हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,यह सवाल बहुत से लोगों के ज़हन में आता है। जब हम देखते हैं कि कुछ लोग न ख़ुदा और रसूल को मानते हैं न ही रहमदिल हैं और न ही नेककार मगर फिर भी उनकी ज़िन्दगी सुकून, ख़ुशी और आसाइश में गुज़रती है जबकि अहले ईमान तरह-तरह की मुसीबतों और आज़माइशों में मुब्तिला नज़र आते हैं तो दिल में ये ख़्याल पैदा होता है कि शायद ख़ुदा उन बे-ईमानों पर ज़्यादा मेहरबान है।
इसी नुक्ते की वज़ाहत हुज्जतुल इस्लाम मोहसिन क़राएती अपने दर्से कुरआन में करते हैं।
वो फ़रमाते हैं,हम कहते हैं कि अगर लोग ज़कात न दें तो बारिश नहीं होगी, मगर कुछ लोग जवाब देते हैं,जनाब! फलाँ मुल्क के लोग तो दीन को मानते ही नहीं मगर वहाँ तो सुबह-शाम बारिश होती रहती है!
हम कहते हैं अगर गुनाह करोगे तो सज़ा मिलेगी वो कहते हैं,साहब! फलाँ शख़्स के गुनाह तो हमसे ज़्यादा हैं मगर उसके साथ तो कुछ भी नहीं होता, बल्कि उसकी ज़िन्दगी तो बड़ी ख़ुशी से गुज़र रही है!
यहाँ एक नुक्ता है जिसे समझना ज़रूरी है।
उस्ताद क़राएती मिसाल देते हैं: जब चाय का एक क़तरा चश्मे पर गिरता है, हम फ़ौरन कपड़ा लेकर साफ़ कर देते हैं।
अगर यही क़तरा कपड़ों पर गिर जाए तो कहते हैं: चलो रहने दो, बाद में धो लेंगे।
और अगर चाय कालीन या फ़र्श पर गिर जाए तो कहते हैं अभी नहीं, बाद में मसलन ईद से पहले धो लेंगे।
यानी हम ख़ुद भी तीन तरह के रवैये रखते हैं।
इसी तरह ख़ुदा भी अपने बन्दों के साथ मुख़्तलिफ़ अंदाज़ में बरताव करता है।
अगर कोई शफ़ाफ़ दिल या नेक बन्दा गुनाह करे तो ख़ुदा फ़ौरन उसे मुतवज्जह करता है ताकि वह जल्दी तौबा कर ले।
लेकिन अगर कोई गुनहगार और बदकार शख़्स हो तो ख़ुदा उसे फ़ौरन नहीं पकड़ता बल्कि कहता है अभी नहीं बाद मे।
और अगर वह बहुत ही बद-किरदार हो तो ख़ुदा उसकी सज़ा को "क़यामत" के लिए मोख़र कर देता है।
मुसीबतों पर भी शुक्र ज़रूरी है
उस्ताद क़राएती के मुताबिक कभी-कभी ख़ुदा अपने बन्दे को मुश्किलात और आज़माइशों में मुब्तिला करता है, जिनके पीछे यक़ीनन कोई हिकमत छिपी होती है।
वो फ़रमाते हैं,हमें सिर्फ नेमतों पर ही नहीं बल्कि मुसीबतों पर भी शुक्र अदा करना चाहिए। सारी तल्ख़ियाँ, बीमारियाँ, सेलाब, ज़लज़ले, माली नुक़सान, हादिसात, यहाँ तक कि अज़्दवाजी नाकामियाँ, सबमें शुक्र का पहलू है। मसला यह है कि हमारी निगाह सतही होती है हम गहराई से नहीं देखते।
मसलन कोई शख़्स सड़क पर जा रहा हो अचानक उसकी गाड़ी किसी रेलिंग से टकरा जाए। वह नाराज़ हो जाता है, मगर जब बाहर निकलकर देखता है तो कहता है, अलहम्दुलिल्लाह! क्यों? क्योंकि अगर वह रेलिंग न होती तो गाड़ी सीधी खाई में जा गिरती।
यानी कभी-कभी जो मुसीबत हमें नज़र आती है, दरअस्ल वह एक बड़ी बला से बचाने का ज़रिया होती है, और हम इस हक़ीक़त से बे-ख़बर होते हैं, जबकि ख़ुदा सब कुछ जानता है और वही सबसे ज़्यादा हकीम है।
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