हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत मोहम्मदे मुस्तफ़ा(स.अ) नें फ़रमाया कि रजब की पहली शबे जुमा से ग़ाफ़्लि ना होना कि इसे फ़रिशते लैलतुल रग़ा'ऐब कहते हैं । और जब एक तिहाई हिस्सा इस रात का गुज़र जाता है तो मलाऐका काबे और उसके अतराफ़ में जमा होते हैं फिर ख़ुदा इनसे पुछता है मेरे फ़रिशतों तुम क्या चाहेते हो तो फ़रिशते जवाब देते हैं कि मेरे ख़ुदा हँम ये चाहेते हैं कि रजब मे रोज़ा रखने वालों को बख़्श(माफ़)दे तो ख़ुदा फ़रमाता है कि मैं ने उनको बख़्श दिया । बताया गया है की जो शख्स सोने से पहले सुराः यासीन पढ़ेगा और लैलतुल रग़ा'ऐब के अमाल बजा लाएगा उसको क़ब्र की वहशत से निजात मिलेगी!
पवित्र पैग़म्बर (स:अ:व:व) ने बताया, की यह अमाल हमारे गुनाहों की माफ़ी का ज़रिया हैं और क़ब्र की पहली रात क़ो अल्लाह अपने सबसे रौशन, फ़सीह और बेहतरीन तरीक़े से नावाज़ेगा! जब पूछा गया...तो बताया जाएगा.... मेरे बन्दे, तुझे खुशखबरी है की तुझे हर खौफ़ और परेशानी से निजात मिल गयी है! "जब पूछा गया' "आप कौन हैं? अल्लाह की क़सम मैंने आप से ज़्यादा ख़ूबसूरत आदमी नही देखा, मैंने आपसे ज़्यादा प्यारी आवाज़ नहीं सुनी, और आप से ज़्यादा ख़ुशबू मै नही जानता", "जवाब में आया, मै..तुम्हारी वो ईबादत हूँ जो तुमने माहे रजब की पहली जुमरात की रात क़ो किया था, मै तुम्हारे पास आई हूँ तुम्हारे तन्हाई में साथ देने के लिये, ताकि तुमसे खौफ़ और दहशत दूर हो जाए, तुम बिलकुल निश्चिन्त हो जाओ क्योंकि मेरा साया तुम्हारे साथ उस वक़्त तक रहेगा जब तक क़यामत के रोज़ का बिगुल नही बजा दिया जाता!
आमाल का तरीक़ा
यह कहा गया है की रजब की पहली जुमरात क़ो रोज़ा रखे, और मग़रीब और ईशा की नमाज़ों के बीच 12 रक्'अत नमाज़, 2-2 रक्'अत करके 6 बार पढ़े, जिसकी नियत "नमाज़े रिजा" होगी! हर रक्'अत में सुराः हम्द के बद 3 बार सुराः अल-क़द्र और 12 मर्तबा सुराः इख्लास पढ़े
जब यह नमाज़ पूरी हो जाए तो पढ़े :
70 मर्तबा पढ़ें :
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ النَّبِىِّ الْأُمِّىِّ وَ عَلَى آلِهِ [وَ آلِ مُحَمَّدٍ]
अल्लाहुम्मा सल्ली अला मोहम्मदीन नबी'ईल उम्मी व अला आ'लेह. ऐ अल्लाह, उम्मी नबी- मोहम्मद और उनकी संतान पर अपना दरूद-ओ-सलाम भेज.
फिर सजदे में जाएँ और 70 मर्तबा पढ़ें :
सुब'बूहून क़ुद'दूस रब्बुल मलाइ-कते वर-रूह’ पाक है वो ज़ात जो सबसे ज़्यादा मुक़द्दस फ़रिश्तों और रूहों का रब है.
फिर सीधा बैठें और 70 मर्तबा कहें:
رَبِّ اغْفِرْ وَ ارْحَمْ وَ تَجَاوَزْ عَمَّا تَعْلَمُ إِنَّكَ أَنْتَ الْعَلِىُّ الْأَعْظَمُ
रब'बिग़ फ़िर वर-हम व तजा'वज़ अम्मा ता'लमो इन्नका अल्न्तल अलियुल अज़म’ ऐ रब! माफ़ करना, रहम फ़रमा दे और दयालु हो इसके बारे में जो तू खूब जानता है, बेशक तुही शानदार कामिल और ग़लबा वाला है.
फिर सजदे में जाएँ और 70 मर्तबा पढ़ें :
سُبُّوحٌ قُدُّوسٌ رَبُّ الْمَلائِكَةِ وَ الرُّوحِ
सुब'बूहून क़ुद'दूस रब्बुल मलाइ-कते वर-रूह’. पाक है वो ज़ात जो सबसे ज़्यादा मुक़द्दस फ़रिश्तों और रूहों का रब है.
फिर अपनी हाजत मागें इन्शा अल्लाह पूरी होगी ।
ओर माहे रजब में इमामे रज़ा(अ) की ज़्यारत भी मुस्तहब है ।
सामान्य अमाल
4 दिन का रोज़ा क़ब्र से निजात में सहायक है!
जो रजब में 6 दिन का रोज़ा रखेगा उसको क़यामत के दिन सुकून होगा और पुले सेरात से आसानी से पार हो जाएगा!
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