शनिवार 22 मार्च 2025 - 06:17
हज़रत अली अ.स.पैकर ए अदल व  इंसाफ: मौलाना अली अब्बास खान साहब

हौज़ा / ऐनुल हयात ट्रस्ट द्वारा इमाम हज़रत अली (अ0) की शहादत के ग़म में 20 रमज़ान को छोटा इमामबाड़ा हुसैनाबाद में रात्रि 8. 15 बजे एक मजलिस का आयोजन किया गया जिसको जनाब मौलाना अली अब्बास ख़ान साहब ने सम्बोधित किया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार,लखनऊ, 21 मार्च । ‘‘ऐनुल हयात ट्रस्ट द्वारा इमाम हज़रत अली (अस.) की शहादत के ग़म में 20 रमज़ान को छोटा इमामबाड़ा हुसैनाबाद में रात्रि 8. 15  बजे एक मजलिस का आयोजन किया गया जिसको जनाब मौलाना अली अब्बास ख़ान साहब ने सम्बोधित किया।

मजलिस का आरम्भ ईरान से आए हुए प्रसिद्ध क़ारी हसन मोहम्मद साहब द्वारा अपने विशेष अन्दाज़ में तिलावते क़ुरान से किया गया जिसने सभी का मन मोह लिया, उसके बाद जनाब हसन ज़की साहब  द्वारा अपने साथियों के साथ दर्द भरी आवाज़ में हज़रत अली (अस.) को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए सलाम के अश्आर पढ़े गए जिसको सुनकर सभी अज़ादार रोने लगे।

मौलाना अदील हुसैन साहब ने मंच का संचालन किया । जनाब हसन ज़की साहब के बाद उन्होंनें जनाब समद और जनाब वसी को मरसिया पढ़ने के लिये आमंत्रित किया।

मरसिये के बाद मंच से दीन और हम के प्रवक्ता मौलाना मुशाहिद आलम साहब  ने इमाम हज़रत अली (अ0) की वसीयतनामा पढ़ा और उसकी अहमियत को बयान करते हुए कहा कि हम सबको इसका पालन करने की आवश्यकता है। उल्लेखनीय है कि उक्त वसीयतनामे की अंकित प्रति समस्त उपस्थित लोगों को वितरित की गई थी।

जिसके बाद मजलिस को मौलाना अली अब्बास ख़ान साहब ने सम्बोधित करते हुए कहा कि सम्पूर्ण विश्व एवं मानव जाति न्याय/अदालत की पक्षधर है। प्रत्येक व्यक्ति कहता है कि वह अदालत चाहता है कोई भी ज़ुल्म को पसन्द नहीं करता है परन्तु फिर भी इतने विरोध क्यों हैं?

इसका एक कारण यह है कि सबने अदालत न्याय को ठीक से समझा नहीं एवं अपने अपने मत के अनुसार अदालत को परिभाषित कर दिया। जबकि ईश्वर द्वारा भेजे गए इमाम हज़रत अली अ0 ने बताया कि अदालत का अर्थ होता है जिसका जो स्थान है उसको उसी स्थान पर रखा जाये।

अगर किसी भी चीज़ का स्थान बदला जाएगा चाहे उसको बढ़ा दिया जाये या घटा दिया जाये, वह ज़ुल्म अथवा अत्याचार की श्रेणी में आ जायेगा। उन्होंने बताया कि सबको बराबर दिये जाने को अदालत नहीं कहते हैं बल्कि जिसकी जितनी योग्यता होती है उसको उसके अनुसार उत्तरदायित्व निभाना है तथा उसी के अनुसार उसको पुरस्कार अथवा दण्ड भी मिलेगा इसी को अदालत कहा जाता है।

जिस प्रकार ईश्वर ने प्रकृति में हर चीज़ को अलग बनाया है और उसके उत्तरदायित्व भी अलग-अलग हैं आंख का काम अलग है, हाथ का काम अलग है, दिमाग़ का काम अलग है, पशु पक्षियों का काम अलग है मनुश्यों का काम अलग है लेकिन यही काम का अलग होना मिलकर अदालत/न्याय स्थापित करता है।

हज़रत अली का लोगों एवं अनाथों की सहायता करने एवं उनके बीच लोकप्रिय होने का व्याख्यान करते हुए मौलाना ने बताया कि रमजान की बीसवीं तारीख़ की सुबह कूफे के अनाथ बच्चों ने एक लम्बी अवधि के बाद उस दयालु व कृपालु व्यक्ति को पहचाना जो हर रात अज्ञात तरीक़े से उनके घर पहुंचता था और उनकी सहायता करता था।

हजरत अली के एक बेटे मुहम्मद इब्ने हनफिया कहते हैं। लोग घर में आते थे और मेरे पिता को सलाम करते थे। वे सलाम का जवाब देते थे और कहते थे कि मुझ से पूछ लो, इससे पहले कि मैं तुम्हारे बीच न रहूं, लेकिन तुम्हारे इमाम को जो घाव लगा है उसके चलते अपने प्रश्नों को संक्षिप्त करो। उनके यह कहते ही लोग फूट फूट कर रोने लगते।

मजलिस में उपस्थित लोगों ने अश्रुपूर्ण आंखों के साथ हज़रत अली (अ.स.) के उत्तराधिकारी हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) को इस अवसर पर श्रद्धांजलि (पुरसा) अर्पित की मौलाना के व्याख्यान के बाद अंजुमन सिपाहे हुसैनी  ने अपने साथियों के साथ हाए अली या अली कहते हुए दर्द भरा नौहा पढ़ा जिस पर सभी अज़ादारों ने मातम किया।अन्त में मंच संलाचक ने मौलाना ताहा हुसैन साहब को ज़ियारते अमीनुल्लाह पढ़ाने के लिये आमंत्रित किया ज़ियारत के बाद मजलिस का समापन हो गया।

उल्लेखनीय है कि इस मजलिस में ऐनुल हयात ट्रस्ट द्वारा आयोजित दीन और हम कक्षाओं के विद्यार्थियों के छात्र-छात्राओं तथा अन्य लोगों ने भी उपस्थिति दर्ज की।

टैग्स

आपकी टिप्पणी

You are replying to: .
captcha