शुक्रवार 31 अक्तूबर 2025 - 16:00
विद्वानों का काम केवल शिक्षण ही नहीं, बल्कि समाज का बौद्धिक, नैतिक और राजनीतिक मार्गदर्शन भी है: आयतुल्लाह आराफ़ी

हौज़ा / ईरान के हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने अर्दबेल  में विद्वानों और छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि हौज़े की नींव ज्ञान और लॉजिक पर रखी गई है, और इसकी बुनियाद में सभ्यता निर्माण तथा सही राजनीतिक सोच शामिल है।

हौज़ा नयूज़ एजेंसी के अनुसार, ईरान के हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने अर्दबेल  में विद्वानों और छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि हौज़े की नींव ज्ञान और लॉजिक पर रखी गई है, और इसकी बुनियाद में सभ्यता निर्माण तथा सही राजनीतिक सोच शामिल है।

उन्होंने कहा कि उलेमा का काम सिर्फ़ पढ़ाना और सिखाना नहीं है, बल्कि समाज को बौद्धिक, नैतिक और राजनीतिक दिशा देना भी उनकी जिम्मेदारी है। आयतुल्लाह आराफ़ी ने बताया कि जो लोग हौज़े में "राजनीति से दूर रहने" की बात करते हैं, वे खुद भी राजनीतिक दृष्टिकोण रखते हैं, क्योंकि दीन की सोच का एक अनिवार्य हिस्सा राजनीति और जनसेवा है।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने आगे कहा कि हौज़े की विचारधारात्मक नींव ज्ञान और प्रमाण पर टिक़ी है, और इसकी स्वाभाविक प्रवृत्ति राजनीति की समझ और सामाजिक नेतृत्व पर आधारित है। जो लोग हौज़े की राजनीतिक समझ के विरोधी हैं, वे भी दरअसल स्वयं राजनीतिक सोच रखते हैं।

उन्होंने कहा कि दीन की शिक्षाओं को प्रचारित करने में वैज्ञानिक व तर्कसंगत आधार होना हमारी विशिष्ट पहचान है। जबकि कुछ अन्य समूह केवल सरल नारों और भावनात्मक शब्दों से जनता को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।

हौज़े की नीव फिक़्ह, फ़लसफ़ा और इरफ़ान में उन्नति और  मुहक्किक अर्दबेली तथा मुल्ला सदरा जैसे विद्वानों की विरासत इस बात की निशानी है कि धार्मिक ज्ञान ने मानवी सभ्यता पर गहरा प्रभाव डाला है।

उन्होंने सुप्रीम लीडर के संदेश के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर बात करते हुए कहा कि "सभ्यतामूलक सोच" (तमद्दुनी फिक्र) इस्लामी ज्ञान की आत्मा है।

इस्लाम के विचार प्रणाली में न तो यह अति है कि इंसानी विज्ञानों को बेकार माना जाए, और न यह कमी कि धार्मिक ज्ञान को सभ्यता से अलग कर दिया जाए  बल्कि इस्लाम एक समग्र प्रणाली है जो आस्था, कानून और नैतिकता के ज़रिए मानव जीवन को दिशा देता है।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने बताया कि आज हौज़े में लगभग 400 वैज्ञानिक विभाग बनाए जा चुके हैं, जिन पर सैकड़ों शोधकर्ताओं ने वर्षों कार्य किया है।

यह प्रगति उन महान चिंतकों इमाम खुमैनी (र), आलमा तबातबाई (र) और शहीद मुतहरी (र) की उस सभ्यतामूलक सोच का परिणाम है जो उन्होंने प्रस्तुत की थी।

उन्होंने यह भी कहा कि रहबर-ए-मुअज़्ज़म के संदेश में ऐतिहासिक चेतना को भी विशेष महत्व दिया गया है। छात्रों को इस्लामी इतिहास, ईरान के इतिहास, इस्लामी क्रांति और धार्मिक आंदोलनों का गहन अध्ययन करना चाहिए ताकि वे अपने दावत और शोध के कार्य को और अधिक प्रभावी बना सकें।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने स्पष्ट कहा कि उलेमा की पहचान राजनीति से अलग नहीं है। 

राजनीतिक समझ का अर्थ सत्ता नहीं बल्कि जनता की सेवा, धार्मिक मार्गदर्शन और सामाजिक सुधार है।

अंत में उन्होंने कहा कि हमारा वादा है कि हम हौज़े, क्रांति और नेतृत्व की उन्नति के लिए अपनी पूरी ऊर्जा समर्पित करेंगे।

उन्होंने बताया कि हौज़े के लिए 20 मूल दस्तावेज़, एक पाँच-वर्षीय योजना और 100 से अधिक सुधार परियोजनाएँ तैयार की जा चुकी हैं ताकि उसे रहबर-ए-मुअज़्ज़म के शब्दों में वास्तव में "अग्रणी और आदर्श" केंद्र बनाया जा सके।

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