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समाचार कोड: 384110
13 अक्तूबर 2022 - 18:43
शौकत भारती

हौज़ा / अपना अकीदा कुरान,मुस्तनद हदीस,उसूल दीन और अक्ल की रौशनी में गौर फिक्र कर के मानने वाले उलमाए किराम और दीनदार मुसलमान बड़े से बड़े तूफानों और आंधियों में भी सीसा पिलाई हुई दीवार बन कर खड़े रहते हैं और इस्लाम पर हमला करने वाले इस्लाम दुश्मनों को दलील से जवाब दे रहें है और उनके सामने दुश्मन टिक ही नहीं पाते।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी !

शौकत भारती द्वारा लिखित

इस्लाम दीने अक्ल है!
दीने इस्लाम पार्ट आफ लाइफ नहीं है बल्कि परफेक्ट वे ऑफ लाइफ है! यह वाहिद दीन है जो अल्लाह का पसंदीदा है, कोई हलाल व हराम, जायेज़ नाजायेज़ ऐसा नहीं कि जिसे इस्लाम ने न बताया हो, इसके क़ानून सिर्फ वही हैं जो क़ुरआन व सुन्नत में बयान हुए, वही क़ुरआन व सुन्नत जिसे रसूलुल्लाह स०अ० के बाद आप के मासूम जानशीनों ने जिंहें अल्लाह ने मासूम इमाम बना कर भेजा है ने बयान किया और अमल कर के बताया है, इसी सिलसिले हिदायत में इंसान की इस्लाह होती है, अगर इसकी मुखालेफत की गई तो फसाद के सिवा कुछ न हो गा, इस लिए मेहराब और मिंबर पर या नेशनल और इंटरनेशनल कांफ्रेंस के प्लेट फार्म पर जाने वालों को सबसे पहले खुद दीने इस्लाम को अक्ल की रौशनी में गौर व फिक्र कर के अच्छी तरह से समझना चाहिए और फिर दूसरों के सामने कुरआन हदीस और अक्ल की रौशनी में पेश करना चाहिए। किताबो में छपी हुई कोई हदीस हो या किसी  मुसन्निफ का नजरिया हो या अपनी फिक्र हो उसे कुरान,उसूले दीन या अक्ल पर अच्छी तरह परखे बगैर कुबूल कर लेना या जो कुछ कुरान और कुरान के एक्सपर्ट यानी अहलेबैत ने नहीं मना किया है उसे बगैर आयाते कुरानी और हदीसे अहलेबैत पेश किए हुए इसलाहे उम्मत के नाम पर अपनी तरफ से अल्लाह के बंदों को मना करना या उसे हराम और नजायेज़ बता देना ये खुला हुआ अल्लाह के कानून को तोड़ कर अपने कानून को नाफिज करने का अमल है और यही दरअसल फसाद, इख्तेलाफ और दीन की बदनामी का सबसे बड़ा सबब है। मुसलमान सिर्फ अल्लाह,रसूल और अल्लाह के मुंतखब कर के भेजे गए मासूम इमामों का ताबे है इंसानों के बनाए और चुने हुए ऊलिल अमर का नहीं। इमाम अली अ०स० और इमाम हसन अ०स० जो इंसानों के नहीं अल्लाह के बनाए हुए ऊलिल अमर हैं सिर्फ उनकी खिलाफत को छोड़ कर बादे रसूल से ले कर आज तक के जितने भी इंसानों के बनाए और चुने हुए हाकिम और ऊलिल अमर हैं उनकी वजह से ही इस्लाम का बेड़ा गर्क हुआ उन लोगों का ये हाल था की जिस चीज को अल्लाह और रसूल ने नहीं मना किया उन्हों ने उसे अपनी तरफ से मना कर डाला और अपनी ख्वाहिशाते नफ्स को दीन बना डाला जिसकी पहली मिसाल कुरान के कानून को तोड़ कर खुद ऊलिल अमर बन जाना, दूसरी मिसाल विरासत के कानून की खिलाफ वर्जी कर के बीबी फातिमा स०अ० का फिदक ले लेना तीसरी मिसाल हुक्मे मुता  जिसका ज़िक्र सूरए निसा में साफ साफ मौजूद है उसे बंद करने का एलान करना है।
इतना ही नहीं अल्लाह और रसूल के मुकाबले में तलाक के सिलसिले में अपना कानून नाफिज कर देना है,जिसकी वजह से तलाक़,तलाक़,तलाक़ कह कर न जाने कितने घर और कितनी जिंदगियां बर्बाद हो गईं रोज़आना बर्बाद हो रहीं है, मगर अक्ल के अंधे फिर भी अल्लाह की किताब में लिखे हुए कानून पर गौर नहीं कर रहे और इंसानों के बनाए हुए गैर मासूम उलील अमर की इत्तेबा कर के अपनी दुनिया और आखिरत दोनो बर्बाद कर रहे हैं, साथ ही साथ इस्लाम दुश्मनों को हंसने का मौक़ा भी दे रहे हैं।
तीसरी मिसाल गैर कानूनी ढंग से माल जमा करने वालों को कुरान की आयतें सुना कर रोकने वाले सच्चे सहाबी हज़रत अबू जर की पसलीयां तोड़ देना है, उनको जिला वतन करना है।
यही वजह थी की अल्लाह के बनाए इलाही ऊलिल अमर हजरत अली अ०स० ने सीरते शेखैन पर अमल करने की शर्त को सख्ती से ठुकरा कर तीसरी खिलाफत पर ठोकर मार दी थी और तीसरे  इलाही ऊलिल अमर इमाम हुसैन अ०स० ने यजीद की बैयत को ठुकरा कर साफ साफ एलान कर दिया था "मुझ जैसा यजीद जैसे की बैयत कभी नहीं कर सकता" यानी इलाही ऊलिल अमर कभी भी दुनिया वालों के बनाए हुए गैर मासूम ऊलिल अमर की इताअत कर ही नहीं सकता यही वजह है बादे रसूल स०अ० से आज तक हमारे यहां गैर मासूम की बैयत हराम है।

हमें हमेशा याद रखना चाहिए की रसूल अल्लाह स०अ० हमारे दीन को कयामत तक के लिए मुकम्मल कर गएं हैं और हम ही वोह कौम हैं जो कुरान की रौशनी में अल्लाह और रसूल की 100% इताअत करने वाले इलाही ऊलिल अमर को ही अपना ऊलिल अमर मानते हैं और उनकी ही इताअत करते है और दुनिया वालों के बनाए हुए ऊलिल अमर को ऊलिल अमर नहीं मानते यही वजह है की जो कुछ कुरान ने नहीं मना किया है वो सब हलाल और जाएज समझते है और इस बात पर यकीन और ईमान रखते है की कुरान में मौजूद कानून इंसानों के लिए बेस्ट कानून है जो बेस्ट वे ऑफ लाइफ है, वो इस बात पर भी ईमान रखते हैं की जिन रसूल स०अ० और आले रसूल अ०स० पर दुनिया भर के मुसलमान अपनी नमाजों में दुरूद भेजते हैं उन्हों ने बदतरीन हालात में भी कुरान के कानून पर अमल कर के दिखाया जिसकी मिसाल कर्बला का मैदान है। रसूल स०अ० और आले रसूल अ०स० ने सिर्फ उसी शै या अमल को हराम कहा जिसे  कुरान ने हराम कहा है,रसूल स०अ० और आले रसूल अ०स०  हर आन और बद्तरीन हालत में भी मशीयते इलाही के पाबंद रहे उन्हों ने अपनी मर्ज़ी से कलाम तक नहीं किया उनसे बड़ा दीन का मुबाल्लिग और कुरान  का एक्सपर्ट कोई हो ही नहीं सकता। यही वजह है की हमारे मराजये केराम सीरते रसूल और आले रसूल की पैरवी करते हैं और उसी पर चलने का ही दर्स भी देते हैं वो लोग कुरान और सीरते मासूमीन से  इस्तेमबात कर के ही कोई नतीजा पेश करते हैं और एहतियातन उस नतीजे के आगे वल्लाहो आलम बिस्सावाब भी लिख देते हैं ऐसा कर के वो कौम को मासूम और गैर मासूम खाकी और नूरी मखलूक का फ़र्क भी समझा देते हैं वो समझा देते हैं की हम इस्तेमबात करते हैं और इलाही और नूरी ऊलिल अमर रब की मर्ज़ी से कलाम करते हैं।

इसलिए सभी इसलाह का दर्द रखने वालों की जिम्मेदारी है की वो भी क़ुरआन व सुन्नत की पैरवी करें और जिन बातों को अल्लाह और उसके रसूल स०अ० ने मना किया है सिर्फ उन्हें ही मना करें और जिन्हें नहीं माना किया है उसमें दखल अंदाजी कर के हुदूदे इलाही में दखल अंदाजी न करे और अल्लाह की मखलूक को अपना नही बल्कि अल्लाह के कानून का पाबंद करें और दुनिया भर के मुसलमानों को रसूल और आले रसूल की सीरत पर ही चलने की दावत दें।

अपने आप को मुस्लेह समझने वाले जिस बात की भी इसलाह करना चाहते हैं उस बात या अमल को मना करने से पहले अपनी बात के सपोर्ट में आयाते कुरानी या मुस्तनद हदीस तलाश करके बेहतर अंदाज से अक्ल की रौशनी में पेश करें और फिर मना करें और कौम के लिए फाड़ खाने वाला दरिंदा न बन जाएं कोई भी मुसलेह किसी भी हाल में कौम को अपनी पसंद और ख्वाहिशाते नफ्स का पाबंद न बनाएं क्यों की ऐसा करना भी हुदूद इलाही में  खुली हुई मदाखिलत है।

हमें ये बात अच्छी तरह से याद रखनी चाहिए की दीन की मारेफत के बगैर दीनदारी एक ऐसी दीवार है जो अंदर से बिल्कुल खोखली है लेकिन बाहर से देखने वालों को वो बेहतरीन और खूबसूरत दिखाई दे रही है और ऐसी दीवार हवा का एक झोखा भी बरदाश्त नहीं कर सकती।

यही वजह है की दीन के जानकार होने के दावेदार तो बहुत है मगर इस्लाम दुश्मन ताकतों की तरफ़ से दीने इस्लाम,कुरान और किरदारे रसूल स०अ० पर किए जाने वाले एतराजात का जवाब देने वाले मुस्लिम उलमा और दीनदारों की तादाद कम होती जा रही है। 

इस लिए बहुत जरूरी है की दीन को किसी से सुन कर या किसी के कहने से न माना जाए बल्कि दीन को कुरान,मुस्तनद हदीस, उसूल दीन,अक्ल और मराजए किराम के नजरियात को सामने रख कर अच्छी तरह से गैरो फिक्र कर के समझा जाए और फिर समझाया जाए ताकि सब को पता चल जाए की वाकई दीन बेस्ट और परफेक्ट वे ऑफ लाइफ है।

अपना अकीदा कुरान,मुस्तनद हदीस,उसूल दीन और अक्ल की रौशनी में गौर फिक्र कर के मानने वाले उलमाए किराम और दीनदार मुसलमान बड़े से बड़े तूफानों और आंधियों में भी सीसा पिलाई हुई दीवार बन कर खड़े रहते हैं और इस्लाम पर हमला करने वाले इस्लाम दुश्मनों को दलील से जवाब दे रहें है और उनके सामने दुश्मन टिक ही नहीं पाते।

क्योंकि वो दीन जो अल्लाह ने अपने बंदों के लिए भेजा है वही "परफेक्ट वे ऑफ लाइफ" है उसको कुरान,मुस्तनद हदीस, उसूल दीन और अक्ल की रौशनी में अच्छी तरह समझा जाए और उसकी ही मारेफ़त हासिल करना बहुत जरूरी है। हमारा दीनी फरीजा है की जो कुछ अल्लाह,रसूल स०अ० और आले रसूल अ०स० ने अल्लाह के बंदों को बताया है वही अल्लाह के बंदों को बताया जाए और जिस से रोका है उस से रोका जाये और जिस बात को नहीं मना किया है उसे मना नहीं किया जाए और अपनी तरफ से किसी बात या अमल को हराम या ना जाएज न कहा जाए। याद रखिए जो कुछ अल्लाह और उसके रसूल स०अ० ने मना नहीं किया है वो कयामत तक जाएज और हलाल है उसमे दखल अंदाजी करने से ही फसाद और इख्तेलाफ बढ़ रहा है  इस लिए खुदा के लिए उसे अपनी तरफ से न मना किया जाए यही तरीकए तबलीग ही परफेक्ट है। रसूलुल्लाह स०अ० का हलाल क़यामत तक हलाल है, हराम क़यामत तक हराम है!

नोटः लेखक के अपने ज़ाती विचार है हौजा न्यूज़ एजेंसी का लेखक के विचारो से सहमत होना ज़रूरी नही है।

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टिप्पणियाँ

  • Dr. S.M.H.Zaidi IN 23:09 - 2022/10/15
    0 0
    Mashaallah behtareen article hai. Bahut kam lafzon mein pura message de diya.👍🌹