हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयय्द अली ख़ामनेई ने शरई मजबूरी में औरतों की नमाज़े आयात की कज़ा के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब कुछ इस प्रकार देते हैं,यह मसले हम यहां पर उन लोगों के लिए बयान रखते हैं जो दीनी मामेलात में दिलचश्पी रखते हैं।
शरई मजबूरी में औरतों की नमाज़े आयात की कज़ा का हुक्म
सवाल:यदि महिलाओं के कुछ खास दिनों में नमाज़े आयात के आस्बाब जैसे कोई सबब ज़ाहिर हो तो महिलाओं की क्या ज़िम्मेदारी होती है?
उत्तर: नमाज़े आयात में जिन का कोई निर्धारित समय नहीं है, जैसे नमाज़े ज़लजला, ऐसी नमाज़ की अदा या कज़ा इन औरतों पर वाजिब नहीं है, जो माहवारी या निफास के आलम में है, और इसी तरह वह नमाज़े आयात जिन का निर्धारित समय है। जैसे चंद्रमा ग्रहण आज सूरज ग्रहण की नमाज़ अगर इस समय भी माहवारी में रहे तो इस कि अदा या कज़ा इन औरतों पर वाजिब नहीं है।