हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, मौलाना नबी बख़्श सन 1290 हिजरी में सरज़मीने मुबारकपुर ज़िला आज़मगढ़ सूबा उत्तरपरदेश पर पैदा हुए, आपके वालिद मौलाना ज़ियाउद्दीन मुत्तक़ी और परहेज़गार आलिम थे, आपकी वालेदा निहायत नेक और परहेज़गार ख़ातून थीं, मौलाना के वालेदैन ने आपका नाम खुदा के आख़री नबी की मोहब्बत के सबब नबी बख़्श रखा, आप बचपन ही में वालेदैन की शफ़क़त से महरूम हो गये।
मौलाना को बचपन से क़लम व दवात और लिखना पढ़ना बहुत पसंद था, वालेदेन के इंतेक़ाल के बाद ख़ानदान के बुज़ुर्गों की ज़ेरे सरपरस्ती मश्गूले तालीम रहे, मौलाना के कुछ रिश्तेदार मुंबई मे रहते थे लिहाज़ा आप भी उनके पास मुंबई चले गये और असातेज़ा ए किराम की सरपरस्ती में इब्तेदाई तालीम मुकम्मल की और साथ ही खत्ताती और नक़्क़ाशी जैसे फूनून में जल्द महारत हासिल की, जब एक प्रेस के मालिक ने आपकी खत्ताती और नक़्क़ाशी की महारत को देखा तो अपने इदारे में माक़ूल तनख़ा पर काम करने के दवात दी, आपने क़ुबूल कर लिया और बेहतरीन तरीक़े से मशगूल हो गये।
जब मौलाना नबी बख़्श की उम्र 18 साल की हुई तो आपकी बहन ने आपकी शादी का एहतेमाम शुरू कर दिया, मौलाना नबी बख़्श अपनी खुद निविष्त सवानेह हयात में तहरीर फ़रमाते हैं की एक दिन मैं आपने दोस्तों के साथ मुग़ल मस्जिद गया तो वहाँ मौलाना अली बख़्श ने ज़रूरते तालीम के मोज़ू पर तक़रीर फरमाइ जिसमे उन्होने कहा: ऐ इंसान तुझे सिर्फ़ दुनया में तहसीले इल्म का मोक़ा है अगर दुनया से जाहिल उठ गया तो अबद तक इल्म हासिल करने के मोहलत ना मिलेगी, मुझ पर इस जुमले का बहुत असर हुआ और मैं सोचने पर मजबूर हो गया की इस दुनया से जाहिल उठ गया तो अबद तक इल्म हासिल करने की मोहलत ना मिलेगी, अगर अभी मेरी मौत वाक़े हो जाती है तो हमेशा के लिये जाहिल रह जाऊंगा, लिहाज़ा मुझे क़ुराने मजीद को पढ़ना और समझना होगा, क़ुरान से पहले मुझे अरबी ज़बान और उसके क़वानीन को भी समझना होगा, आपने तहसीले इल्म के लिये इराक़ के शहर नजफ़, हिंदुस्तान के शहर लाहौर और लखनऊ का इन्तेखाब किया और उनमें भी एक शहर के इन्तेखाब में इसतेखारा कराया तो लाहौर शहर का इसतेखारा बेहतर आया।
मौलाना नबी बख़्श ने इस बड़े मक़सद की गरज़ से मुंबई से कराची और वहाँ से लाहौर का सफ़र किया और मदरसे रहीमया में दाखला ले लिया, मदरसे के तुल्लाब और असातेज़ा को आपके खत्ताती व नक़्क़ाशी जैसे हुनर का इल्म हुआ तो आपकी बहुत इज़्ज़त अफ़ज़ाई की।
जब आप में अरबी समझने और तरजमा करने की सलाहियत पैदा हो गयी तो “ओरियंटल कालिज” में भी तहसीले इल्म की गरज़ से जाना शुरू किया और इम्तियाज़ी नंबरों के साथ मौलवी, मौलवी आलिम, मौलवी फाज़िल और मुंशी फ़ाज़िल की असनाद हासिल कीं।
आप क़ुराने मजीद की तरफ़ मुतावज्जो हुए तो आजिज़ी का अहसास हुआ, आपने अल्लामा शेख़ अब्दुल अली हरवी की ख़िदमत में एक मुद्दत तक पटयाला, लाहौर और लुधयाने में रहकर कस्बे फ़ैज़ किया और मोसूफ़ अल्लामा के रंग में रंग गये, हैरत अंगेज़ मुतालेआ, हाफिज़ और ज़हानत के साथ इल्म दोस्ती में आपका कोई सानी नहीं था।
मौलाना नबी बख़्श ने वहाँ से फ़रागत के बाद मशहदे मुक़द्दस का रुख़ किया और वहाँ किरमानी अलिमे दीन की आलिमा, फ़ाज़िला, आबेदा और ज़ाहेदा बेटी से अक़्द किया और तमाम उम्र तसनीफ़ वा तालीफ़ में गुज़ार दी, आपने फ़ज़ाइले अहलेबैत अ; में फ़ारसी और अरबी के तवील क़सीदे भी लिखे।
आपने बेशुमार मक़ालात और तसनीफ़ कीं, किताबों में अततोहीद वत तजरीद, नबुव्वत, इमामत, मैदाने महशर, अलमेराज, महदिये शिया, अल क़िसतास, अलमुसतक़ीम वगैरा के असमा सरे फ़ेहरिस्त हैं।
मौलाना नबी बख़्श मुखतलिफ़ उलूम में महारत के साथ साथ मुखतालिफ़ ज़बानों पर तसल्लुत रखते थे जिनमे: अंग्रेज़ी, फ़ारसी, हिन्दी और इबरानी ज़बान सरे फ़ेहरिस्त है।
आख़िरकार ये इलमो अमल का आफ़ताब 72 साल की उम्र में मशहदे मुक़द्दस ईरान में अपने मालिके हक़ीक़ी से जा मिला और चाहने वालों के मजमे में हुसैनया किरमानयान मशहदे मुक़द्दस में सुपुर्दे ख़ाक कार दिया गया।
माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-9 पेज-106 दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 2023ईस्वी।