۲ آذر ۱۴۰۳ |۲۰ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 22, 2024
कुरआन

हौज़ा / मुसलमानों में कुछ ऐसे लोग भी हो सकते हैं जो मानते हैं कि क़ुरान मे कोई कमी है, लेकिन सभी मुसलमान इस बात से सहमत हैं कि क़ुरआन में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है।

लेखकः फ़िदा हुसैन साजेदी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी। शियाओं के अनुसार कुरान की आयतों, रिवायतो और ऐतिहासिक तथ्यों के आलोक में वर्तमान कुरान जो सभी मुसलमानों के हाथो में है, वही ईश्वरीय ग्रंथ है। यही वह कुरान जो रसूले अकरम (स.अ.व.व.) पर उतरा इसमे किसी प्रकार की कोई कमी या बढ़ोतरी नही हुई है।

दूसरे, कुछ विद्वानों का मत है कि कुरान का वर्तमान स्वरूप पवित्र पैगंबर (स.अ.व.व.) के समय में अस्तित्व में आया था।

1- जिन शिया विद्वानों का विचार है कि कुरान का वर्तमान स्वरूप स्वयं पवित्र पैगंबर (स.अ.व.व.) के समय में अस्तित्व में आया है। उनमे अबुल क़ासिम अब्दुल हई पुत्र अहमद बल्ख़ी ख़ुरासानी ( मृत्यु 319), अबू बक्र अंबारी (मृत्यु 328), सैय्यद मुर्तजा अलामुल हुदा, हाकिमे जिशुमी (मृत्यु 293), महमूद बिन हमजा किरमानी (मृत्यु लगभग 505), फ़ज़्ल बिन हसन तबरसी (मृत्यु 528), सैय्यद बिन ताऊस (मृत्यु 662), सैय्यद अब्दुल हुसैन शरफ़ुद्दीन (मृत्यु 1377), आयतुल्लाह हुसैन तबातबाई बुरुजर्दी , आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अबुल क़ासिम अलखूई (मृत्यु 1412) और इसी तरह अन्य विद्वान शामिल है। इन विद्वानो के एकमत राय के अनुसार यह कहना है कि कुरान खलीफाओं के समय में संकलित किया गया था, किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं है।

2- जिन विद्वानों का मत है कि कुरान का वर्तमान स्वरूप खलीफाओं के समय में अस्तित्व में आया, उनका भी यह मत है कि कुरान को किसी भी तरह से विकृत नहीं किया गया है। कुछ विद्वान का दृष्टिकोण यहा बयान करते हैं। इस संबंध में शेख सदुक इस हवाले से कहते हैं:

हम शिया मानते हैं कि कुरान जो पवित्र पैगंबर (स.अ.व.व.) पर उतारा गया था, वही कुरान है जो आज हमारे पास है, जिसमें 114 सूरे हैं। और इसमे किसी प्रकार की कोई कमी या बढ़ोतरी नही हुई है।

इस संबंध में आयतुल्लाह बुरूजर्दी कहते हैं:
यदि किसी को इस्लामी समाज की स्थिति और आज इस्लाम के इतिहास का सही ज्ञान है और पूरे कुरान की सुरक्षा और संरक्षण के लिए मुसलमानों के संघर्ष को समझता है, तो विकृत दृष्टिकोण को स्वीकार करना असंभव है।

3. प्रमुख सुन्नी विद्वानों ने स्वीकार किया है कि वे शियाओं की विकृति के बारे में आश्वस्त नहीं हैं। उनमें से अबुल हसन अली इब्न इस्माइल अल-अशरी हैं, जो अशारी विचारधारा के संस्थापक हैं। वे कुरान की विकृति से इनकार करते हैं और वे वृद्धि और कमी दोनों के संदर्भ में कुरान की विकृति को नकारते हैं।

4. मुसलमानों में से कुछ ऐसे भी हो सकते हैं जो मानते हैं कि कुरान मे कोई कमी है, लेकिन सभी मुसलमान इस बात से सहमत हैं कि कुरान मे कोई बढ़ोतरी नही हुई है।

5. जिस तरह कुरान ईश्वर की सुंदरता को व्यक्त करता है और प्रेम, न्याय, समानता और समानता का संदेश देता है, उसी तरह ईश्वर की महिमा भी प्रकट होती है। अत: इसमें अत्याचारियों, अत्याचारियों और भ्रष्ट लोगों के उत्पीड़न, बर्बरता, भ्रष्टाचार और अन्याय को रोकने के लिए मजबूत सिद्धांत और कानून हैं, जबकि दया और करुणा हमेशा क्रोध और महिमा पर हावी रहती है। इसलिए जिन श्लोकों की ओर इशारा किया गया है। यदि इनकी ठीक से व्याख्या और व्याख्या की जाए तो इन श्लोकों के पालन में न केवल मनुष्य का नुकसान होता है, बल्कि संपूर्ण मानवता का कल्याण और खुशी और सफलता भी छिपी होती है।

नोट: हौजा न्यूज पर प्रकाशित सभी लेख लेखकों के व्यक्तिगत विचारों पर आधारित हैं। हौजा न्यूज और उसकी पॉलीसी का जरूरी नहीं कि स्तंभकार के विचारों से सहमत हों।

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