हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, हज़रत इमाम अली रज़ा अ०स० की शहादत के मौके पर गोलागंज स्थित मस्जिद मकबरा आलिया में दो दिवसीय मजालिस आयोजित हुई, जिसे मौलाना सय्यद अली हाशिम आब्दी ने संबोधित किया।
मौलाना सय्यद अली हाशिम आब्दी ने हज़रत इमाम अली रज़ा अ०स० की हदीस “अल्लाह के वलियों की मोहब्बत वाजिब है, इसी तरह उनके दुश्मनों और दुश्मनों के रहबरों से दुश्मनी और इज़हारे बराअत भी वाजिब है” को अपना विषय बताते हुए कहा कि हज़रत इमाम अली रज़ा अ०स० इमामे रऊफ है, आप की रअफत हर एक के लिए आम है, अगर हम आप की सीरत को पढ़ें तो दो बाते हमें बहुत ही नुमायाँ तौर पर मिलेंगी, एक विलायते अहलेबैत अ० lस० की ताकीद दूसरे मोमनीन का आपस में अच्छा बरताओ।
मौलाना सय्यद अली हाशिम आब्दी ने मजलिस को संबोधित करते हुए कहा कि जब हज़रत इमाम अली रज़ा अ०स० नीशापुर पहुंचे और आप से चालीस हज़ार अहले इल्म ने हदीसे रसूल स०अ० का मुतालेबा किया तो आप ने जो हदीस बयान की जिसे सिलसिलतुज ज़हब कहते है, उसमे विलायत को तौहीद की शर्त बता कर ज़ाहिर कर दिया जो इंसान अपने इमाम का नही वह खुदा का भी नही हो सकता और जो इंसान अहलेबैत की विलायत से महरूम है उसके अंजाम दिए गए आमाल इस लाएक नही कि खुदा उसे अपनी इबादत समझे और उसे कुबूल करे।
मौलाना सय्यद अली हाशिम आब्दी ने कहा कि जिस तरह अहलेबैत अ०स० की विलायत ज़रूरी है उसी तरह उनके दुश्मनों से बेज़ारी भी ज़रूरी है, मामून ने इमाम अली रज़ा अ० lस० को मदीने से खुरासान बुलाया और खेलाफत देनी चाही तो आप ने मना कर दिया, जब मामून ने इसरार किया तो आप ने फ़रमाया “अगर यह खेलाफत तुझे अल्लाह ने दी है तो तू किसी दूसरे को कैसे दे सकता है और अगर यह खेलाफत अल्लाह ने तुझे नही दी है तो जिस चीज़ का तू खुद मालिक नही वह दूसरे को कैसे दे सकता है, इमाम ने बता दिया कि इमामत व खेलाफत इलाही मंसब है अल्लाह जिसे चाहता है देता है, ज़ोर ज़बरदस्ती से हुकूमत तो मिल सकती है लेकिन खेलाफत नहीं।