समानताओं को ध्यान में रखते हुए अपने संयुक्त दुश्मन (साम्राज्यवादी शक्तियां) के विरुध्द एकजुट हो कर एकता की मिसाल बन सकते हैं। बहुत अफ़सोस होता है जब छोटी छोटी बातों को लेकर आपस में दूरियां देखने को मिलती हैं।
शिया उलमा के बाद हम यहां पर संक्षेप में कुछ सुन्नी उलमा के बयान को भी पेश कर रहे हैं।
अहले सुन्नत आलिम मौलाना तवक्कुली का कहना है कि आज जो भी मुसलमानों के किसी भी फ़िर्क़े के बारे में क़त्ल का फ़त्वा देता है वह अमेरिका और इस्राईल के टुकड़े पर पलने वाला उसका एजेंट है। पैग़म्बर (स) ने फ़रमाया है जिसने "ला इलाहा इल्लल्लाह" कह दिया उसकी जान और माल को बचाना सबकी ज़िम्मेदारी है, अगर कोई मुसलमान किसी दूसरे मुसलमान के क़त्ल को जाएज़ समझ कर उसे क़त्ल कर दे वह मुसलमान नहीं बल्कि काफ़िर है, इसलिए कि अल्लाह ने नाहक़ ख़ून बहाने को हराम कहा है और जिस किसी ने भी किसी मुसलमान का ख़ून बहाया क़ुरआन के मुताबिक़ उसका ठिकाना जहन्नम है, अल्लाह दूसरे किसी भी गुनाहे कबीरा को माफ़ कर सकता है लेकिन किसी मोमिन के जानबूझ कर क़त्ल को कभी माफ़ नहीं करेगा। यह वह लोग हैं जो साम्राज्यवादी शक्तियों के मुक़ाबले और बैतुल मुक़द्दस पर क़ब्ज़ा करने वालों के बजाए मुसलमानों को मार रहे हैं।
अहले सुन्नत आलिम मोहम्मद महमूदी का कहना है कि इस्लामी जगत की मौजूदा परिस्तिथि जहां शरीयत, नैतिकता और इंसानियत का इस्लाम के नाम पर ख़ून बहाया जा रहा है जबकि किसी भी प्रकार की हिंसा इस्लाम और इस्लामी उलमा की निगाह में बिल्कुल भी सहीह नहीं है, इस्लामी तालीमात में औरतों, बच्चों और बूढ़ों को किसी भी हालात में क़त्ल करना हराम है और किसी के भी अक़ीदों और विचारों का मज़ाक़ उड़ाना और उनका अपमान करना भी सहीह नहीं है और यह केवल इस्लामी देशों की बात नहीं बल्कि वह देश जहां इस्लामी हुकूमत नहीं है वहां पर भी किसी भी तरह की हिंसा सहीह नहीं है, दुनिया का हर अक़्लमंद इंसान इसकी निंदा करता है इसी तरह हम अहले सुन्नत भी इन तकफ़ीरियों (वहाबियों) के हर तरह के आतंकी हमलों और आतंकी गतिविधियों की खुली निंदा करते हैं, हम सभी की ज़िम्मेदारी है कि इन वहाबी आतंकी संगठनों जिनके लिए किसी की भी जान लेना कहीं पर भी धमाका करना मामूली काम है इनकी साज़िशों से हमें होशियार रहने की ज़रूरत है, इनका मक़सद केवल मुसलमानों के बीच नफ़रत और फूट पैदा करना और इस्लाम और मुसलमानों को पूरी दुनिया में बदनाम करना है।
विलादत ए रसूले ख़ुदा (स) की मुनासिबत से हफ़्ते वहदत 12 से 17 रबीउल अव्वल तमाम उम्मते मुस्लिमा को मुबारक