गुरुवार 16 अक्तूबर 2025 - 19:08
मस्जिद-ए-सादात-ए-कुरैश: वह मुक़द्दस स्थान जहाँ हज़रत ज़ैनब (स) और कर्बला के कैदियों को ठहराया + तस्वीरें

हौज़ा / अम्र बिन आस द्वारा मिस्र की विजय के बाद बनवाई गई ऐतिहासिक मस्जिद ए-सादात-ए-कुरैश न केवल मिस्र बल्कि पूरे अफ्रीका की सबसे पुरानी इस्लामिक इमारत है। इस मस्जिद की महानता का एक प्रमुख कारण यह है कि हज़रत ज़ैनब (स) और कारवां-ए-असीरान-ए-कर्बला ने यहाँ एक महीने तक रुके थे।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, अम्र बिन आस द्वारा मिस्र की विजय के बाद बनवाई गई ऐतिहासिक मस्जिद ए-सादात-ए-कुरैश न केवल मिस्र बल्कि पूरे अफ्रीका की सबसे पुरानी इस्लामिक इमारत है। इस मस्जिद की महानता का एक प्रमुख कारण यह है कि हज़रत ज़ैनब (स) और कारवां-ए-असीरान-ए-कर्बला ने यहाँ एक महीने तक रुके थे। 

काहिरा के पास स्थित शहर बिलबीस में मौजूद मस्जिद-ए-सादात-ए-कुरैश को आम तौर पर मिस्र और अफ्रीका की पहली मस्जिद माना जाता है। कुछ लोग सोचते हैं कि पहली मस्जिद "अम्र बिन आस" है, लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि "सादात-ए-कुरैश" का निर्माण इससे दो साल पहले, 18 हिजरी में, अम्र बिन आस के आदेश पर रोमनों पर जीत के बाद पूरा हुआ था।

यह मस्जिद सहाबा-ए-इकराम की कुर्बानियों की याद में बनाई गई थी और इसके बगल में चालीस सहाबा दफन हैं, जिन्होंने जंग-ए-बिलबीस में शहादत प्राप्त की थी। 

शेख सुब्ही अब्दुस समद, बिलबीस मे औक़ाफ के प्रमुख, शहर में छह ऐतिहासिक मस्जिदें हैं, लेकिन मस्जिद-ए-सादात-ए-कुरैश उनमें सबसे पुरानी है। रमज़ान के पवित्र महीने में यहाँ विभिन्न धार्मिक और कुरआनी कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

ऐतिहासिक सन्दर्भों के अनुसार बिलबीस के युद्द में चार हज़ार मुस्लिम सैनिकों ने छत्तीस हज़ार रोमी सैनिकों का सामना किया और विजय प्राप्त की। इस लड़ाई में दो सौ पचास मुस्लिम शहीद हुए, जिनमें चालीस सहाबा शामिल थे।

मस्जिद-ए-सादात-ए-कुरैश के इमाम शेख हानी हुसैन अज़-ज़ुबलावी का कहना है: यह मस्जिद "उम्मुल-मसाजिद" (मस्जिदों की जननी) के रूप में प्रसिद्ध है और इसका मेहराब मस्जिद-ए-नबवी के मेहराब जैसा दिखता है। इसीलिए यहाँ वक़्फ़ मंत्रालय की देख-रेख में कुरआन की कक्षाएँ और विद्वतापूर्ण चर्चाएँ आयोजित की जाती हैं।

हज़रत ज़ैनब (स) और कारवाने कर्बला का क़याम: 

यह मस्जिद अपने ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व के साथ-साथ हज़रत ज़ैनब (स) के आगमन से भी पवित्र है। इतिहास के अनुसार, सन 61 हिजरी में जब कारवाँ-ए-असीरान-ए-कर्बला शाम की ओर जा रहा था, तो बिलबीस के गवर्नर ने हज़रत ज़ैनब (स) और अन्य बंदियों का स्वागत किया, और वे एक महीने तक इसी मस्जिद में ठहरे।

इस दौरान कारवाँ के एक सदस्य के निधन पर उन्हें मस्जिद के पास ही दफनाया गया। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि मस्जिद का नाम "सादात-ए-कुरैश" वास्तव में हज़रत ज़ैनब (स) और अहले-बैत (अ) के ठहराव की याद में रखा गया था।

ऐतिहासिक और वास्तुशिल्प विशेषताएँ:

प्रसिद्ध इतिहासकार तकीउद्दीन अल-मकरीजी के अनुसार, यह मस्जिद लगभग 3000 वर्ग मीटर में फैली हुई है और आयताकार डिजाइन में बनी है, जिसमें चार गलियारे हैं जो स्तंभों द्वारा अलग किए गए हैं। इन स्तंभों में कॉप्टिक, कोरिंथियन और इस्लामिक शैली की नक्काशी देखी जा सकती है।

बाद में उसमान काल में मिस्र के पूर्व गवर्नर अहमद अल-काशिफ ने इस मस्जिद की मरम्मत करवाई और इसमें एक मीनार बनवाई। मस्जिद के पश्चिमी हिस्से में कुछ प्राचीन मिस्र के अवशेष भी शामिल हैं, जो आज कांच की खिड़कियों के माध्यम से देखे जा सकते हैं।

यह मस्जिद आज भी बिलबीस के लोगों के लिए इबादत, कुरआन शिक्षा और आध्यात्मिकता का केंद्र बनी हुई है और दुनिया की पंद्रह प्रसिद्ध ऐतिहासिक मस्जिदों में गिनी जाती है।

टैग्स

आपकी टिप्पणी

You are replying to: .
captcha