हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार,मशहद के प्रतिनिधि से बातचीत करते हुए हौज़ा-ए-इल्मिया खुरासान के अख़लाक़ के आचार्य हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन ग़फ्फ़ारफ़ाम ने रमज़ान मुबारक की छठी दुआ के ख़ास मफ़हूम और उसकी मोमिनाना ज़िंदगी के लिए गहरी तालीमात को बयान करते हुए कहा,इस दुआ में हज़रत इमाम सज्जाद (अ.स.) खुदा-ए-तबारक व तआला से तीन अज़ीम और बुनियादी दरख़्वास्तों के ज़रिए बंदगी और सआदत (सफलता) का रास्ता वाज़ेह करते हैं। ये दुआएं हमारे लिए बेहद अहम सबक़ रखती हैं।
उन्होंने आगे कहा,जिस तरह नेक आमाल और इलाही अहकाम की पाबंदी सआदत और खुशबख्ती का बाइस (कारण) बनती है, उसी तरह गुनाह और इलाही हुदूद (नियमों) को तोड़ना ज़िल्लत (अपमान) और बदबख्ती (दुर्भाग्य) का सबब बनता है। गुनाह इंसान की दुनिया और आख़िरत की जड़ों को काट देता है।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन ग़फ्फ़ारफ़ाम ने कहा,ज़ुल्म इंसान की ज़िंदगी में सबसे तबाहकुन (विनाशकारी) गुनाहों में से एक है। हिकमत-ए-इलाही (ईश्वरीय न्याय) के तहत कोई भी ज़ुल्म बेअसर नहीं रहता, जैसा कि हुकमा (दार्शनिकों) ने कहा है।
दुनिया में हर अमल का एक रद्दे-अमल (प्रतिक्रिया) होता है।' जो शख़्स अपनी ज़िंदगी को ज़ुल्म की बुनियाद पर क़ायम करेगा, उसे जान लेना चाहिए कि उसका अंजाम भी उसी के ज़ालिमाना रवैये के मुताबिक़ होगा, क्योंकि ज़ुल्म इंसान की जड़ों को काट देता है और उसे रहमत-ए-इलाही से दूर कर देता है।
उन्होंने आगे कहा,जो चीज़ इंसान को खुदा के ग़ज़ब (क्रोध) के क़रीब करती है, वह गुनाह है। जिस तरह तक़वा और परहेज़गारी खुशबख्ती का सबब बनते हैं, उसी तरह गुनाह और इलाही अहकाम से ग़फ़लत (लापरवाही) न सिर्फ इंसान को रहमत-ए-इलाही से महरूम कर देती है, बल्कि दुनिया और आख़िरत में उसके लिए जहन्नम का बाइस भी बनती है।
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