हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस रिवायत को "
मन ल यहज़रूल फकिह" पुस्तक से लिया गया है। इस कथन का पाठ इस प्रकार है:
:قال الامام الصادق علیہ السلام
إِنَّ مِنْ تَمَامِ اَلصَّوْمِ إِعْطَاءُ اَلزَّكَاةِ يَعْنِي اَلْفِطْرَةَ كَمَا أَنَّ اَلصَّلاَةَ عَلَى اَلنَّبِيِّ صَلَّى اَللَّهُ عَلَيْهِ وَ آلِهِ مِنْ تَمَامِ اَلصَّلاَةِ لِأَنَّهُ مَنْ صَامَ وَ لَمْ يُؤَدِّ اَلزَّكَاةَ فَلاَ صَوْمَ لَهُ۔
हज़रत इमाम जाफर सादिक (अ.स.)ने फरमाया:
रोज़े की तक्मील ज़कात यानी फितरह के अदा करनें में हैं, जिस तरह की पैग़ंबरे अकरम(स.ल.व.व.) पर सलवात भेजना नमाज़ की कमाल है, बस अगर कोई रोज़ा रखे,और ज़कात(फितरह)अदा न करें उस ने रोज़ा रखा ही नहीं.
मन ल यहज़रूल फकिह,भाग 2,पेंज 183