हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,दोहुरूल अर्ज़ 25 ज़िलकायेदा का दिन हैं। यह दिन बा बरकत दिन है। इस दिन कुछ आमाल है। जिस को अंजाम देने का बहुत सवाब है।
दहवुल अर्ज़ क्या है, और इस दिन के आमाल क्या है?
25 ज़िलकाअदा का दिन हैं। यह वह दिन है जब अल्लाह ने काबा के नीचे पानी के ऊपर ज़मिन को फैलाया गया हैं। और यही वजह है कि यह दिन और इसकी रात इन नेक दिन और रातों में से एक है। कि जिनमें अल्लाह तआला अपने बंदों पर रहमत फरमाता है और इस्लामी रिवायत के मुताबिक इस दिन में कयाम और इबादत करने का बहुत ज़्यादा अज़र और साहब है। और रोज़े दोहुरूल इन दिनों में से एक है कि साल भर में जिसने रोज़ा रखने की फज़ीलत बहुत ज़्यादा है।
दहूर; का अर्थ है ज़मीन को फैलाना और चौड़ा करना या यूं कहा जाए जिसे चौड़ा किया जाए या फैलाया जाए उसे(दोहरूश शाये) कहा जाता है।
कुरान की आयेत "و الارض بعد ذلک دحها"भी इसी अर्थ की ओर इशारा करती है
यानी ,और इसके बाद ज़मीन को इंसानों और दूसरे मखलूकात के फायदे के लिए फैला दिया।
और जो हज़रत अली अलैहिस्सलाम की दुआ में आया हुआ है, اللّهم داحی المدحوات,
यानी ये ज़मीन को फैलाने वाले और बढ़ाने वाले (4) इससे अर्थ यह है कि खुदा ने ज़मीन को काबे और उसके मुकाम से फैला दिया और दोहुरूल अर्ज़ कि जो 25 ज़िलकायेदा का दिन है।
यह इस तथ्य को संदर्भित करता है कि उस दिन अल्लाह ने काबा को प्रकट किया और अल्लाह ने उस स्थान से पृथ्वी को फैलाना शुरू कर दिया। और इसी वजह से कहा जाता है यानी रोज़े दोहुरूल अर्ज़ ज़मीन को फैलाने और चौड़ा करने का दिन।
ये वो दिन है कि जिस दिन रहमते खुदा फैला दी जाती है और इस दिन की इबादत और ज़िक्रे खुदा के लिऐ इकट्ठा होना बेहद सवाब रखता है और इस दिन के लिऐ रोज़ा, इबादत, ज़िक्रे खुदा और ग़ुस्ल के अलावा दो अमल भी बताऐ गऐ है।
पहला अमलः 2 रकअत नमाज़ है कि जो चाश्त (तक़रीबन 10 से 12 के दरमियान) के वक्त पढ़ी जाती है और उसकी दोनो रकआत मे सूरे हम्द के 5 मर्तबा सूरा ऐ वश्शम्स पढ़े और बाकी नमाज़ फज्र की नमाज़ की तरह पढ़ कर तमाम करे।
और उसके बाद एक पढ़ेः
ला होला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्ला हिल अलीयील अज़ीम।
और ये दुआ पढ़ेः
या मुकीलल असरात अक़िलनी असरती, या मुजीबद दावात अजिब दअवती, या सामेअल असवात इस्मअ सौती, वरहमनी व तजावज़ अन सय्येआती, वमा इन्दी या ज़ल जलाले वल इकराम।
اللَّهُمَّ دَاحِی الْکَعْبَةِ وَ فَالِقَ الْحَبَّةِ وَ صَارِفَ اللَّزْبَةِ وَ کَاشِفَ کُلِّ کُرْبَةٍ أَسْأَلُکَ فِی هَذَا الْیوْمِ مِنْ أَیامِکَ الَّتِی أَعْظَمْتَ حَقَّهَا وَ أَقْدَمْتَ سَبْقَهَا وَ جَعَلْتَهَا عِنْدَ الْمُؤْمِنِینَ وَدِیعَةً وَ إِلَیکَ ذَرِیعَةً وَ بِرَحْمَتِکَ الْوَسِیعَةِ أَنْ تُصَلِّی عَلَی مُحَمَّدٍ عَبْدِکَ الْمُنْتَجَبِ فِی الْمِیثَاقِ الْقَرِیبِ یوْمَ التَّلاقِ فَاتِقِ کُلِّ رَتْقٍ وَ دَاعٍ إِلَی کُلِّ حَقٍّ وَ عَلَی أَهْلِ بَیتِهِ الْأَطْهَارِ الْهُدَاةِ الْمَنَارِ دَعَائِمِ الْجَبَّارِ وَ وُلاةِ الْجَنَّةِ وَ النَّارِ وَ أَعْطِنَا فِی یوْمِنَا هَذَا مِنْ عَطَائِکَ الْمَخْزُونِ غَیرَ مَقْطُوعٍ وَ لا مَمْنُوعٍ [مَمْنُونٍ] تَجْمَعُ لَنَا بِهِ التَّوْبَةَ وَ حُسْنَ الْأَوْبَةِ یا خَیرَ مَدْعُوٍّ وَ أَکْرَمَ مَرْجُوٍّ یا کَفِی یا وَفِی یا مَنْ لُطْفُهُ خَفِی الْطُفْ لِی بِلُطْفِکَ وَ أَسْعِدْنِی بِعَفْوِکَ وَ أَیدْنِی بِنَصْرِکَ وَ لا تُنْسِنِی کَرِیمَ ذِکْرِکَ بِوُلاةِ أَمْرِکَ وَ حَفَظَةِ سِرِّکَ وَ احْفَظْنِی مِنْ شَوَائِبِ الدَّهْرِ إِلَی یوْمِ الْحَشْرِ وَ النَّشْرِ وَ أَشْهِدْنِی أَوْلِیاءَکَ عِنْدَ خُرُوجِ نَفْسِی وَ حُلُولِ رَمْسِی وَ انْقِطَاعِ عَمَلِی وَ انْقِضَاءِ أَجَلِی اللَّهُمَّ وَ اذْکُرْنِی عَلَی طُولِ الْبِلَی إِذَا حَلَلْتُ بَینَ أَطْبَاقِ الثَّرَی وَ نَسِینِی النَّاسُونَ مِنَ الْوَرَی وَ أَحْلِلْنِی دَارَ الْمُقَامَةِ وَ بَوِّئْنِی مَنْزِلَ الْکَرَامَةِ وَ اجْعَلْنِی مِنْ مُرَافِقِی أَوْلِیائِکَ وَ أَهْلِ اجْتِبَائِکَ وَ اصْطِفَائِکَ وَ بَارِکْ لِی فِی لِقَائِکَ وَ ارْزُقْنِی حُسْنَ الْعَمَلِ قَبْلَ حُلُولِ الْأَجَلِ بَرِیئا مِنَ الزَّلَلِ وَ سُوءِ الْخَطَلِ اللَّهُمَّ وَ أَوْرِدْنِی حَوْضَ نَبِیکَ مُحَمَّدٍ صَلَّی اللَّهُ عَلَیهِ وَ آلِهِ وَ اسْقِنِی مِنْهُ مَشْرَبا رَوِیا سَائِغا هَنِیئا لا أَظْمَأُ بَعْدَهُ وَ لا أُحَلَّأُ وِرْدَهُ وَ لا عَنْهُ أُذَادُ وَ اجْعَلْهُ لِی خَیرَ زَادٍ وَ أَوْفَی مِیعَادٍ یوْمَ یقُومُ الْأَشْهَادُ اللَّهُمَّ وَ الْعَنْ جَبَابِرَةَ الْأَوَّلِینَ وَ الْآخِرِینَ وَ بِحُقُوقِ [لِحُقُوقِ] أَوْلِیائِکَ الْمُسْتَأْثِرِینَ اللَّهُمَّ وَ اقْصِمْ دَعَائِمَهُمْ وَ أَهْلِکْ أَشْیاعَهُمْ وَ عَامِلَهُمْ وَ عَجِّلْ مَهَالِکَهُمْ وَ اسْلُبْهُمْ مَمَالِکَهُمْ وَ ضَیقْ عَلَیهِمْ مَسَالِکَهُمْ وَ الْعَنْ مُسَاهِمَهُمْ وَ مُشَارِکَهُمْ اللَّهُمَّ وَ عَجِّلْ فَرَجَ أَوْلِیائِکَ وَ ارْدُدْ عَلَیهِمْ مَظَالِمَهُمْ وَ أَظْهِرْ بِالْحَقِّ قَائِمَهُمْ وَ اجْعَلْهُ لِدِینِکَ مُنْتَصِرا وَ بِأَمْرِکَ فِی أَعْدَائِکَ مُؤْتَمِرا اللَّهُمَّ احْفُفْهُ بِمَلائِکَةِ النَّصْرِ وَ بِمَا أَلْقَیتَ إِلَیهِ مِنَ الْأَمْرِ فِی لَیلَةِ الْقَدْرِ مُنْتَقِما لَکَ حَتَّی تَرْضَی وَ یعُودَ دِینُکَ بِهِ وَ عَلَی یدَیهِ جَدِیدا غَضّا وَ یمْحَضَ الْحَقَّ مَحْضا وَ یرْفِضَ الْبَاطِلَ رَفْضا اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَیهِ وَ عَلَی جَمِیعِ آبَائِهِ وَ اجْعَلْنَا مِنْ صَحْبِهِ وَ أُسْرَتِهِ وَ ابْعَثْنَا فِی کَرَّتِهِ حَتَّی نَکُونَ فِی زَمَانِهِ مِنْ أَعْوَانِهِ اللَّهُمَّ أَدْرِکْ بِنَا قِیامَهُ وَ أَشْهِدْنَا أَیامَهُ وَ صَلِّ عَلَیهِ [عَلَی مُحَمَّدٍ] وَ ارْدُدْ إِلَینَا سَلامَهُ وَ السَّلامُ عَلَیهِ [عَلَیهِمْ] وَ رَحْمَةُ اللَّهِ وَ بَرَکَاتُهُ۔
इस रोज़ जियारते इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम भी मुस्तहब है।