۳۱ اردیبهشت ۱۴۰۳ |۱۲ ذیقعدهٔ ۱۴۴۵ | May 20, 2024
शरई

हौज़ा / अगर कोई आदमी किसी मुश्किल की वजह से रमज़ान उल मुबारक में रोज़े ना रखें, और रमज़ान उल मुबारक के बाद उसकी मुश्किलात दूर हो जाए और वह आने वाले रमज़ान उल मुबारक तक जानबूझकर रोजों की कज़ा ना बजा लाए तो ज़रूरी है कि रोज़ो की कज़ा करें और हर दिन के लिए एक मुद ताम भी फकीर को दे।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली सिस्तानी से पूछे गए सवाल का जवाब दिया हैं जो शरई मसाईल में दिलचस्पी रखते हैं उनके लिए पूछे गए सवाल और उसके जवाब का पाठ किया जा रहा हैं।

सवाल : अगर कोई आदमी किसी मुश्किल की वजह से रमज़ान उल मुबारक में रोज़े ना रखें और अगले रमज़ान तक जानबूझकर उसकी कज़ा ना करें तो क्या हुक्म हैं?

जवाब : अगर कोई आदमी किसी मुश्किल की वजह से रमज़ान उल मुबारक में रोज़े ना रखें, और रमज़ान उल मुबारक के बाद उसकी मुश्किलात दूर हो जाए और वह आने वाले रमज़ान उल मुबारक तक जानबूझकर रोजों की कज़ा ना बजा लाए तो ज़रूरी है कि रोज़ो की कज़ा करें और हर दिन के लिए एक मूद ताम भी फकीर को दे।

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