हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हौज़ा इल्मिया नजफ़ अशरफ़ के शिक्षक और बगदाद के इमाम ए जुमआ आयतुल्लाह सैयद यासीन मूसावी ने शुक्रवार के ख़ुत्बों में इराक़ी और अंतरराष्ट्रीय नीतियों पर बात करते हुए कहा कि यमन और ग़ाज़ा अमेरिका के झूठे शांति वादों की असली तस्वीर हैं।
उन्होंने कहा कि मुफ़ाहमत की बुनियाद कमजोरी या डर पर नहीं बल्कि क़ानूनी और राष्ट्रीय स्वाभिमान पर होनी चाहिए। इराक तब तक वास्तविक स्थिरता नहीं पा सकता जब तक वह वित्तीय और प्रशासनिक भ्रष्टाचार का खात्मा नहीं करता और एक राष्ट्रीय व स्वतंत्र सरकार की स्थापना नहीं होती।
आयतुल्लाह मूसावी ने कहा कि विदेशी ताक़तों पर निर्भरता केवल देश की आज़ादी और संप्रभुता को कमजोर करती है। विदेशी ताक़तों से संवाद राष्ट्रीय ताक़त और इज़्ज़त के साथ होना चाहिए न कि झुककर और आत्मसमर्पण करके।
उन्होंने वॉशिंगटन में इस्राईली दूतावास के दो कर्मचारियों की हत्या का ज़िक्र करते हुए कहा कि यह पश्चिम की दोहरी नीति का उदाहरण है वो दो लोगों की मौत पर तूफ़ान मचाते हैं, लेकिन ग़ाज़ा में हर रोज़ सैंकड़ों नागरिकों की हत्या पर चुप्पी साधे रहते हैं।
आयतुल्लाह मूसावी ने कहा,पश्चिमी देश इस्राईल को एक वैध राष्ट्र मानते हैं, जबकि हम उसे एक ज़ालिम और ग़ासिब (अवैध कब्जाधारी) राष्ट्र समझते हैं, और हमारा यह रुख़ कभी नहीं बदलेगा।
उन्होंने अमेरिका, ख़ास तौर पर ट्रंप के दौर में किए गए कामों की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि जब अमेरिका का रवैया धमकियों और तबाही पर आधारित हो, तो वह शांति की बातें कैसे कर सकता है?
उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि यमन और ग़ाज़ा अमेरिका के शांति के नारों की सरेआम तौहीन हैं ख़ास तौर पर तब, जब एक अमेरिकी-इस्राईली क़ैदी की रिहाई के बाद अमेरिका ने ग़ाज़ा में युद्ध रोकने, इस्राईली सेना को वापस बुलाने और इंसानी मदद भेजने का वादा किया था लेकिन इन में से कोई भी वादा पूरा नहीं किया गया।
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