बुधवार 29 अक्तूबर 2025 - 09:33
ईरान यतीम नही, इस्की हिफ़ाज़त इमाम ए ज़मान हज़रत हुज्जत इब्न हसन अस्करि (स) की सरपरस्ती के ज़ेरे साया है

हौज़ा / भारत मे आयतुल्लाहिल उज़्मा सिस्तानी के वकील हुज्जतुल इस्लाम सय्यद अहमद अली आबिदी ने अपने ईरान की यात्रा के दौरान हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के केंद्रीय कार्यालय का दौरा किया और दुश्मन के मीडिया एकाधिकार को तोड़ने, हौज़वी तालीमात को मज़बूत करने और छात्रो और जनता के आपसी संबंध को फ़रोग़ देने पर ज़ोर दिया। उन्होंने छात्रों में जज़्बा और लगन की ज़रूरत तथा अक़ाइद की हिफ़ाज़त को समय की महत्वपूर्ण प्राथमिकता बताया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार,  भारत मे आयतुल्लाहिल उज़्मा सिस्तानी के वकील, मुंबई के इमाम जुमा और जामेअतुल इमाम अमीरुल मोमेनीन (अ) के प्रिंसिपल हुज्जतुल इस्लाम सय्यद अहमद अली आबिदी ने अपने ईरान की यात्रा के दौरान हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के केंद्रीय कार्यालय का दौरा किया और दुश्मन के मीडिया एकाधिकार को तोड़ने, हौज़वी मीडिया को वैश्विक स्तर पर विश्वसनीय समाचार स्रोत तौर पर पेश करने की ज़रूरत को समय की महत्वपूर्ण प्राथमिकता बताया। साथ ही, हिन्दुस्तान में हौज़ा-ए-इल्मिया को दरपेश मसाइल और उलमा व तुल्लाब ए इकराम की ज़िम्मेदारियों के हवाले से एक ख़ुसूसी इंटरव्यू भी दिया, जिसे सवाल व जवाब के रूप में प्रिय पाठको की सेवा में प्रस्तुत किया जा रहा है।

ईरान यतीन नही, इस्की हिफ़ाज़त इमाम ए ज़मान हज़रत हुज्जत इब्न हसन अस्करि (स) की सरपरस्ती के ज़ेरे साया है

हौज़ा: इस्लामी गणतंत्र ईरान की इसराइल और अमरीका के साथ 12 दिवसीय युद्द के हवाले से आप क्या कहना चाहेंगे?

हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन सय्यद अहमद अली आबिदी: ईरान एक ऐसा देश है जो न केवल राजनिति और हुकूमती तौर पर मज़बूत है बल्कि उसके पीछे एक गहरी रूहानी सरपरस्ती भी मौजूद है। यह सरपरस्ती हमारे वक़्त के इमाम हज़रत हुज्जत इब्निल हसन अस्करी (अ) की ओर से है, जो हर वक़्त हमारी हिफ़ाज़त फ़रमा रहे हैं। आपने ख़ुद फ़रमाया है कि “अगर हम आपकी रहनुमाई और मदद के बग़ैर होते तो दुश्मन हमें नाबूद कर देता।” यह वही सरपरस्ती है जो दुनिया के किसी देश को हासिल नहीं है, और किसी सूरत में इसे चैलेंज नहीं किया जा सकता।

ईरान की सफ़लता में प्रशासन की मेहनत, लोगो की दुआएं, अहले-बैत (अ) के दोस्तों की हिमायत और जज़्बा सबसे बड़ी शक्ति हैं। दुनिया के हर कोने में दुआओं की सभाओ ने भी इस सफ़लता में हिस्सा डाला है। यह सब ईमानदारी और जज़्बे की बदौलत सम्भव हुआ, न कि किसी व्यक्तिगत लाभ या लालच की वजह से। हालाकि यह भी याद रखना चाहिए कि दुश्मन कभी ख़ामोश नहीं रहता। जब वह परास्त होता है तो और ख़तरनाक हो जाता है। इस लिए हमें होशियार और चौकन्ना रहना बहुत ज़रूरी है।

ईरान यतीन नही, इस्की हिफ़ाज़त इमाम ए ज़मान हज़रत हुज्जत इब्न हसन अस्करि (स) की सरपरस्ती के ज़ेरे साया है

हौज़ा: हिन्दुस्तान में हौज़ा-ए-इल्मिया और छात्रो के हवाले से आपकी राय क्या है?

हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन सय्यद अहमद अली आबिदी: आज के हालात को देखते हुए, विशेष रुप से हिन्दुस्तान में छात्रो के हवाले से सबसे बड़ी रुकावट जज़्बा और लगाव की कमी है, जो पहले के मुक़ाबले में कम होती जा रही है। पुराने ज़माने के उलमा ने कठिनाईयो के बावजूद इल्म हासिल किया। उनके पास प्रारम्भिक ज़रूरतें भी बहुत मामूली थीं, लेकिन उनके अंदर जो जज़्बा, लगाव और  हौसला था, वही उनकी सबसे बड़ी ताक़त थी।

आज के समय में सुविधाओं की प्रचुरता के बावजूद छात्रो में हौसला और जज़्बा धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। हमारे छात्रो के लिए ज़रूरी है कि वे मेहनत और लगन के साथ इल्म हासिल करें और उस्ताद के साथ मज़बूत संपर्क क़ायम रखें। पुराने ज़माने में छात्र उस्ताद के पास सिखने के लिए ख़ुद आते थे, अनुरोध करते और मेहनत करते थे। आज हमें यह जज़्बा दोबारा पैदा करने की ज़रूरत है ताकि तुल्लाब मुश्किलात के बावजूद इल्म हासिल करने में सफ़ल हो सकें।

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हौज़ा: हौज़ा-ए-इल्मिया की तालीमात में किस चीज़ पर सबसे ज़्यादा ध्यान होना चाहिए?

हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन सय्यद अहमद अली आबिदी: हौज़ा में बुनियादी तालीमात को मज़बूत करना ज़रूरी है। अगर बुनियादें कमज़ोर होंगी तो इमारत भी कमज़ोर होगी। उसूलों और तालीमी मवाद में कमी नहीं होनी चाहिए। छात्रो को अरबी और इस्लामी उलूम में गहरी तरबियत दी जाए ताकि वे अक़ाइद की बुनियादों तक पहुँच सकें। ख़ास तौर पर अक़ाइद के मैदान में ज़्यादा ध्यान ज़रूरी है, क्योंकि हमारी पहचान और वजूद हमारे अक़ाइद पर आधारित है — और दुश्मनी भी हमारे इन्हीं अक़ाइद, ख़ास तौर पर इमामत के अक़ीदे की वजह से है।

हमें अपने अक़ाइद की हिफ़ाज़त करनी चाहिए और किसी से निकटता हासिल करने के लिए अपने अक़ाइद से समझौता नहीं करना चाहिए। मासूमीन की इस्मत से संबंधित शक-ओ-शुबहात से दूर रहना ज़रूरी है, क्योंकि अगर ये बुनियादें कमज़ोर होंगी तो रिवायतें और दीनी तालीमात ख़तरे में आ जाएँगी। अहकाम-ए-दीन की मुख़ालफ़त सुधारी जा सकती है, लेकिन अक़ाइद में शक और तर्दीद की कोई इस्लाह सम्भव नहीं। इसलिए हमें इस मैदान में काम करते हुए अक़ायद-ए-इमामत को मज़बूत से मज़बूततर करना चाहिए। अगर हम ये बुनियादें कमज़ोर कर देंगे तो धीरे-धीरे हमारी पहचान ख़त्म हो जाएगी।

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हौज़ा: तब्लीग़ के हवाले से जनता से संपर्क और छात्रो की ज़िम्मेदारी क्या होनी चाहिए?

हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन सय्यद अहमद अली आबिदी: तुल्लाबे-किराम और मुबल्लीग़ीन के लिए ज़रूरी है कि वे नौजवानों और लोगो की समस्याओं को समझें और उनके क़रीब रहें, मगर अपने वक़ार, अख़लाक़ियात और रूहानियत को हमेशा बरक़रार रखें। लोगो के साथ संपर्क बनाए रखने के लिए उनकी ज़बान और लहजे को समझना बहुत महत्व रखता है, ताकि पैग़ाम दिल तक पहुँचे और असर अंदाज़ हो।

उनके साथ दोस्ताना और मोहब्बत भरा रवैया अपनाना चाहिए, लेकिन अपने दीनी हदूद और उसूलों से कोई समझौता नहीं करना चाहिए। यही तरीका पैग़म्बर-ए-अकरम (स) ने इख़्तियार फ़रमाया था और यही हमारे मोअस्सिर तब्लीगी किरदार की बुनियाद है। जनता के साथ संपर्क केवल बात चीत तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके दिल जीतना, उनकी मुश्किलात समझना और दीन की रौशनी में रहनुमाई करना भी है। छात्रो को चाहिए कि वे इल्म के ज़रिये खुद को मज़बूत करें और अपने इल्मी व रूहानी किरदार से लोगो के लिए मशअल-ए-राह बनें।

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हौज़ा: आख़िर में तुल्लाब और जनता के लिए आपका पैग़ाम क्या है?

हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन सय्यद अहमद अली आबिदी: आज के दौर में सबसे अहम ज़रूरत यह है कि तुल्लाब में जज़्बा और लगन पैदा की जाए, लोगो से मज़बूत संपर्क स्थापित किया जाए और अक़ाइद को हर हाल में मज़बूत रखा जाए।  छात्रो को चाहिए कि वे केवल इल्म हासिल करने तक सीमित न रहें, बल्कि इल्म को अमल और तब्लीग़ में भी लाएँ ताकि दीन की रौशनी हर व्यक्ति तक पहुँच सके।  बुनियादें मज़बूत रखें, अक़ाइद महफ़ूज़ करें और ख़ुलूस व जज़्बे के साथ इल्म हासिल करें, ताकि किसी भी चैलेंज या दुश्मनी का मुक़ाबिला मुमकिन हो सके।

जनता के लिए मेरा पैग़ाम यह है कि वे दीनी तालीमात को समझें, अपने अक़ाइद और ईमान को मज़बूत करें और छात्रो के साथ मिलकर इल्मी व रूहानी तरक़्क़ी में हिस्सा लें।  छात्रो और जनता के आपसी सहयोग से ही सामाजिक और दीनी मसाइल का हल सम्भव है और एक मज़बूत इस्लामी समाज संगठित किया जा सकता है। अगर हम बुनियादों को मज़बूत रखें, अक़ाइद को महफ़ूज़ करें और ख़ुलूस व जज़्बे के साथ इल्म हासिल करें तो किसी भी चैलेंज, दुश्मनी या मुश्किल का सामना करना सम्भव है। यही सफ़लता का मार्ग है और यही हक़ीक़ी ताक़त है।

ईरान यतीन नही, इस्की हिफ़ाज़त इमाम ए ज़मान हज़रत हुज्जत इब्न हसन अस्करि (स) की सरपरस्ती के ज़ेरे साया है

ईरान यतीन नही, इस्की हिफ़ाज़त इमाम ए ज़मान हज़रत हुज्जत इब्न हसन अस्करि (स) की सरपरस्ती के ज़ेरे साया है

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