हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , 16 जून 2021 को ईरान के सर्वोच्च नेता सैय्यद अली ख़ामेनेई (म.ज़.) ने ईरान के तेरहवें प्रेसिडेंशियल इलेक्शन और दीनी काउंसिल के छठे इलेक्शन के मौक़े पर ईरानी लोगो से ख़िताब किया है। इस ख़िताब के अहम बात कुछ इस प्रकार है:
अशरा-ए-करामत [हज़रत मासूमा-ए-क़ुम (स.अ.) और इमाम अली रज़ा (अ.स.) के जन्म दिन के बीच के दस दिन] की मुबारकबाद पेश करता हूं, हज़रत (स.अ.) की ज़ियारत के इच्छुक लोगो को भी मुबारकबाद पेश करता हूं, अफ़सोस है की हम एक अर्से से इस सआदत से महरूम है।
मेरा मौज़ू 'इलेक्शन' है, क्यूंकि इसके आयोजन में केवल 48 घंटे बचे है।
इस्लामी निज़ाम में जम्हूरियत अवाम की भरपूर शिरकत से ही अमली जामा पहनती है।
ईरानी इलेक्शन के ख़िलाफ़ जितने प्रोपगंडें होतें है शायद ही किसी मुल्क के इलेक्शन के ख़िलाफ़ होते हो। आप देखें की कई महीनों से अमरीका और इसके पिठू मुल्क मुस्तक़ील प्रोपगंडों का बाज़ार गर्म किए हुए है।
हमारे दुश्मनों का मक़सद ये है की अवाम इलेक्शन में हिस्सा ना लें। इंशाअल्लाह! हमेशा की तरह इस बार भी हम दुश्मन की आरज़ूओं के ख़िलाफ़ अमल करेंगे। आज इलेक्शन में अवाम की शिरकत एक अमले-सालेह साबित होगी।
जो लोग अवाम को इलेक्शन की जानिब से मायूस करने की कोशिश कर रहे हैं। वो इस्लामी निज़ाम को कमज़ोर करना चाहते है। ताकी ये मुल्क दहशतगर्दों की क़रारगाह बन जाए।
इस जुमा को जीत हासिल करने वाला सद्रे जम्हूरिया अगर वाज़ेह अक्सरियत से कामयाब होता है तो वो मज़बूत और ताक़तवर सद्र होगा और नुमाया काम अंजाम दे सकेगा।
जिस मुल्क (सऊदी अरब) का निज़ाम क़बाइली अंदाज़ में चल रहा है वो भी ईरान के इलेक्शन के ख़िलाफ़ चौबीस घंटे का टीवी प्रोग्राम पेश कर रहे हैं।
मैं इक़्तेसादी मसाएल (Economic issues) में अवाम की मौजूदा शिकायत से इत्तेफ़ाक़ रखता हूं। लेकिन इलेक्शन में कम शिरकत से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखता। क्यूंकि मुश्किलात से हल का रास्ता वोटिंग है।
मैं नौजवानों पर पूरे तरीक़े से भरोसा करता हूं। आप इस इलेक्शन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लें।
हमारे नौजवान इस इंतेज़ार में नहीं बैठे थे की आलमी सतह के कंजूस हमें वैक्सीन बेचें। बल्कि पहले दिन से ही इन्होंने मेहनत शुरू कर दी थी और वैक्सीन बना डाली। अब हम दुनिया के इन पांच-छह मुल्कों में से एक है जो वैक्सीन बनाने में कामयाब हुए है।
दूसरी वैक्सीने भी ट्रायल में है। हमनें रेडियो और न्यूक्लियर मेडिसिन बनाने में भी चंद माह में ही तरक़्क़ी हासिल की है और हमें किसी के सामने हाथ फ़ैलाने की ज़रूरत नहीं है। हमारे नौजवानों ने अच्छे दीफ़ाई हथियार भी तैयार किए है।
लिहाज़ा! इस मिल्लत को कमज़ोर समझना ग़लत है।
— दुआ; ख़ुदा हाफ़िज़!