हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, निम्नलिखित परंपरा "बिहार उल-अनवार" पुस्तक से ली गई है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है।
قال رسول الله صلی الله علیه و آله و سلم:
مَن عالَ يَتيما حَتّى يَسْتَغْنىَ عَنْهُ أَوْجَبَ اللّهُ عَزَّوَجَلَّ لَهُ بِذلِكَ الْجَنَّةَ كَما أَوْجَبَ اللّهُ لآِكِلِ مالِ الْيَتيمِ النّارَ
अल्लाह के रसूल (अ) ने फ़रमया:
जो शख़्स किसी यतीम को पालता और उसकी हिफ़ाज़त करता है जब तक कि वह आत्मनिर्भर और ज़रूरतमंद न हो जाए, अल्लाह तआला उस पर इस नेक काम के बदले में जन्नत वाजिब कर देता है, जिस तरह यतीम का माल खाने वाले पर जहन्नुम वाजिब है।
बिहार उल-अनवार 75/4/8