۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
जमान बाकरी

हौज़ा / इस्लामी तालीमात में शबे कद्र को एक खास अहमिय्यत हासिल है। यहां तक कि हुजूरे अकरम (स.अ.व.व.) ने फरमाया  कि बेशक खुदा ने शबे कद्र को मेरी उम्मत को आता फरमाया है। जबकि उस से पहले की उम्मत वालों को आता नहीं फरमाया। इसी तरह निगाहे कुरान में इस शब की अजमत को यूं बयान किया गया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी!

लेखक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सय्यद मोहम्मद ज़मान बाक़री
शबे कद्र हजार महीनों से बेहतर है
‌हजार महीने 3000 दिन के होते हैं जो 83 साल से ज्यादा होते हैं। इस तरह यह शब एक आम इंसान की कुल उम्र से ज्यादा करार पाती है। एक इंसान जितना अमल तमाम जिंदगी में अंजाम दे सकता है उस से भी बढ़ कर यह शब उसे सवाब अता करती है। इसीलिए रात में इबादतो और नमाजो का ख़ास हुक्म है। ताकि ज्यादा से ज्यादा अज्र और अच्छे से अच्छे मुस्तकबिल को हासिल किया जा सके। शबे कद्र का एक खास रिश्ता विलायते अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम और विलायते आइम्म-ए अत्हार (अ०स०) से है।इसी शब को खुदाए करीम ने विलायत व इमामत को इंसानों पर फर्ज करते हुए मुकद्दर फरमाया है। हुजूर ने फरमाया
‌बेशक अल्लाह तबारक व ताला ने शबे कद्र में कयामत तक होने वाले तमाम उमूर को मुकद्दर फरमाया है। इन्हीं में से ( ए अली ) आपकी और आप की रोजे कयामत तक आने वाली औलाद की विलायत को भी मुकद्दर फरमाया है।
‌इमाम सादिक़ अ०स० ने फरमाया हां शबे कद्र वह रात है जिसमें आसमानों और जमीन को और अमीरुल मोमिनीन अ०स० की विलायत को मुकर्रर किया गया है।
 नुज़ूले कुरआन की शब
शबे कद्र की फजीलतो मैं इजाफे की एक खास वजह इस शब में खुदा की अज़िम किताब क़ुरआने मजीद का नाजिल होना है। इस सिलसिले में कुरान ए मजीद ने इशारा फरमाया है। 
‌बेशक हमने इस क़ुरआन को शबे क़द्र में नाजिल किया है।
‌ बेशक हमने इस क़ुरआन को बरकत वाली रात में ना जल किया है।
शबे कद्र कल्बे रमजानुल मुबारक
‌इमाम जाफ़रे सादिक अ०स० ने शबे कद्र को कल्बे रमजान उल मुबारक करार दिया है।
‌ बेशक अल्लाह ने नज़्दीक उसकी किताब में ख़िल्कते आसमान व जमीन के दिन से ही 12 महीने है। इन महीनों में सबसे अच्छा महीना खुदा का महीना है जो  माहे रमजान है और माहे रमजान का दिल शबे कद्र है।
‌इस तरह शबे कद्र की अजमत को बखूबी समझा जा सकता है क्योंकि माहे रमजान को खुदा ने अपना महीना करार दिया है और उसके रोज़ो की जज़ा खुद अता फरमाता है अब अगर इस माह का दिल शबे कद्र को करार दिया गया है तो फिर उसका कितना गहरा रिश्ता रब्बे करीम से होगा उसको बखूबी समझा जा सकता है।
नुज़ूले मलाएका की शब 
‌ शबे कद्र की अज़मत यह है कि इस  शब में मलाएका और रूह तमाम उमूर को लेकर बारगाहे रब्बुल इज़्ज़त से ज़मीन पर आते हैं और तमाम शब सलामती  ही सलामती क़रार पाती है।
‌शबे कद्र में मलाएका और रूह इज़्ने परवरदिगार से तमाम अम्र लेकर नाजिल होते है। सलामती है उस शब मैं यहां तक की तुलूए फ़जृ हो जाए।
‌ इसी बिना पर जल इमाम मोहम्मद बाक़ीर अ०स० से पूछा गया कि क्या आप जानते हैं की शबे कद्र कौन सी रात है? फरमाया:
‌ हम कैसे शबे कद्र ना जानेंगे जबकि इस शब मलाएका हमारा तवाफ करते हैं।
‌यही वजह है कि शबे कद्र में वारिद होने वाली दुआओं में अइम्मए अत्हार अ०स० का वास्ता देकर दुआ करने की ताकीद की गई है।
शबे क़द्र शबे मग़्फ़िरत 
‌ यूं तो तमाम साल और तमाम वक़्तो मैं इस्तिग़्फार का हुक्म हुआ है और हमेशा खुदा की बारगाह में एस इस्तिग़्फार के जरिए हाजिर होने की ताकीद की गई है। मगर शबे कद्र में खास तौर सेइस्तिग़्फार के लिए बयान वारिद  हुआ है। क्योंकि यह मग़्फिरत की शब है।और खुदा बंदों के तमाम गुनाहों को माफ फरमाता है।
रसूले अकरम स०अ० ने बयान फरमाया:
जो शबे कद्र में ईमान और अक़ीदए रोजे जजा के साथ इबादत बजा लाए खुदा उसके तमाम गुज़िशता गुनाह बक्श देता है।
इमाम बाक़िर अ०स० ने भी  फरमाया
जो शबे कद्र में बेदार रहे उसके गुनाह माफ हो जाते हैं अगरचे उनकी वज़्न और समुन्दरो की लहरों के बराबर ही क्यों ना हो।
शबे कद्र हमेशा और हर साल
अबूज़र ग़िफ़ारी ने रसूले अकरम स०अ० से पूछा:
ए अल्लाह के रसूल। क़द्र तो एक ऐसी चीज है जो अंबिया के जमाने में थी की अमृ इलाही उन पर नाजिल हुए।जब वह सब चले गए तो फिर यह क़द्र को भी उठा लिया गया।
हुजूरे अकरम स०अ० ने फरमाया: नहीं बल्कि क़द्र रोज़े कयामत तक बाकी है।
इन मुबारक तारीखों में तमाम मोमिनीन कोरोना जैसे वायरस को खत्म करने की अल्लाह की बारगाह में दुआ फरमाए हालात को देखते हुए हर शख्स अपनी जिम्मेदारी समझते हुए एहतियात बरते एक दूसरे की जान की हिफाजत करें और अपनी भी जान की हिफाजत करें
मेम्मबर ऑफ ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड लखनऊ वा इमाम ए जमाअत शिया मस्जिद इमामबाड़ा किला रामपुर
सय्यद मोहम्मद ज़मान बाक़री

टैग्स

कमेंट

You are replying to: .