हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्त अनुसार, मौलाना मौहम्मद बशीर अंसारी 10 जनवरी सन 1901 ईस्वी में सरज़मीने शिकारपुर ज़िला बुलंदशहर पर पैदा हुए, मौलाना के वालिदे मोहतरम मौलाना इमाम अली अंसारी थे , मौलाना को फ़ातेहे टेक्सला के नाम से भी याद किया जाता है, मौलाना को फ़ातेहे टेक्सला इस लिए कहा जाता है के इन्हों ने रावलपिंडी के शहर “सरगौधा - टेक्सला” के नज़दीक ओलमाए अहले सुन्नत के साथ अपनी ज़िंदगी का अहम मुनाज़ेरा किया जिस में आप को फ़तह नसीब हुई ।
फ़ातेहे टेक्सला ने इब्तेदाई तालीम मदरसा ए अहसनुल मदारिस शिकारपुर ज़िला बुलंदशहर में मौलाना सैयद मौहम्मद एवज़ इलाहाबादी से हासिल की, उस के बाद आज़िमे लखनऊ हुए और मदरसा ए नाज़िमीय्या में रह कर बूज़ुर्ग और मुजर्रब असातेज़ा से इल्म हासिल किया ; आप को नजमुल मिल्लत आयतुल्लाह नजमुल हसन साहब से ख़ुसूसी तलम्मुज़ हासिल रहा और मुम्ताज़ुल अफ़ाज़िल की सनद अच्छे नमबरों से हासिल की ।
मौलाना ने मदरसा ए नाज़िमिया से फ़ारेगुत तहसील हो कर मदरसा तुल वाएज़ीन का रूख़ किया और वहाँ रह कर तारीख़े अदयाने जहान पढ़ी और फ़न्ने मुनाज़ेरा भी सीखा । आप ने तमाम अदयान का बहुत दिक़्क़त और ग़ौर से मुतालेआ फ़रमाया जिन में दहरीयीन, तबीईयीन, फ़लासेफ़ा, दारुवीन, आर्या, सनातन धर्म, बुद्ध, जैनी, ईसाइयत, यहूदीयत और मजूसियत को दलीलो बुरहान के साथ पढ़ा, जिस की बिना पर तमाम मज़ाहिब को बातिल और मज़हबे इस्लाम को मज़हबे हक़्क़ा के उनवान से पहचंवाया ।
आप नहव, सर्फ़, मनतिक़, फ़लसफ़ा, कलाम, मआनी, हेयत, उरूज़ो क़वाफ़ी, अरबी अदब, तफ़सीर, दिरायत, रिजाल, मुनाज़ेरा, फ़िक़्ह और उसूल जैसे मुख़तलिफ़ उलूम में महारत रखते थे ।
मौलाना मौहम्मद बशीर अंसारी ने तक़रीबन 100 मुनाज़ेरे किए जिन में टेक्सला, पटवारी हरी पुर और सरगौधा के मुनाज़ेरे क़ाबिले ज़िक्र हैं , आप ने अपनी चालीस साला तबलीगी ज़िंदगी में एक लाख से ज़्यादा लोगों को मज़हबे हक़्क़ा पर गामज़न किया ।
मौलाना कई मर्तबा अतबाते आलियात की ज़ियारत से मूशर्रफ़ हुए, एक मर्तबा आयतुल्लाह मौहम्मद काज़िम तबातबाई के मदरसे में क़याम किया , वहाँ नजफ़ के ओलमा आप से मुलाक़ात के लिए तशरीफ़ लाए और फ़िक़्ह व उसूल की इल्मी बहसें भी हुईं, इसी दौरान मौलाना को नजमुल मिल्लत आयतुल्लाह नज्मुल हसन साहब के इंतेक़ाल की ख़बर मिली । आप ने उन के इसाले सवाब के लिए एक मजलिसे अज़ा बर्पा की जिस में नजफ़े अशरफ़ के तमाम ओलमाओ फ़ोज़ला ने शिरकत की ।
नजफ़े अशरफ़ के ओलमा ने मौलाना की सलाहिय्यतों का मुशाहेदा करने के बाद आप को इल्मी अस्नाद अता फरमाईं ।
मुजाहिदे इस्लाम मौलाना मौहम्मद बशीर साहब ने 24 अप्रैल सन 1983 ईस्वी में दाईए अजल को लब्बैक कहा और ख़ालिक़े हक़ीक़ी से मुलहक़ हो गए । ग़ुस्ल व कफ़न के बाद टेक्सला रावलपिंडी ही में सुपुर्दे ख़ाक हुए ।
(माख़ूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, जिल्द 1, सफ़्हा 208, तहक़ीक़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी – मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी – दानिशनामा ए इस्लाम, नूर माइक्रो फ़िल्म, दिल्ली)