हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, निम्नलिखित रिवायत "बिहार उल-अनवार" पुस्तक ली गई है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
قال رسول الله صلی الله علیه وآله وسلم:
مَنْ اقْرَضَ مُؤمِناً قَرْضاً ینْتَظِرُ بِهِ مَیسُورَهُ کانَ مالُهُ فی زکاةٍ وَ کانَ هُوَ فی صَلاةٍ مِنَ الْمَلائِکةِ حَتّی یؤَدّیهِ الَیهِ
अल्लाह के पैगंबर (स) ने फ़रमाया:
अगर कोई किसी मोमिन को क़र्ज़ देता है और उसकी वसूली मे उसके फऱाके रिज्क मे (उसके तंग हालात के अच्छे होने) की प्रतीक्षा करे (और उस पर दबाव ना डाले) तो उसका दिया गया कर्ज़ (अल्लाह तआला के नजदीक) ज़कात शुमार होगी और जब तक उसका क़र्ज़ वापस नही कर दिया जाता फ़रिश्ते उस पर दुरूद और सलाम भेजते रहेंगे।
बिहार उल-अनवार - भाग 103 - पेज 139