हौज़ा न्यूज़ एजेंसी
आज:
शनिवार: मुहर्रम 1444 की 29 और अगस्त 2022 की 27 तारीख है।
इत्रे कुरान:
إِنَّ لَكَ أَلَّا تَجُوعَ فِيهَا وَلَا تَعْرَىٰ(سورہ طہ ۱۱۸﴾
निसंदेह, तुम इसमें कभी ना भूखे रहेंगे, और ना नंगे।
घटनाएँ:
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आज का दिन विशिष्ठ (मख़सूस) हैः
रसूले ख़ुदा (स.अ.व.व.) से
आज के अज़कार:
- या रब्बल आलामीन 100 बार
- या हय्यो या क़य्यूम 1000 बार
- या ग़नियो 1060 बार
इमाम हसन अस्करी (अ.स.) का फ़रमान:
आज शनिवार को, दो सलाम के साथ चार रकात नमाज़ अदा करें, प्रत्येक रकअत में सूरह अल-हमद के बाद आयतल कुरसी और सूरह तौहीद (क़ुल होवल्लाहो अहद) पढ़े, तो अल्लाह तआला उसे नबियों और शहीदो के स्थान मे रखेगा।
☀ शनिवार के दिन की दुआः
بِسْمِ اللّهِ الرَحْمنِ الرَحیمْ؛ बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम अल्लाह के नाम से ( शुरू करता हूं) जो बड़ा दयालू और रहम वाला है।
بِسْمِ اللّهِ کَلِمَۃِ الْمُعْتَصِمِینَ، وَمَقالَۃِ الْمُتَحَرِّزِینَ، وَأَعُوذُ بِاللّهِ تَعَالی مِنْ جَوْرِ बिस्मिल्लाहे कलेमतिल मोतसेमीना, वा मक़ालतिल मुताहर्रेज़ीना, वा आऊज़ो बिल्लाहे तआला मिन जौरे अल्लाह के नाम से शुरू जो शरण चाहने वालो का नारा और बचाओ चाहने वालो का विर्द है और मे अत्याचारीयो की सख्ती
الْجَائِرِینَ، وَکَیْدِ الْحَاسِدِینَ، وَبَغیِ الظَّالِمِینَ، وَأَحْمَدُہُ فَوْقَ حَمْدِ الْحَامِدِینَ۔ अलजाबेरीना, वा कैदिल साजेदीना, वा बग़ेइज़्ज़ालेमीन, वा अहमदोहू फ़ौक़ा हमदिल हामेदीना हसद करने वालो के मक्र और सितमगारो के सितम से अल्लाह की शरण लेता हूं और मे प्रशंसा करने वालो से बढ़कर उसकी प्रशंसा करता हूं
اَللّٰھُمَّ أَنْتَ الْواحِدُ بِلاَ شَرِیکٍ وَالْمَلِکُ بِلاَ تَمْلِیکٍ لاَ تُضَادُّ فِی حُکْمِکَ وَلاَ تُنَازَعُ अल्लाहुम्मा अन्तल वाहेदो बेला शरीकिन वल मलेको बेला तमलिकिन ला तोज़ाद्दो फ़ी हुक्मेका वला तनाज़ाओ खुदाया तू ऐसा अकेला है जिसका कोई भागीदार नही और ऐसा बादशाह है जिसका कोई हिस्सेदार नही तेरे निर्णय में कोई विरोधाभास नहीं और तेरी
فِی مُلْکِکَ، أَسْأَلُکَ أَنْ تُصَلِّیَ عَلَی مُحَمَّدٍ عَبْدِکَ وَرَسُولِکَ، وَأَنْ تُوزِعَنِی مِن फ़ी मुल्केका, अस्अलोका अन तोसल्लेया अला मुहम्मदिन अब्दिका वा रसूलिका, वा अन तूज़ेअनी मिन सलतनत मे कोई मतभेद नही मै तुझ से सवाल करता हूं कि अपने खालिस बंदे और अपने रसूल मुहम्मद मुस्तफ़ा (स.) पर रहमत फ़रमा, मुझे अपने आशिर्वादो
شُکْرِ نُعْمَاکَ مَا تَبْلُغُ بِی غَایَۃَ رِضَاکَ، وَأَنْ تُعِینَنِی عَلَی طَاعَتِکَ وَلُزُومِ عِبَادَتِکَ शुक्रे नोआमाका मा तबलोग़ो बी ग़ायता रिज़ाका, वा अन तोईननी अला ताअतेका वा लूज़ूमे एबादतेका के धन्यवाद देने की इस प्रकार तौफ़ीक़ प्रदान कर कि जिस से तेरी मर्ज़ी का अंत प्राप्त कर सकूं और मुझे अपनी आज्ञाकारिता करने, इबादत
وَاسْتِحْقَاقِ مَثُوبَتِکَ بِلُطْفِ عِنَایَتِکَ، وَتَرْحَمَنِی بِصَدِّی عَنْ مَعَاصِیکَ مَا أَحْیَیْتَنِی वस्तेहक़ाक़े मसूबतेका बेलुत्फ़े इनायतेका, वा तरहम्नी बेसद्दी अन मआसीका मा आहययतनी को ज़रूरी समझने और अपने दया और कृपा से अपने अज़्र वा सवाब का हक़दार बनने मे मेरी सहायता कर ताकि मे तेरी अवज्ञा करने से बच सकूं
وَتُوَفِّقَنِی لِمَا یَنْفَعُنِی مَا أَبْقَیْتَنِی، وَأَنْ تَشْرَحَ بِکِتَابِکَ صَدْرِی، ,वातोवफ़्फ़ेक़नी लेमा यनफ़ाअनी मा अबक़ैतनी, वा अन तश्राहा बेकिताबेका सदरी जब तक जीवित रहू और उसकी तोफ़ीक दे जो मेरी लिए लाभकारी है जबतक बाक़ी हूं अपनी किताब के माध्यम से मेरी छाती खोल दे
وَتَحُطَّ بِتِلاوَتِہِ وِزْرِی، وَتَمْنَحَنِی السَّلاَمَۃَ فِی دِینِی وَنَفْسِی، وَلاَ تُوحِشَ بِی أَھْلَ ٲُنْسِی वा तहुत्ता बेतिलावतेहि विज़्री, वा तमनाहनिस्सलामता फ़ी दीनी वा नफ़्सी, वला तूहेशा बी अहला उनसी और उसके पाठ के माध्यम से मेरे पाप कम कर दे मेरे प्राण और मेरे धर्म मे सलामती प्रदान कर और अहले उंस को मुझ से ना कर
وَتُتِمَّ إحْسَانَکَ فِیَما بَقِیَ مِنْ عُمْرِی کَمَا أَحْسَنْتَ فِیَما مَضَی مِنْہُ، یَا أَرْحَمَ الرَّاحِمِینَ۔ वा तोतिम्मा एहसानेका फ़ीमा बक़ेया मिन उम्री कमा आहसंता फ़ीमा मज़ा मिन्हो, या अरहमर राहेमीन। और मेरे शेष बचे जीवन मे मुझ पर पूर्ण एहसान कर जिस प्रकार मेरे बीते हुए जीवन मे मुझ पर एहसान किया है ऐ सर्वाधिक धयालू।
☀ हज़रत रसूले खु़दा (स.अ.व.व.) की ज़ियारतः
ٲَشْھَدُ ٲَنْ لاَ إلہَ إلاَّ اللّهُ وَحْدَھُ لاَ شَرِیکَ لَہُ، وَٲَشْھَدُ ٲَ نَّکَ رَسُولُہُ وَٲَنَّکَ
مُحَمَّدُ بْنُ عَبْدِ اللّهِ، وَٲَشْھَدُ ٲَ نَّکَ قَدْ بَلَّغْتَ رِسالاتِ رَبِّکَ، وَنَصَحْتَ لاَُِمَّتِکَ
وَجَاھَدْتَ فِی سَبِیلِ اللّهِ بِالْحِکْمَۃِ وَالمَوْعِظَۃِ الْحَسَنَۃِ وَٲَدَّیْتَ الَّذِی عَلَیْکَ مِنَ الْحَقِّ
وَٲَ نَّکَ قَدْ رَؤُفْتَ بِالْمُؤْمِنِینَ، وَغَلَظْتَ عَلَی الْکَافِرِینَ، وَعَبَدْتَ اللّهَ مُخْلِصاً حَتَّی
ٲَتیکَ الْیَقِینُ، فَبَلَغَ اللّهُ بِکَ ٲَشْرَفَ مَحَلِّ الْمُکَرَّمِینَ، الْحَمْدُ لِلّٰہِِ الَّذِی
اسْتَنْقَذَنا بِکَ مِنَ الشِّرْکِ وَالضَّلالِ اَللّٰھُمَّ صَلِّ عَلی مُحَمَّدٍ وَ آلِہِ وَاجْعَلْ صَلَوَاتِکَ
وَصَلَوَاتِ مَلائِکَتِکَ وَٲَنْبِیائِکَ وَالْمُرْسَلِینَ وَعِبَادِکَ الصَّالِحِینَ وَٲَھْلِ السَّمَاوَاتِ
وَالْاَرَضِینَ وَمَنْ سَبَّحَ لَکَ یَا رَبَّ الْعَالَمِینَ مِنَ الْاَوَّلِینَ وَالاَْخِرِینَ عَلَی مُحَمَّدٍ عَبْدِکَ
وَرَسُولِکَ وَنَبِیِّکَ وَٲَمِینِکَ وَنَجِیبِکَ وَحَبِیبِکَ وَصَفِیِّکَ وَصِفْوَتِکَ وَخَاصَّتِکَ
وَخَالِصَتِکَ، وَخِیَرَتِکَ مِنْ خَلْقِکَ، وَٲَعْطِہِ الْفَضْلَ وَالْفَضِیلَۃَ وَالْوَسِیلَۃَ وَالدَّرَجَۃَ
الرَّفِیعَۃَ، وَابْعَثْہُ مَقاماً مَحْمُوداً یَغْبِطُہُ بِہِ الْاَوَّلُونَ وَالاَْخِرُونَ اَللّٰھُمَّ إنَّکَ قُلْتَ وَلَوْ
ٲَنَّھُمْ إذْ ظَلَمُوا ٲَنْفُسَھُمْ جَائُوکَ فَاسْتَغْفَرُوا اللّهَ وَاسْتَغْفَرَ لَھُمُ الرَّسُولُ
لَوَجَدُوا اللّهَ تَوَّاباً رَحِیماً، إلھِی فَقَدْ ٲَتَیْتُ نَبِیَّکَ مُسْتَغْفِراً تَائِباً مِنْ
ذُ نُوبِی، فَصَلِّ عَلی مُحَمَّدٍ وَ آلِہِ وَاغْفِرْہا لِی، یَا سَیِّدَنا ٲَتَوَجَّہُ بِکَ
وَبِٲَھْلِ بَیْتِکَ إلَی اللّهِ تَعَالی رَبِّکَ وَرَبِّی لِیَغْفِرَ لِی۔
फ़िर तीन बार कहे إنَّا لِلّٰہِِ وَ إنَّا إلَیْہِ رَاجِعُونَ उसके बाद कहे
ٲُصِبْنا بِکَ یَا حَبِیبَ قُلُوبِنا، فَمَا ٲَعْظَمَ الْمُصِیبَۃَ بِکَ حَیْثُ انْقَطَعَ عَنَّا الْوَحْیُ
وَحَیْثُ فَقَدْنَاکَ فَ إنَّا لِلّٰہِِ وَ إنَّا إلَیْہِ راجِعُونَ۔ یَا سَیِّدَنا یَا رَسُولَ اللّهِ
صَلَوَاتُ اللّهِ عَلَیْکَ وَعَلَی آلِ بَیْتِکَ الطَّاھِرِینَ، ہذَا یَوْمُ السَّبْتِ وَھُوَ یَوْمُکَ، وَٲَ نَا
فِیہِ ضَیْفُکَ وَجَارُکَ، فَٲَضِفْنِی وَٲَجِرْنِی، فَ إنَّکَ کَرِیمٌ تُحِبُّ الضِّیَافَۃَ، وَمَٲمُورٌ
بِالْاِجارَۃِ، فَٲَضِفْنِی وَٲَحْسِنْ ضِیَافَتِی، وَٲَجِرْنا وَٲَحْسِنْ إجَارَتَنا، بِمَنْزِلَۃِ اللّهِ
عِنْدَکَ وَعِنْدَ آلِ بَیْتِکَ، وَبِمَنْزِلَتِھِمْ عِنْدَھُ، وَبِمَا اسْتَوْدَعَکُمْ مِنْ عِلْمِہِ
فَإنَّہُ ٲَکْرَمُ الْاَکْرَمِینَ۔
इस किताब के लेखक अब्बास क़ुम्मी कहते है कि मै जब रसूले ख़ुदा (स) की यह ज़ियारत पढ़ना चाहता हूं तो पहले रसूले खुदा (स) की वह ज़ियारत पढ़ता हूं जो हज़रत अली रज़ा (अ.) ने बज़न्ती को शिक्षा दी थी उसके पश्चात उपरोक्त ज़ियारत पढ़ता हूं और उसकी कैफ़ीयत यह है सही सनद के साथ रिवायत हुई है इब्ने अबि नस्र ने इमाम रज़ा (अ.) से अर्ज़ कियाः मै नमाज़ के बाद हज़रत रसूले ख़ुदा (स) पर किस तरह सलवात भेजूं ? आपने फ़रमाया कि यू कहा करोः
اَلسَّلاَمُ عَلَیْکَ یَا رَسُولَ اللّهِ وَرَحْمَۃُ اللّهِ وَبَرَکَاتُہُ اَلسَّلاَمُ عَلَیْکَ یَا مُحَمَّدُ بْنَ
عَبْدِاللہ اَلسَّلاَمُ عَلَیْکَ یَا خِیَرَۃَ اللّهِ، اَلسَّلاَمُ عَلَیْکَ یَا حَبِیبَ اللّهِ، اَلسَّلاَمُ عَلَیْکَ
یَا صِفْوَۃَ اللّهِ، اَلسَّلاَمُ عَلَیْکَ یَا ٲَمِینَ اللّهِ ، ٲَشْھَدُ ٲَ نَّکَ رَسُولُ اللّهِ، وَٲَشْھَدُ ٲَ نَّکَ
مُحَمَّدُ بْنُ عَبْدِاللّهِ، وَٲَشْھَدُ ٲَنَّکَ قَدْ نَصَحْتَ لاَُِمَّتِکَ، وَجَاھَدْتَ فِی سَبِیلِ رَبِّکَ
وَعَبَدْتَہُ حَتَّی ٲَتَاکَ الْیَقِینُ، فَجَزَاکَ اللّهُ یَا رَسُولَ اللّهِ ٲَ فْضَلَ ما جَزی نَبِیّاً عَنْ
ٲُمَّتِہِ۔ اَللّٰھُمَّ صَلِّ عَلی مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ ٲَ فْضَلَ ما صَلَّیْتَ عَلی إبْراھِیمَ وَآلِ
إبْراھِیمَ إنَّکَ حَمِیدٌ مَجِیدٌ ۔
الـّلـهـم صـَل ِّعـَلـَی مـُحـَمـَّدٍ وَآلِ مـُحـَمـَّدٍ وَعـَجــِّل ْ فــَرَجـَهـُم