۱۱ تیر ۱۴۰۳ |۲۴ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 1, 2024
मौलाना अली हाशिम आबिदी

हौज़ा / लखनऊ, पिछले वर्षों की तरह इस वर्ष भी अशरा ए मजालिस बारगाह उम्मुल-बनीन सलामुल्लाह अलैहा मंसूर नगर में सुबह 7:30 बजे आयोजित किया जा रहा है, जिसे मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी खेताब कर रहे हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी ने अशरा ‌ए मजालिस की नवीं मजलिस में रसूलुल्लाह स०अ० की हदीस "यक़ीनन क़त्ले हुसैन (अ.स.) से मोमिनों के दिलों में ऐसी गर्मी पैदा हो गई है जो  कभी ठंडी नहीं होगी।" को बयान करते हुए कहा: यह फर्शे अज़ा, यह मातमी जुलूस, इमाम हुसैन अ०स० के नाम पर लोगों को खाना खिलाना, पानी पिलाना उसी ईमानी हरारत का नतीजा है!
 
 मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी ने कहा: आशूर का दिन ग़म का दिन है, मुसीबत का दिन है, इस दिन नबियों के वारिस इमाम हुसैन अ०स० और उनके बा वफा साथियों और बेटों को तीन दिन की भूक और प्यास में बहुत मज़लूमियत से शहीद किया गया कि सूरज को गहेन लगा, करबला की ज़मीन को ज़लज़ला आया, मासूम इमामों ने इस दिन ग़म मनाया, मोहसिने इंसानियत का ग़म मनाना एहसान मंदी का तक़ाज़ा है! लेकिन इसके विपरीत बनी उमय्या ने आशूर के दिन खुशी मनाई, ईद मनाई, दरबारी मुल्लाओं ने हदीसें गढ़ी कि इस दिन रोज़ा रखना सवाब है, लेकिन जहाँ कहीं भी रोज़े वाली रवायत को बयान किया गया तो कहीं दौरे जाहेलियत का ज़िक्र है तो कहीं यहूदियत का तज़केरा है, जब कि रसूलुल्लाह स०अ० ने इस्लाम की तब्लीग़ की न कि जाहेलियत या रहूदियत को रायेज किया, ऐसी मन गढ़त रवायतें शाने रेसालत के मुखालिफ बल्कि शाने रेसालत में गुस्ताखी है!

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